पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. इधर गाय एक बार फिर से राजनीतिक बहस का मुद्दा बन गई है. हाल ही में आरजेडी के नेता शिवानंद तिवारी ने सावरकर और गाय को लेकर एक बयान दिया. लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाने वाले शिवानंद तिवारी ने न्यूज़ एजेंसी ANI को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि वीर सावरकर ने साल 1923 में पहली बार हिंदुत्व शब्द का इस्तेमाल किया था. सावरकर के अनुसार हिंदू और ‘हिंदुत्व’ दोनों अलग-अलग हैं. मैं गोमांस वाली बात तो नहीं जानता हूं. लेकिन मैंने वीर सावरकर को पढ़ा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि कोई जानवर मनुष्य का मां, बाप कैसे हो सकता है. ऐसे में गाय को अपनी मां कहना मानव जाति का अपमान है.
बीजेपी पर हमला करते हुए शिवानंद तिवारी ने कहा कि आप सावरकर की कुछ बातों को मानेगें और कुछ को नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है. आप उन्हें मानते हैं तो उनकी पूरी बात मानिए. शिवानंद तिवारी ने कहा कि देश में इन दिनों एकता, अखंडता और धर्म के लिए खतरनाक साजिश रची जा रही है. देश को बदलने की कोशिश नकारात्मक दिशा में हो रही है.
इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने अपने एक बयान में कहा था कि हिंदुत्व के विचारक वीर सावरकर ने गो पूजा का समर्थन नहीं किया था. उन्होंने कहा कि वीर सावरकर ने अपनी एक किताब में कहा था कि गोमांस खाने में कुछ भी ग़लत नहीं है. खुद के मल-मूत्र में लोटने वाली गाय हमारी माता कैसे हो सकती है? साथ ही सावरकर ने लिखा है कि हिंदू धर्म का हिंदुत्व से कोई लेना-देना नहीं है.
विनायक दामोदर सावरकर ने क्या कहा है
विनायक दामोदर सावरकर द्वारा मराठी भाषा में लिखी गई एक किताब ‘विज्ञाननिष्ठ निबंध’ के भाग एक और भाग दो, स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक प्रकाशन, मुंबई ने प्रकाशित की थी. किताब के अध्याय 1.5 का शीर्षक है जिसमें वीर सावरकर ने मराठी में लिखा है–गोपालन हवे, गोपूजन नव्हे. यानि गाय की देखभाल करिये, लेकिन पूजा नहीं. इस लेख से साबित होता है कि वीर सावरकर गो पूजा के विरोधी थे. सावरकर ने आगे इस लेख में लिखा है कि गाय अगर किसी की माता हो सकती है तो सिर्फ बैल की. हिंदुओं की बिल्कुल नहीं. गाय के पैरों की पूजा करके हिंदुत्व की रक्षा नहीं की जा सकती है.
क्या हिंदुओं ने कभी नहीं खाया गोमांस?
बीबीसी पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अंबेडकर ने ‘क्या हिंदुओं ने कभी गोमांस नहीं खाया?’ शीर्षक से एक निबंध लिखा था. जिसे उनकी किताब ‘अछूतः कौन थे और वे अछूत क्यों बने?’ में छापा गया है. अंबेडकर ने प्राचीन काल में हिंदुओं के गोमांस खाने की बात को साबित करने के लिए हिन्दू और बौद्ध धर्मग्रंथों का सहारा लिया था.
अंबेडकर ने अपने लेख में लिखा है, “ऋगवेद काल में आर्य खाने के लिए गाय को मारा करते थे, “ऋगवेद में (10. 86.14) में इंद्र कहते हैं, “उन्होंने एक बार 5 से ज़्यादा बैल पकाए’. ऋगवेद (10. 91.14) कहता है कि अग्नि के लिए घोड़े, बैल, सांड, बांझ गाय और भेड़ों की बलि दी गई. ऋगवेद (10. 72.6) से ऐसा लगता है कि गाय को तलवार या कुल्हाड़ी से मारा जाता था.”
साथ ही अंबेडकर ने लिखा कि एक समय हिंदू गायों को मारा करते थे और गोमांस खाया करते थे जो बौद्ध सूत्रों में दिए गए यज्ञ के ब्यौरों से साफ है. अंबेडकर ने बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय(111. .1-9) के उस अंश का हवाला भी दिया है, जिसमें कौशल के राजा पसेंडी के यज्ञ का ब्यौरा मिलता है. संयुक्त निकाय में लिखा है, “पांच सौ सांड, पांच सौ बछड़े और कई बछियों, बकरियों और भेड़ों को बलि के लिए खंभे की ओर ले जाया गया.”
आखिर में डॉ. भीमराव अंबेडकर लिखते हैं, “इसमें कोई संदेह नहीं कि एक समय ऐसा था जब हिंदू, जिनमें ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनों शामिल थे, न सिर्फ़ मांस बल्कि गोमांस भी खाते थे.”
निष्कर्ष
यानी स्पष्ट है कि चुनाव से ठीक पहले गाय और हिंदू धर्म पर बहस का मकसद किसी भी व्यक्ति को ज्ञान देना या उनकी जानकारी में इज़ाफा करना नहीं है. राजनीति में इसका इस्तेमाल वोट बटोरने के लिए होता है. ऐसे विषयों को एक भाषण या आर्टिकल में नहीं समेटा जा सकता है. इसलिए नेता अपनी सहूलियत के हिसाब लोगों की उग्रता का फ़ायदा उठाते हैं और इसका दूरगामी परिणाम समाज झेलता है.
Last Updated on December 30, 2021 2:33 pm