ढेर सारा पैसा या पेड़ और जंगल? सरकार आपको चुनने का मौक़ा दे तो किसे चुनोगे? इक्वाडोर पौने दो करोड़ की आबादी वाला छोटा सा देश है जिसके हिस्से में अमेजन जंगल का कुछ इलाक़ा ‘यासूनी नेशनल पार्क ‘आता है. इस जंगल में पेड़-पौधों, जंगली जंतुओं की बहुत बड़ी आबादी के अलावा दो जनजातियों के भी घर हैं जो सदियों से यहाँ रह रहे हैं और बाहरी दुनिया से इनका कनेक्शन नहीं है.
इनकी संख्या बहुत कम है और संकट में है. यहाँ एक छोटे इलाक़े ‘ब्लॉक 43’ में ज़मीन के नीचे तेल के भंडार हैं जहां सरकारी तेल कंपनी पेट्रोइक्वाडोर 2016 से ड्रिलिंग करके तेल निकाल रही थी. पैसा छापा जा रहा था लेकिन देश में जागरुक लोग इसका बहुत विरोध कर रहे थे. वो कह रहे थे कि जनता से ख़ुद पूछ लो कि उसको ये पैसा चाहिए, या ये जंगल? तेल कंपनी वाले और आर्थिक सलाहकार लोग कह रहे थे कि इस तेल की वजह से इकॉनमी को फ़ायदा हो रहा है.
अगर यहाँ तेल निकालना बंद किया तो अगले कुछ सालों में 14 अरब डॉलर का नुक़सान होगा. लेकिन विरोध बढ़ता जा रहा था तो आख़िरकार मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेफरेंडम (जनमत संग्रह) करा लो भई. जनता कहेगी हाँ तो हाँ, नो मीन्स नो. वहाँ राष्ट्रपति चुनाव हुए और साथ में रेफरेंडम भी. 59 फ़ीसदी जनता ने कहा कि पैसे गए तेल लेने, हमें तो जंगल चाहिए.
वहाँ के लोग पेड़ों के लिए, जंगली जीवों के लिए और वहाँ रहने वाले आदिवासियों के लिए खड़े हुए. कंपनी को पीछे हटना पड़ा और अब वहाँ ड्रिलिंग बंद हो रही है. डॉयचे विले की एक रिपोर्ट पढ़कर यह सब जानकारी मिली.
दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी भले न हो लेकिन डेमोक्रेसी कैसे काम करती है यह इक्वाडोर के नेता, जनता और कोर्ट ने दिखाया. नहीं तो कुछ देश ऐसे भी हैं जहां सरकार पूँजीपतियों को जंगल बेचने से पहले क्या बाद में भी जनता को नहीं बताती.
आदिवासी विरोध करें तो उनका सब कुछ छीन लिया जाता है. उनका घर, परिवार यहाँ तक कि जान भी. अपने फ़ेवरेट पूँजीपति को खनन का टेंडर देने के लिए क़ानून बदल दिए जाते हैं, बिडिंग में धांधली होती है और पैसे, पावर और बंदूक़ के दम पर जंगल साफ़ कर दिए जाते हैं, आदिवासी तबाह कर दिए जाते हैं.
उस देश की जनता को अगर मौक़ा मिले तो पता नहीं वह पैसे को चुनेगी या जंगल को लेकिन यह मौक़ा मिलना ही मुश्किल है.
व्यंग्यकार आशुतोष उज्ज्वल के फ़ेसबुक वॉल से…
Last Updated on September 12, 2023 11:56 am