Electoral Bond: पिछले महीने से ही भारतीय स्टेट बैंक (SBI) इसके लिए भरपूर प्रयास कर रहा था कि किसी तरह इलेक्टोरल बांड (Electoral Bond) से संबंधित डेटा जारी करने का समय 30 जून, 2024 तक टल जाए. आगामी लोकसभा चुनाव के काफ़ी बाद तक. यह संभवतः मोदी सरकार के इशारे पर किया जा रहा था. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के बार-बार हस्तक्षेप और तल्ख़ टिप्पणी के बाद SBI को अंततः 21 मार्च, 2024 को Electoral Bond का डेटा जारी करना पड़ा.
राजनीतिक दलों के साथ चंदा देनेवालों का मिलान करने में पायथन कोड की तीन लाइंस और 15 सेकंड से भी कम समय लगा. इससे SBI का यह दावा बेहद हास्यास्पद साबित हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मांगा गया डेटा उपलब्ध कराने में उसे कई महीने लगेंगे.
कुछ दिन पहले, कांग्रेस पार्टी ने Electoral Bond घोटाले में घोर भ्रष्टाचार के चार पैटर्न को हाइलाइट किया था-
1. चंदा दो, धंधा लो यानी प्रीपेड रिश्वत
2. ठेका लो, रिश्वत दो यानी पोस्टपेड रिश्वत
3. हफ़्ता वसूली यानी छापेमारी के बाद रिश्वत
4. फ़र्ज़ी कंपनियां यानी शेल कंपनियां
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सुप्रीम कोर्ट की वजह से Electoral Bond का डेटा सामने आने से लोगों को इन सभी 4 कैटेगरीज में गंभीरता से आंकलन करने की इजाज़त मिल गई है. अब हम यह अच्छी तरह से जानते हैं कि BJP भारत के लोगों के समक्ष ये डेटा क्यों नहीं रखना चाहती थी .
Electoral Bond डेटा के विश्लेषण का सार
I. चंदा दो, धंधा लो (प्रीपेड रिश्वत) और ठेका लो, रिश्वत दो (पोस्टपेड रिश्वत):
38 ऐसे कॉर्पोरेट समूहों ने Electoral Bond के माध्यम से चंदा दिया है, जिन्हें केंद्र या BJP की राज्य सरकारों से 179 प्रमुख कॉन्ट्रैक्ट्स और प्रोजेक्ट क्लीयरेंस (मंज़ूरी) मिले हैं. BJP को Electoral Bond के माध्यम से 2,004 करोड़ रुपए का चंदा देने के बदले इन कंपनियों को कुल मिलाकर 3.8 लाख करोड़ के कॉन्ट्रैक्ट्स और प्रोजेक्ट्स मिले हैं.
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इस में दो केटेगरी हैं –
1. चंदा दो, धंधा लो (प्रीपेड रिश्वत): बीजेपी को कुल मिलाकर 551 करोड़ रुपए का चंदा मिला और 3 महीने के भीतर 1.32 लाख करोड़ रुपए के कॉन्ट्रैक्ट/प्रोजेक्ट्स की स्वीकृति केंद्र या BJP की राज्य सरकारों द्वारा दिए गए हैं.
2. ठेका लो, रिश्वत दो (पोस्टपेड रिश्वत): पहले केंद्र या BJP की राज्य सरकारों द्वारा 62,000 करोड़ रुपए के कॉन्ट्रैक्ट/प्रोजेक्ट स्वीकृत किए गए और 3 महीने के भीतर उसके बदले 580 करोड़ रुपए की पोस्टपेड रिश्वत (Electoral Bond के रूप में) BJP को दी गई.
II. हफ़्ता वसूली
41 कॉर्पोरेट समूहों को कुल 56 ED/सीबीआई/आईटी छापों का सामना करना पड़ा. इन सभी ने 2,592 करोड़ रुपए बीजेपी को दिए हैं. इनमें से 1,853 करोड़ रुपए छापेमारी के बाद दिए गए हैं.
III. फ़र्ज़ी (शेल) कंपनी
फ़र्ज़ी कंपनियों द्वारा दिए गए कुल 543 करोड़ में से 16 शेल कंपनियों ने बीजेपी को 419 करोड़ का चंदा दिया. इनमें मनी लॉन्ड्रिंग के लिए वित्त मंत्रालय की उच्च जोखिम वाली निगरानी सूची में शामिल कंपनियां, अपने गठन के कुछ महीनों के भीतर करोड़ों का दान देने वाली कंपनियां और अपने पेड-अप कैपिटल के कई गुना दान करने वाली कंपनियां शामिल थीं.
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इसे बार-बार दोहराने और हाईलाइट करने की ज़रूरत है कि यह मोदी सरकार ही है जो ED, CBI, IT और अन्य एजेंसियों को नियंत्रित करती है. यह केंद्र सरकार ही है जो नेशनल हाईवेज, रेलवे और अन्य बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए कॉन्ट्रैक्ट्स देती है.
LIVE: Congress party briefing by Shri @Jairam_Ramesh at AICC HQ. https://t.co/BEVGngr1uE
— Congress (@INCIndia) March 23, 2024
इलेक्टोरल बांड दाताओं और प्राप्तकर्ताओं के मिलान किए गए डेटाबेस को जब कॉन्ट्रैक्ट्स, प्रोजेक्ट क्लीयरेंस (मंज़ूरी), छापे और इस तरह के अन्य घटनाओं पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के साथ जोड़ा जाता है, तो सबसे पहले भ्रष्टाचार को वैध करने की एक स्पष्ट और बेहद घटिया तस्वीर सामने आती है. इस अपारदर्शी स्कीम ने यह सुनिश्चित किया कि प्रीपेड रिश्वत, पोस्टपेड रिश्वत और यहां तक कि छापे के बाद की रिश्वत को भी अब Electoral Bond के रूप में बैंकिंग चैनल के माध्यम से भेजा जा सकता है.
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यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि, यह वही प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने ‘काला धन वापस लाने’ की गारंटी दी थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने भ्रष्टाचार को वैध बनाया और फिर इसे छिपाने की पूरी कोशिश की.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश के X अकाउंट (@Jairam_Ramesh) से…
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Last Updated on March 23, 2024 6:28 pm