हरित क्रांति के जनक MS Swaminathan को Bharat Ratna सम्मान देने वाली केंद्र सरकार, उन्हीं की सिफारिशों को लागू करने में क्यों ना नुकूर कर रही है? जिस वजह से लाखों किसानों को दिल्ली के लिए कूच करना पड़ रहा है. किसान आंदोलन को लेकर हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज का कहना है कि किसानों का दिल्ली आने की बात समझ से बाहर है. क्योंकि केंद्र सरकार दो बार चंडीगढ़ में किसानों से बात कर चुकी है. एक बार और कर लेगी. दिल्ली आने का इनका क्या मकसद है?
दिल्ली कूच कर रहे किसानों की मांग भी बस इतनी है, कि केंद्र सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कर दे. फिर अनिल विज क्यों कह रहे हैं कि सरकार बात कर रही है लेकिन किसान नहीं मान रहे. केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का भी कहना है कि सरकार ने किसानों की अधिकतर मांगें स्वीकार कर ली हैं. सरकार MSP गारंटी से जुड़ी मांग पर चर्चा को तैयार है.
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जब किसानों की सीधी सी मांग है कि केंद्र सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को मानें तो फिर बातचीत या चर्चा की ज़रूरत क्या है? मतलब साफ़ है कि सरकार ने MS Swaminathan को भारत रत्न के लिए चुन तो लिया लेकिन किसानों की भलाई के लिए दिए उनके सुझाव से सहमत नहीं है. सोमवार को बिहार विधान सभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा था कि भारत रत्न देने के नाम पर केंद्र सरकार वोट पाने के लिए डील कर रही है. किसी भी महापुरुषों के विचार से उनका कोई लेना देना नहीं है. हालांकि उन्होंने यह बात बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने को लेकर कहा था. तो क्या उनका यह आरोप सही है?
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स्वामीनाथन आयोग क्या है?
किसानों से जुड़ी समस्याओं का हल निकालने के लिए नवंबर 2004 में एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी. इसे ‘नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स’ नाम दिया गया था. लगभग दो सालों तक (दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 के बीच) भारत के तमाम कृषि संगठन, जानकार और किसानों से बात करने के बाद आयोग ने 6 रिपोर्ट तैयार की थी.
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कई महत्वपूर्ण सिफ़ारिशों में एक सिफारिश एमएसपी को लेकर भी थी. इसके अनुसार MSP औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50% ज्यादा होना चाहिए. पूरे दिन जिस किसान आंदोलन को लेकर टीवी चैनलों पर चर्चा चल रही है, उनकी भी यही मांग है. MSP वह कीमत है जिस पर सरकार सीधे किसानों से फसल खरीदती है.
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स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू ना करने पर खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा का मानना है, “सरकारें ऐसा नहीं करेंगी क्योंकि इनकी जो नीति है वो खाद्य महंगाई को कम रखने की है, इसलिए आपको खाद्य मूल्य को कम रखना होगा और इसका मतलब है कि इसका ख़ामियाज़ा सीधे किसान को ही भुगतना है. इसलिए मैं ये कहना चाहता हूं कि सरकार की मंशा है कि किसान को खेती से ही बाहर कर दिया जाए.”
Last Updated on February 13, 2024 3:00 pm