भारत से अलग होते ही क्या पाकिस्तान के साथ जुड़ जाएगा ‘इंडिया’ नाम?

भला मुहम्मद अली जिन्ना को, इण्डिया को इंडिया कहे जाने से क्या आपत्ति थी??

दरअसल, दो कारण से।

एक तो इंडिया का नाम, इतिहास में हमे “इंडस रिवर’ का देश होने की वजह से मिला था। इंडस जब पाकिस्तान में रह गई थी, तो इधर बिना इंडस, काहे का इंडिया??

क्या आपको याद है, एक बार सुनील दत्त में आंतकवाद के दौर में पंजाब का नाम, खलिस्तान रखने का सुझाव दिया था।

उनका भी यही लॉजिक था, कि पंजाब का मतलब, 5 नदियों का प्रदेश था। अब 60% पंजाब तो पाकिस्तान हो गया। भारतीय पंजाब में 5 नदियां तो थी नही। उसको भी तोड़कर हरियाणा और हिमाचल बना दिया।

तो बचे इलाके को पंजाब कहने का कोई तुक नही। अगर लोगो को “पवित्र स्थान” याने “खालिस्तान” कहना है, तो कहने दो।
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बहरहाल बात जिन्ना की हो रही थी। वे इस बात से वाकिफ थे, कि इंडिया को इंडिया कहे जाने पर पाकिस्तान को स्थायी राजनीतिक शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती।

इसका लॉजिक यह था, कि डूरंड से तमिलनाडु तक सारा इलाका इंडिया कहलाता था। अब उसके दो टुकड़े हो रहे थे। अगर भारत अपने को इंडिया कहता है, याने पुराने देश का दर्जा, असली सक्सेसर स्टेट की पहचान, तो इंडिया को मिलेगी।

पाकिस्तान, इतिहास में मूल देश से टूटने और अलग होने वाला खित्ता माना जायेगा। तो उनकी चाहत यह थी-कि इंडिया टूटा, और दो देश बने। अगर एक खुद को पाकिस्तान कहता है, दूसरा खुद को भारत कहे।

मगर जिन्ना चल बसे। उनकी ख़्वाहिश नेहरू भला काहे पूरी करते। 18 सितंबर 1949 को भारत के सम्विधान ने खुद का नामकरण किया, तो कहा-

इंडिया, दैट इज भारत।
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हमने तो दोनो नाम क्लेम कर लिए। इस पर पाकिस्तान ने कभी दिल से माफ नहीं किया।

आज भी, अगर आप पाकिस्तानी न्यूज देखते हों तो याद करेंगे कि वे अपनी बोलचाल में इंडियन फ़ौज, या इंडियन पीएम या इंडिया की नही कहते। वे हमेशा भारतीय फौज, भारतीय पीएम या भारत ही कहते हैं।

वे दिल से, आपको इंडिया स्वीकारते ही नहीं।
भारत ख़ुशी से मानने को तैयार हैं।
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और यही कारण है कि खबर आई, की अगर भारत यूएन में अपना नाम इंडिया छोड़ने की सूचना देता है, तो फटाफट बयान आया कि इस नाम को वे क्लेम करेंगे।

दे विल बिकम- पाकिस्तान, दैट इज इंडिया।

और सच भी यही है कि इंडस रिवर की वजह से इण्डिया का नाम, हमसे ज्यादा, उन्हें सूट करेगा।

नेहरू ने उनसे यह मौका छीन लिया था। संघियो ने जिन्ना की मदद से पहली बार सत्ता का स्वाद चखा था। अब जिन्ना का नमक खाया है, तो जिन्ना की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने का रास्ता भी वही निकाल रहे हैं।
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यह इनकी ऐतिहासिक लाइन से कंसिस्टेंट भी है। कांग्रेस को हराने, सरकारे बनाने, बंगाल-सिंध- खैबर-पंजाब की स्टेट असेम्बली से पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव पास कराने, दंगे, सीधी कार्यवाही में प्रतिक्रिया का दूसरा पक्ष बनने आदि आदि में जिन्ना की हर ख्वाहिश तो सावरकरवादी सदा से ही पूरे करते आये हैं।

तो सत्ता की चलाचली देखते हुए, ठीक 18 सितंबर को, एजेंडा बताये बगैर, विशेष सत्र बुलाया गया है। शायद नागपुर से शायद यह आदेश हो कि समय रहते..

“.. जिन्ना की तपलीक दूर कर दो भाई”

Manish Singh के ट्विटर पेज से…

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए Newsmuni.in किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

Last Updated on September 8, 2023 3:41 pm

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