Work Pressure ने 26 साल की अन्ना सेबेस्टियन की ली जान, EY में करती थी काम?

मीडिया संस्थान, ख़ास तौर पर टेलिविजन चैनलों में काम का तनाव, नौकरियों पर लटकती तलवार बहुत से मामलों में जानलेवा साबित हुए हैं. फिर भी मीडिया में इस पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखती.

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भारत देश में गरीबी से मृत्यु सामान्य बात लगती है. लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि किसी की ऑफ़िस के तनाव (Work Pressure) की वजह से मृत्यु हो गई हो तो? शायद आपको यह बात झूठी लगे. तो इस ख़बर को एक बार पढ़ लीजिए. मशहूर मल्टीनेशनल कंपनी EY (अर्न्स्ट एंड यंग) की युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट की मौत काम के तनाव की वजह से हो गई. कोच्चि की रहने वाली 26 साल की अन्ना सेबेस्टियन की कार्डियक अरेस्ट से मौत को लेकर देश भर में चर्चा हो रही है. सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर जब तीखी बहस चली तो केंद्र सरकार भी हरकत में आ गई.

केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने अन्ना सेबेस्टियन की मृत्यु के हालात की जांच के आदेश दिए हैं. अन्ना सेबेस्टियन पेरयिल की मां अनीता का आरोप है कि Work Pressure की वजह से उनकी बेटी की मौत हुई. उन्होंने कंपनी के प्रबंधन को एक चिट्ठी लिख कर अपना दुख और आक्रोश जताया. अनीता की चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद नाराज़ प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई और निजी कंपनियों की कार्यसंस्कृति को लेकर तीखी बहस छिड़ गई.

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इस मामले पर एक्स पर एक पोस्ट किया है. उन्होंने कहा कि युवती की मां का पत्र झकझोर देने वाला है. यह किसी एक कंपनी या विभाग की बात नहीं, बल्कि पूरे देश के हालात ऐसे ही हैं. देश की सरकार को इसे एक चुनौती की तरह लेना चाहिए.

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वहीं अर्न्स्ट एंड यंग के भारत प्रमुख राजीव मेमानी ने चुप्पी तोड़ते हुए इस दुर्घटना पर दुख जताया और परिवार को मदद का भरोसा दिया. लेकिन इस बात से इनकार किया कि अन्ना सेबेस्टियन की मृत्यु के पीछे किसी तरह का कोई Work Pressure था.

भारत में निजी संस्थानों की शोषक और तनावपूर्ण कार्यसंस्कृति की चर्चाओं के बीच, इंफोसिस के कर्ताधर्ता नारायण मूर्ति ने 70 घंटे काम करने की संस्कृति विकसित करने की बात कह कर नया विवाद छेड दिया था. मीडिया संस्थान, ख़ास तौर पर टेलिविजन चैनलों में काम का तनाव, नौकरियों पर लटकती तलवार बहुत से मामलों में जानलेवा साबित हुए हैं. फिर भी मीडिया में इस पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखती. हिंदी चैनलों में तो बिल्कुल ही नहीं, जबकि हिंदी के अखबारों के रास्ते आई शोषण की परंपरा वहां काफी समृद्ध हो चुकी है.

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भला हो सीएनएन न्यूज 18 का, जहां शुक्रवार सुबह इस विषय पर एक संक्षिप्त ही सही लेकिन सार्थक बातचीत देखने को मिली. अफसोस की बात यह है कि मुख्यधारा के मीडिया के विकल्प होने का ढोल पीटते यू ट्यूब चैनल भी ऐसे मुद्दों पर बात करने के बजाय केवल राजनीतिक बतकही में लगे रहते हैं. वैकल्पिक मीडिया भी उन विषयों को नहीं छूता जो मुख्यधारा के मीडिया से ग़ायब है.

वरिष्ठ पत्रकार Amitaabh Srivastava के फेसबुक वॉल पोस्ट इनपुट के साथ. 

Last Updated on September 20, 2024 2:48 pm

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