कॉलेजियम सिस्टम (Collegium System) के नाम पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और केंद्र सरकार (Modi Government) के बीच तकरार देखने को मिल रहा है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट (SC) ने केंद्र सरकार (Central Government) को सीधे-सीधे नसीहत देते हुए कहा कि वह अपने मंत्रियों के बयानों पर कंट्रोल करें. क्योंकि अगर उन्होंने संसद (Parliament) के क़ानून को ख़ारिज कर दिया तो सोच लें क्या होगा. शीर्ष अदालत ने अटॉर्नी जनरल (AG) आर वेंकटरमानी को सलाह देते हुए कहा कि केंद्रीय मंत्रियों को कॉलेजियम सिस्टम की सार्वजनिक आलोचना करने से बचना चाहिए. जो कुछ बयानबाज़ी की गई है उससे समाज में ग़लत संदेश गया है. कोर्ट ने कहा कि इस बाबत अगर सरकार कोई नया क़ानून लाना चाहती है तो लाए, लेकिन कोर्ट के पास उसके न्यायिक समीक्षा का आधार है.
जजों के नामों की सिफ़ारिश पर केंद्र सरकार की तरफ़ से पहल करने में हो रही देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों की नियुक्ति को लेकर फ़िलहाल कॉलेजियम सिस्टम है और सरकार को इस सिस्टम का पालन करना चाहिए. क्योंकि ऐसा नहीं करना क़ानून की ख़िलाफ़त करने जैसा है. अगर एक वर्ग इस सिस्टम को सही नहीं मानता है तब भी इसके ख़िलाफ़ सार्वजनिक बयानबाज़ी नहीं होनी चाहिए. कॉलेजियम व्यवस्था संवैधानिक बेंच के आदेश से आई थी और उसका पालन होना चाहिए. किसी के सार्वजनिक बयानबाज़ी से क़ानून बदल नहीं जाता.
जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul) ने कहा कि केंद्र सरकार दो-दो तीन-तीन बार कॉलेजियम की सिफ़ारिशों को पुनर्विचार के लिए वापस भेज देती है. इस पुनर्विचार के पीछे की ठोस वजह क्या है, सरकार इस बात को बताती भी नहीं है. इसका सीधा मतलब तो यही है कि सरकार उनको नियुक्त ही नहीं करना चाहती. यह पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की भावना के ख़िलाफ़ है. केंद्र सरकार ने कॉलेजियम के भेजे नामों में से १९ नामों की फाइल वापस भेज दी है. सवाल उठता है कि जब हाई कोर्ट ने कॉलेजियम के नाम भेज दिए और सुप्रीम कोर्ट ने भी उसपर मुहर लगा दी है तो फिर केंद्र सरकार को कहां दिक्कत हो रही है? पिंगपॉन्ग का ये बैरल कब सैटल होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने उदाहरण देते हुए अटॉर्नी जनरल से कहा कि संसद में कई ऐसे क़ानून बनते हैं जिससे एक बड़ा वर्ग सहमत नहीं होता. तो क्या सुप्रीम कोर्ट को भी उन क़ानूनों पर रोक लगा देनी चाहिए? जस्टिस कौल ने कहा कि अगर हर कोई यह तय करने लगे कि कौन सा क़ानून मानें और कौन सा नहीं, तो फिर पूरी व्यवस्था ही ख़त्म हो जाएगी.
कुछ दिनों पहले ही देश के क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उन्होंने कहा था कि जजों की नियुक्ति को लेकर संविधान में इस व्यवस्था को लेकर कोई ज़िक्र नहीं है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सिफ़ारिश वाली फ़ाइल को रोकने का आरोप लगाया था. इसके जवाब में केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए, वरना फिर सरकार को फाइल ही न भेजें, ख़ुद ही नियुक्ति कर लें.
वहीं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar)ने राज्यसभा में बतौर सभापति अपने पहले संबोधन में बुधवार को संसद में पारित राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (NJAC) कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को लेकर अदालत पर निशाना साधा. उपराष्ट्रपति ने कहा कि NJAC बिल के लिए 99वां संवैधानिक संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित किया गया था. इस बिल को 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. उन्होंने कहा कि यह ‘संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता’ और उस जनादेश का ‘अनादर’ है जिसके संरक्षक उच्च सदन एवं लोकसभा हैं.
हालांकि इस मामले में अब अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद सौगत रॉय ने कॉलेजियम सिस्टम का बचाव किया है. उन्होंने लोकसभा में सार्वजनिक मंचों पर कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना करने वाले केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू को चुनौती देते हुए कहा, “ऐसा नहीं है कि यह सही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम वास्तव में केंद्र सरकार द्वारा सत्ता के अत्याचार के खिलाफ बड़ी गारंटी है. सरकार न्यायपालिका सहित हर जगह अपनी शक्ति का विस्तार करने की कोशिश कर रही है … यह कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने लिए उच्च पदस्थ व्यक्ति का उपयोग कर रही है.”
Last Updated on December 8, 2022 1:09 pm