जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में सरकारी नीतियों की आलोचना करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर अब होगी कार्रवाई. केंद्र ने जम्मू कश्मीर के लिए खोला पिटारा, 118500 करोड़ रुपये का बजट पेश. भारत सरकार ने राष्ट्रविरोधी और अलगाववादी गतिविधियों में शामिल मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर पर लगाया प्रतिबंध. आतंकियों के मददगारों की खैर नहीं, जम्मू-कश्मीर में अब तक 55 सरकारी कर्मचारी बर्खास्त. संत समाज ने अनुच्छेद 370 पर SC के फैसले का किया स्वागत, कहा- ‘विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी’.. ये सभी हेडलाइंस हैं जो पिछले साल अलग-अलग मीडिया संस्थानों ने अपने डिजिटल संस्करण पर छापे. इन ख़बरों को पढ़कर शायद आप लोगों ने मान भी लिया कि राज्य का भला हो रहा है. अब एक और ख़बर पढ़ें- Ignored by govt, Jammu and Kashmir’s Poonch village pools funds for new playground. यानी ‘सरकार ने किया नज़रअंदाज़… जम्मू-कश्मीर के पुंछ में एक गांव ने खेल का मैदान बनाने के लिए इकट्ठा किया पैसा’ इस ख़बर को इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने छापा है.
दरअसल कलई गांव के 2,000 ग्रामीणों को उम्मीद है कि अगर इलाक़ें में खेल परिसर बना तो वहां के युवा नशे और आतंकवाद से दूर अपना बेहतर भविष्य बनाने पर ध्यान फोकस करेंगे. हालांकि सरकार भी यही दावा करती है कि वह जम्मू-कश्मीर के युवाओं को आतंकवाद से दूर कर मुख्य धारा से जोड़ना चाहती है. ऊपर आपने जो हेडलाइंस पढ़े होंगे, उससे भी यही लग रहा है कि सरकार युवाओं को आतंकी बनने से रोकना चाहती है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले कई सालों से ग्रामीण खेल परिसर बनाने के लिए सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई. आख़िरकार जब कोई सुनवाई होती नहीं दिखी तो ग्रामीणों ने खुद आगे बढ़ने का फैसला लिया.
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सरकार ने किया इग्नोर तो खुद ही उठाया ज़िम्मा
जम्मू-कश्मीर के पुंछ के कलई गांव में 2,000 ग्रामीण खेल परिसर बनाना चाहते थे. पिछले कई सालों में बार-बार सरकार से गुहार लगाने के बाद भी जब मदद की कोई उम्मीद नहीं दिखी तो वहां के लोगों ने अपनी निजी कृषि की ज़मीन पर ही खेल परिसर बनाने का फ़ैसला किया. सक्षम लोगों ने पैसे से मदद की, कुछ लोगों ने लगभग दो एकड़ पहाड़ के कृषि ज़मीन को समतल बनाने में शारीरिक रुप से मदद की. यानी कि श्रमदान किया. जबकि अन्य लोगों ने ऊबड़ खाबड़ ज़मीन को समतल कर मैदान बनाने वाले श्रमिकों को चाय-नाश्ता और खाना देकर मदद की.
कलई गांव के सरपंच फरोज़ उन निसा ने बताया, यह ज़मीन मोहम्मद शबीर की है. शबीर इसमें मक्के की खेती करते थे. ग्रामीणों ने तय किया है कि ज़मीन के बदले शबीर को सालाना एक लाख रुपये दिया जाएगा. फरोज़, एक रिटायर्ड सरकारी स्कूल शिक्षक हैं और इस शुरुआत के अगुआ भी. ग्रामीणों ने इस खेल परिसर को बनाने में 25 लाख़ रूपये खर्च किए हैं. इस साल इस खेल परिसर में कलई और आसपास के गांव ने क्रिकेट टूर्नामेंट भी रखा था. कुछ क्रिकेट प्रेमियों मे मैच के दौरान कमेंटरी के लिए साउंड सिस्टम भी उपलब्ध कराए थे. इस खेल परिसर को बड़ा करना और मल्टी स्पोर्ट सुविधा के लिए और भी कार्य किए जाने अभी बाक़ी हैं. खेल मैदान में साउंड सिस्टम तैयार करने वाले यासिर नाम के ठेकेदार ने बताया कि कलई गांव में काफी संख्या में पढ़े-लिखे लोग बेरोजगार हैं और ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर.
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बेरोजगारी से परेशान युवाओं को इंगेज करना ज़रूरी
उन्होंने इस खेल परिसर के महत्व को समझाते हुए कहा कि ग्रामीण इस बात से चिंतित हैं कि बेरोजगारी से परेशान युवा कहीं आतंकवाद जैसे ग़लत रास्ते पर ना बढ़ जाएं. ऐसे में खेल परिसर बनने से उन युवाओं को एक काम मिल जाएगा. फिर चाहे वह खिलाड़ी के तौर पर हो, ऑर्गेनाइजर के तौर पर या फिर दर्शक के तौर पर. कुल मिलाकर बात युवाओं को खेल-कूद में फंसाए रखने की है. यासिर ने इस खेल परिसर के बनने के लिए आर्थिक मदद भी की है. वह अर्थशास्त्र में MA हैं और साथ ही M.Ed भी कर रखी है. कई सालों तक नौकरी के लिए कोशिश करने के बाद साल 2021 में उन्होंने सरकारी नौकरी की उम्मीद छोड़ दी और ठेकेदार बन गए.
उन्होंने आगे कहा, ‘आप जम्मू-कश्मीर अधीनस्थ सेवा बोर्ड को तो जानते ही हैं. पहले तो वो भर्ती प्रक्रिया शुरू करने में ही कई साल ले लेते हैं. फिर जब भी वो ऐसा करते हैं, आगे चलकर या तो रिजल्ट ही कैंसिल कर देते हैं या फिर वैकेंसी ही ख़त्म कर दी जाती है.
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आसपास के गांव को भी मिलेगा फ़ायदा
कलई पंचायत के एक सदस्य वाहिद इक़बाल ने बताया कि सिर्फ कलई गांव की आबादी 10,000 के क़रीब है. इसके अलावा ऊपरी शिंद्रा और निचली शिंद्रा में भी 10,000 की आबादी है. चारून में 5000 के करीब लोग रहते हैं और खानेटर में भी 10,000 लोग निवास करते हैं. खेल परिसर यहां तब आया था जब पुंछ और इससे सटे रजौरी ज़िले में आतंकी हिंसा में काफी उछाल देखने को मिल रही थी और इस क्षेत्र में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए कई संगठन लगातार प्रयास कर रहे थे.
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कैसे रुकेगा आतंकवाद?
2023 की शुरुआत से अब तक जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षाकर्मियों ने 27 आतंकवादियों को ढेर किया है. जबकि गोलीबारी के दौरान 16 सैनिकों की भी जान गई है. इसके अलावा आतंकियों ने इन दो ज़िलों में सात नागरिकों की भी हत्या की है. यह आंकड़े बताने को काफी हैं कि पुंछ ज़िले में आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए इस तरह के प्रयास कितने ज़रूरी हैं. लेकिन पिछले कई सालों से बार-बार गुहार लगाने के बाद भी जो सरकार का रवैया रहा है वह काफी निराशाजनक है. वहीं स्थानीय लोगों का प्रयास काफ़ी सराहनीय है कि वे अपनी युवा पीढ़ी को बर्बाद होने से रोकने के लिए पैसे और जमीन देने से लेकर मज़दूरी तक करने को तैयार हैं.
Last Updated on January 2, 2024 10:55 am