भारत के मुसलमानों का हाल ग़ज़ा-म्यांमार जैसा, ईरानी नेता ख़ामेनेई के बयान के मायने क्या?

तेहरान ने तब आखिरी बार 2002 के गुजरात दंगों के बाद और एक दशक पहले 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भारत की आलोचना की थी. जबकि 1992, 2002 और 2020 ऐसे क्षण हैं जब ख़ामेनेई ने भारतीय मुसलमानों पर बात की, उन्होंने बार-बार कश्मीर का मुद्दा उठाया.

India hits back Iran leader Khamenei remarks (PC-X)
India hits back Iran leader Khamenei remarks (PC-X)

India hits back at Iran: ईरान के सर्वोच्च नेता सैय्यद अली होसैनी ख़ामेनेई (Sayyid Ali Hosseini Khamenei) ने भारत को ‘मुस्लिम पीड़ित’ देश बताया है. उन्होंने भारत को मुसलमानों के लिए ग़ज़ा और म्यांमार जैसा बताया है. जिसके बाद भारत सरकार ने कड़ी आपत्ति ज़ाहिर करते हुए बयान की “कड़ी निंदा” की है. इसके साथ ही प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमें “गलत सूचना” “अस्वीकार्य” है.

इससे पहले सोमवार को ख़ामेनेई ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ”इस्लाम के दुश्मनों ने हमेशा एक इस्लामिक उम्मा के रूप में हमारी साझा पहचान के संबंध में हमें उदासीन बनाने की कोशिश की है. यदि हम #म्यांमार, #गाजा, #भारत, या किसी अन्य स्थान पर एक मुसलमान को होने वाली पीड़ा से बेखबर हैं तो हम खुद को मुसलमान नहीं मान सकते.

कुछ घंटों बाद ही विदेश मंत्रालय ने ख़ामेनेई के पोस्ट पर विरोध जताते हुए तीखे शब्दों में एक बयान जारी किया, जिसका शीर्षक था, “ईरान के सर्वोच्च नेता द्वारा की गई अस्वीकार्य टिप्पणियों पर बयान”.

इसमें कहा गया, ”हम ईरान के सर्वोच्च नेता द्वारा भारत में अल्पसंख्यकों के संबंध में की गई टिप्पणियों की कड़ी निंदा करते हैं. ये गलत सूचनाएं हैं और अस्वीकार्य हैं. अल्पसंख्यकों पर टिप्पणी करने वाले देशों को सलाह दी जाती है कि वे दूसरों के बारे में कोई भी टिप्पणी करने से पहले अपना रिकॉर्ड देख लें.”

संयोग से सैय्यद अली होसैनी ख़ामेनेई की टिप्पणी, महसा अमिनी की मृत्यु की दूसरी वर्षगांठ पर आई. 22 वर्षीय ईरानी महिला को हिजाब का विरोध करने के लिए गिरफ्तार किया गया और पुलिस हिरासत में पीट-पीटकर मार डाला गया. जिसके बाद ईरान में आक्रोश और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था.

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यह पहली बार नहीं है जब ईरान के आध्यात्मिक नेता ने भारत को ‘मुसलमान पीड़ित’ देश बताया है. लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वर्तमान टिप्पणी क्यों किया गया है.

इससे पहले मार्च 2020 में, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों की आलोचना होने के बाद, ख़ामेनेई ने दंगों को “मुसलमानों का नरसंहार” कहा था और भारत से “इस्लाम की दुनिया से अलगाव” को रोकने के लिए “चरमपंथी हिंदुओं और उनकी पार्टियों” का मुकाबला करने का आह्वान किया था.

1989 से ईरान के आध्यात्मिक नेता रहे ख़ामेनेई ने तब ट्वीट किया था: “दुनिया भर के मुसलमानों के दिल भारत में मुसलमानों के नरसंहार पर दुखी हूं. भारत सरकार को चरमपंथी हिंदुओं और उनकी पार्टियों का मुकाबला करना चाहिए और इस्लाम की दुनिया से भारत के अलगाव को रोकने के लिए मुसलमानों के नरसंहार को रोकना चाहिए. इसके बाद उन्होंने हैशटैग में # IndianMuslimslnDanger लिखा था.

अगस्त 2019 में, सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को रद्द करने के दो सप्ताह बाद, ख़ामेनेई ने कश्मीर में मुसलमानों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा था, “हम कश्मीर में मुसलमानों की स्थिति को लेकर चिंतित हैं. हमारे भारत के साथ अच्छे संबंध हैं, लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार कश्मीर के महान लोगों के प्रति उचित नीति अपनाएगी और इस क्षेत्र में मुसलमानों के उत्पीड़न और धमकाने को रोकेगी.”

हालांकि भारत ने उनकी टिप्पणियों को खारिज कर दिया था.

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तेहरान ने तब आखिरी बार 2002 के गुजरात दंगों के बाद और एक दशक पहले 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भारत की आलोचना की थी. जबकि 1992, 2002 और 2020 ऐसे क्षण हैं जब ख़ामेनेई ने भारतीय मुसलमानों पर बात की, उन्होंने बार-बार कश्मीर का मुद्दा उठाया है, आखिरी बार अगस्त 2019 में.

इससे पहले, उन्होंने 2017 में कश्मीर का उल्लेख किया था – सात वर्षों में पहली बार – जब उन्होंने कहा, “मुस्लिम दुनिया को यमन, बहरीन और कश्मीर के लोगों का खुलकर समर्थन करना चाहिए और उन पर हमला करने वाले उत्पीड़कों और अत्याचारियों को अस्वीकार करना चाहिए.”

आखिरी बार जम्मू-कश्मीर में हिंसा का मुद्दा ईरानी नेताओं द्वारा स्पष्ट रूप से 2010 में उठाया गया था. जब ना केवल ईरानी सर्वोच्च नेता, बल्कि देश के विदेश मंत्रालय ने भी कश्मीर के बारे में सवाल उठाए थे.

2010 के जुलाई और नवंबर में, ख़ामेनेई ने कश्मीर में “संघर्ष” का समर्थन करने के लिए मुस्लिम समुदाय की आवश्यकता को उठाया था और इसे गाजा और अफगानिस्तान की श्रेणी में रखा था.

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भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर ईरानी चिंताओं की पृष्ठभूमि में 2010 में कश्मीर पर ईरान की बयानबाजी बढ़ गई थी. क्योंकि तब 2008 और 2009 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में ईरान के ख़िलाफ़ वोट किया था. मौजूदा बयान किस दबाव में है ये जानना बेहद ज़रूरी है.

Last Updated on September 17, 2024 11:27 am

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