बिलकिस बानो गैंगरेप: SC ने रद्द किया 11 दोषियों की सजा छूट, राहुल बोले- ‘अपराधियों का संरक्षक’ कौन?

बिलकिस बानो गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की सजा माफी
बिलकिस बानो गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की सजा माफी

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात 2002 दंगों के दौरान, बिलकिस बानो से गैंगरेप मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट देने के फैसले को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फ़ैसले को ‘घिसा पिटा’ और बिना सोचे-समझे पारित किया गया बताया. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूइयां की पीठ ने दोषियों को दो सप्ताह के अंदर आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया है.

सोमवार को सजा में छूट को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं को पीठ ने सुनवाई योग्य करार दिया. पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है. दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया था. ऐसे में दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार गुजरात सरकार के पास कैसे आया?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि एक राज्य जिसमें किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम होता है.

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
पीठ ने 100 पन्नों का फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमें अन्य मुद्दों को देखने की जरूरत नहीं है. कानून के शासन का उल्लंघन हुआ है क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया जो उसके पास नहीं थे और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया. उस आधार पर भी सजा से माफी के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए.’

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से दोषियों की सजा माफी की याचिका पर विचार करने संबंधी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को ‘अमान्य’ करार दिया. कोर्ट ने कहा कि वह आदेश ‘अदालत को गुमराह’ करके और ‘तथ्यों को छिपाकर’ हासिल किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक विशेष मामला है जहां अधिकारों का दुरुपयोग कर कानून के शासन का उल्लंघन किया गया है और 13 मई, 2022 के आदेश का इस्तेमाल शक्तियों को हथियाने और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए किया गया.

पीठ ने कहा, ‘हम गुजरात सरकार द्वारा अधिकारों का दुरुपयोग करने के आधार पर सजा में छूट के आदेश को रद्द करते हैं.’

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12 अक्टूबर को फ़ैसला रखा था सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर 11 दिन की सुनवाई के बाद पिछले साल 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और गुजरात सरकार को 16 अक्टूबर तक 11 दोषियों की सजा माफी से संबंधित मूल रिकॉर्ड जमा करने का निर्देश दिया था.

पिछले साल सितंबर में मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि क्या दोषियों के पास सजा से माफी मांगने का मौलिक अधिकार है.

पहले की दलीलों के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में चयनात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए और सुधार एवं समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को मिलना चाहिए.

‘अपराधियों का संरक्षक’ कौन, SC ने बताया?
राहुल गांधी ने सोशल मीड‍िया मंच ‘एक्‍स’ पर पोस्‍ट शेयर करते हुए ल‍िखा, ”चुनावी फायदे के लिए ‘न्याय की हत्या’ की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है. आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर देश को बता दिया कि ‘अपराधियों का संरक्षक’ कौन है. बिलकिस बानो का अथक संघर्ष, अहंकारी बीजेपी सरकार के विरुद्ध न्याय की जीत का प्रतीक है.”

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वहीं कांग्रेस ने एक्स हैंडल पर पोस्ट करते हुए लिखा, ‘जब देश के प्रधानमंत्री 15 अगस्त 2022 को लाल किले से आजादी के अमृत महोत्सव पर भाषण दे रहे थे, तो उधर गुजरात में बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई हो रही थी. पहले इन बलात्कारियों का स्वागत VHP के दफ्तर में होता है और बाद में BJP के सांसद और विधायक इनके साथ मंच साझा करते हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद PM मोदी और BJP के नेताओं को देश की करोड़ों बेटियों से माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि BJP आज बेनकाब हो चुकी है.’

सुप्रीम कोर्ट के फै़सले को दी थी चुनौती
गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर इस राहत के खिलाफ चुनौती दी थी.

तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा ने भी सजा में छूट और समय से पहले रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी.

क्या है मामला?
घटना के वक्त बिनकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं. बानो से गोधरा ट्रेन में आग लगाए जाने की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था. दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.

गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया था.

Last Updated on January 8, 2024 12:58 pm

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