झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार (Hemant Soren Govt) ने बाइक चलाने वालों को बड़ी राहत देने का ऐलान किया है. दुपहिया वाहन के लिए पेट्रोल पर प्रति लीटर 25 रुपये की राहत (Petrol Rates Cut in Jharkhand) देने की बात कही गई है. हालांकि झारखंड वासियों को यह राहत 26 जनवरी 2022 से मिलेगी. इस सस्ते पेट्रोल का लाभ लेने के लिए एक और शर्त है. उनके पास बीपीएल कार्ड होना चाहिए. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस बात की जानकारी देते हुए बताया है कि 26 जनवरी से झारखंड में बीपीएल कार्ड धारकों को पेट्रोल और डीजल 25 रुपये सस्ता मिलेगा.
झारखंड पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन पिछले काफी दिनों से पेट्रोल-डीजल पर 5% वैट वैट दर घटाने की मांग कर रहा था. डीलर्स एसोसिएशन के मुताबिक अगर सरकार वैट की दर 22% से घटकर 17% कर दे तो लोगों को बड़ी राहत मिल सकती है. एसोसिएशन ने आगे कहा कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा में डीजल की कीमत कम है. ऐसे में झारखंड के वाहन मालिक पड़ोसी राज्यों से डीजल भरवा रहे हैं और उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है.
आम लोगों को बड़ी राहत
झारखंड सरकार के इस फ़ैसले से आम लोगों को तो राहत मिलेगी ही छोटे-बड़े कारोबार और व्यापार को भी फ़ायदा होगा. ज़्यादातर फैक्ट्रियों या दुकानों में काम करने वाले लोग यातायात के लिए मोटरसाइकिल का उपयोग करते हैं. इसके अलावा ईकॉमर्स कंपनियों या फूड कंपनियों के लिए काम करने वाले डिलीवरी ब्वॉय भी मोटरसाइकिल से ही आना जाना करते हैं. पिछले कुछ महीनों से पेट्रोल के दाम लगातार 100 के पार चल रहे हैं और यह हालात तब है जब केंद्र सरकार अलग से छूट देने का ऐलान कर चुकी है. धीरे धीरे लोगों ने इसे न्यू नॉर्मल मान लिया और महंगाई को दैवीय प्रकोप समझते हुए स्वीकार कर लिया है.
कोरोना महामारी की वजह से लोगों के पास नौकरियों के अवसर कम हैं. ऐसे में अपने गुज़र बसर के लिए लोगों ने महंगाई के साथ जीना सीख लिया. लेकिन इस स्वीकार्यता के बाद उनकी आमदनी बेहद कम हो गई है. उम्मीद की जा रही है कि सोरेन सरकार के इस फ़ैसले के बाद दैवीय अभिशाप झेल रहे आम लोगों को बड़ी राहत मिलेगी. इसके अलावा जब इनके पास पैसा होगा तो ये अपनी आजीविका पर ज़्यादा खर्च करेंगे और इससे बाज़ार मज़बूत होगा.
अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने का नया मॉडल
सवाल यह उठ रहा है कि जिस तरह से सरकारें अपना राजस्व बढ़ाने के लिए लोगों पर महंगाई का बोझ देने से नहीं झिझक रही है और इस फ़ैसले का दुष्प्रभाव वे लोग झेल रहे हैं जिनकी जेब में वाक़ई जीने भर के ही पैसे हैं. क्या इस मॉडल के ज़रिए सराकरें अपना राजस्व भी बढ़ा सकती है और ग़रीबों पर महंगाई की ज़्यादा मार ना पड़े इसको भी बैलेंस कर सकती है?
मसलन ट्रैक्टर, ट्रक और छोटी चार पहिया वाहन के लिए डीजल के अलग दरे हों और बड़ी बड़ी मंहगी गाड़ियों के लिए अलग दाम. बिजली की दरों में भी यूनिट की खपत के हिसाब से भी रेट तय हों. 100 यूनिट बिजली खपत करने वालों के लिए दाम सबसे कम, 200 यूनिट वालों के लिए उससे ज़्यादा और आगे भी इसी क्रम में बढ़ता रहे (वर्तमान में कई राज्यों में लागू है). यह फॉर्मूला और कहां कहां लागू किया जा सकता है वह एक चर्चा का विषय हो सकता है.
एक बड़ा वर्ग नौकरियों या शिक्षा में आरक्षण को भी जातीय आधार से हटाकर आर्थिक आधार पर करने की मांग करता रहा है. तो क्या यह जीएसटी टाइप अलग अलग स्लैब बनाकर इस तरह से बंटवारा किया जा सकता है? कम से कम डीजल-पेट्रोल को इस आधार पर सस्ता करने से खाद्य पदार्थ या अन्य ज़रूरी वस्तुओं के दाम थोड़े नियंत्रित तो हो ही सकते हैं.
क्या है परेशानी?
हालांकि एक सच यह भी है कि इस समय दुनिया में जितनी भी कुल संपत्ति है, उसका सिर्फ 2 प्रतिशत हिस्सा 50 प्रतिशत लोगों के पास है जबकि 10 प्रतिशत अमीरों के पास 76 प्रतिशत हिस्सा है. वहीं अगर भारत की बात करें तो भारत में 200 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति वाले लोगों और कंपनियों की संख्या छह हजार है. 2.5 लाख लोग ही ऐसे हैं, जिनकी संपत्ति 7.5 करोड़ रुपये से अधिक है. सरचार्ज को मिला कर इनसे 67 प्रतिशत आयकर लिया जाता है, जो सबसे ऊंची दरों में से एक है. इनकी दरों को और बढ़ाने के उलटे नतीजे होंगे. यानी कि अगर एक बड़े वर्ग को राहत देने की कोशिश की तो शायद हमारी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है.
आंकड़े क्या कहते हैं?
केंद्र सरकार ने अगस्त- 2020 में पिछले 5 सालों में इनकम टैक्स भरने वाले लोगों का आंकड़ा जारी किया था. सरकारी आंकड़ों के अनुसार हमारे देश की कुल आबादी 130 करोड़ से अधिक है. जबकि देश में केवल 1.5 करोड़ लोग ही इनकम टैक्स देते हैं. यानी कुल आबादी से इसकी तुलना की जाए तो इनकम टैक्स देने वालों की संख्या देश में एक फीसदी से थोड़ी अधिक है.
वहीं अगर 20 साल से अधिक उम्र के आयकर दाताओं का आंकड़ा देखें तो केवल 1.6 फीसदी लोग ही इनकम टैक्स देते हैं. आयकर विभाग के मुताबिक (पिछले 5 सालों के आंकड़े के अनुसार) टैक्स देने वालों में 57% की आमदनी 2.5 लाख रुपये से कम है. वहीं, टैक्स देने वाले लोगों में केवल एक फीसदी की सालाना कमाई 50 लाख रुपये से अधिक है. यानी 130 करोड़ की आबादी में करीब डेढ़ लाख लोगों की आमदनी सालाना 50 लाख रुपये से अधिक है. जबकि टैक्स देने वाले लोगों में 18 फीसदी की कमाई 2.5 से 5 लाख के बीच है. 5 से 10 लाख सालाना कमाई करने वाले लोगों की संख्या 17 फीसदी है. वहीं 10 से 50 लाख की सालाना कमाई वाले महज 7 फीसदी लोग ही हैं.
Last Updated on December 30, 2021 2:33 pm