अंतरिक्ष में फंसी Sunita Williams की पृथ्वी पर वापसी में ये है परेशानी?

धरती पर सुरक्षित वापसी के बाद भी अंतरिक्ष यात्रियों को नॉर्मल होने में कम से कम 45 दिन का वक्त लगता है. कभी कभी ये वक्त एक साल तक का भी हो सकता है.

Sunita Williams को 12 मार्च को धरती पर वापस लाने का प्लान
Sunita Williams को 12 मार्च को धरती पर वापस लाने का प्लान

59 साल की अंतरिक्ष यात्री Sunita Williams की दो तस्वीरें हैं. वो पिछले साल 5 जून को अपने तीसरे स्पेस मिशन के लिए रवाना होने से पहले कैसी थीं, और अब इतना वक्त अंतरिक्ष में रहने के बाद कैसी दिखाई दे रही हैं. धंसे गाल और ढांचे जैसा सुनीता का ये शरीर देखकर डॉक्टर भी फ़िक्र जता चुके हैं. दिवंगत कल्पना चावला के बाद भारतीय मूल की दूसरी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट पर सवार होकर 5 जून 2024 को अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी.

मिशन पायलट सुनीता के साथ बुच विलमोर मिशन कमांडर के तौर पर स्पेसक्राफ्ट पर सवार थे. ये बोइंग और अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का जाइंट क्रू फ्लाइट टेस्ट था. सुनीता और बुच को आठ दिन में मिशन पूरा करने के बाद धरती पर लौट आना था लेकिन स्पेसक्राफ्ट में तकनीकी दिक्कतों के चलते दोनों आठ महीने से अंतरिक्ष में टंगे हैं.

धरती से करीब 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन यानि ISS में सुनीता और बुच फंसे हैं. दोनों की वापसी पहले कई बार टल चुकी हैं.
लेकिन अब अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने 12 मार्च को सुनीता और बुच को धरती पर वापस लाने का प्लान बनाया है. नासा ने 11 फरवरी को एक्स पर एक पोस्ट में ये जानकारी दी.

NASA और SpaceX मिलकर कराएंगे वापसी

नासा और इलॉन मस्क की कंपनी SpaceX मिलकर वापसी के इस मिशन को अंजाम देंगे. तब तक सुनीता और बुच अंतरिक्ष मे स्पेस सेंटर में 280 दिन बिता चुके होंगे.
ये पहला मौका नहीं है जब सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर को अंतरिक्ष से धरती पर वापस लाने का प्रयास किया गया.

ऐसे ही मिशन पर गए बोइंग स्पेसक्राफ्ट को 7 सितंबर 2024 को बिना सुनीता और बुच के ही धरती पर लौटना पड़ा था. फिर 11 सितंबर 2024 को सुनीता और बुच ने दुनिया की पहली स्पेस कॉन्फ्रेंस में अपनी परेशानियां बताई थीं.

डॉनल्ड ट्रम्प ने 20 जनवरी 2025 को अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर दूसरी बार कमान संभाली तो अपनी प्रायर्टीज़ के तहत उन्होंने इलॉन मस्क से कहा – “बहादुर अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाया जाए जिन्हें जो बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन ने अंतरिक्ष में ही छोड़ दिया”.

पहले ख़बर आई थी कि सुनीता और वापसी के लिए नया कैप्सूल बनाया जाएगा. लेकिन देरी को देखते हुए अब पुराने SpaceX ड्रैगन कैप्सूल से ही इस मिशन को पूरा करने का फैसला किया गया है. 12 मार्च को नासा SpaceX के ड्रैगन कैप्सूल से क्रू-10 को ISS भेजेगा. इसमें एनी मैकक्लेन, निकोल एयर्स, ताकुया ओनिशी और रोस्कोस्मोस होंगे. फिर इसी कैप्सूल से सुनीता और बुच को धरती पर वापस लाया जाएगा.

कल्पना चावला की मौत की वजह

नासा को 1 फरवरी 2003 का वो दिन भूला नहीं है जब भारतीय मूल की कल्पना चावला समेत 7 अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में मिशन पूरा करने के बाद कोलंबिया स्पेस शटल धरती पर वापस आ रहा था. ये शटल धरती के वायुमंडल में दाखिल होने वाला ही था कि फोम का एक बड़ा टुकड़ा शटल के बाहरी टैंक से टूट कर अलग हो गया.

इसने शटल के बाएं विंग को तोड़ दिया. इससे हुए छेद से वायुमंडल की तमाम गैस शटल के अंदर बहने लगीं. इसके चलते सेंसर खराब हो गए और आखिर में कोलंबिया नष्ट हो गया और कल्पना समेत सातों अंतरिक्ष यात्री हमेशा हमेशा के लिए अंतरिक्ष में ही समा गए. उसी हादसे को देखते हुए नासा अब सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर की धरती पर सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए हर कदम फूंक फूंक कर उठा रहा है.

1 फरवरी 2003 को भारतीय मूल की कल्पना चावला समेत 7 अंतरिक्ष यात्रियों की धरती पर लौटते वक्त कोलंबिया शटल हादसे में मौत हो गई थी. आइए अब जानते हैं कि सुनीता और बुच की वापसी कैसे कराई जाएगी.

अंतरिक्ष में इंटरनेशनल स्पेस सेंटर यानि ISS में अमेरिकी स्पेसक्राफ्ट की पार्किंग के लिए अभी सिर्फ दो स्पॉट हैं. एक स्पॉट पर लगातार एक ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट खड़ा है ताकि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में आग लगने जैसी किसी इमरजेंसी में एस्ट्रोनॉट इस पर सवार हो सकें. ये एक लाइफ बोट की तरह है.

सुनीता और बुच ‘कैप्सूल क्रू 10’ से करेंगे धरती पर वापसी

ISS के दूसरे स्पॉट पर स्पेसक्राफ्ट आते जाते रहते हैं. यहीं पर SpaceX का ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट ‘कैप्सूल क्रू 10’ को लेकर पहुंचेंगा. इसके बाद सुनीता और बुच इसी कैप्सूल में बैठेंगे और अनकोडिंग प्रोसेस शुरू होगी.

बता दें कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन ISS मिनिमम 330 किलोमीटर और मैक्सिम 435 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के चारों और चक्कर लगा रहा है. वहीं धरती का वायुमंडल करीब 100 किलोमीटर ऊंचाई तक है. लौटते हुए स्पेसक्राफ्ट जब इसमें रीएंट्री करता है तो ये प्रोसेस सबसे ज़्यादा क्रिटिकल होता है.

अगर स्पेसक्राफ्ट का एंगल ग़लत हुआ तो ये धरती के वायुमंडल में नहीं घुस पाएगा, ऐसे में कैप्सूल अनिश्चितकाल के लिए स्पेस में ही रह जाएगा. स्पेसक्राफ्ट की रीएंट्री के वक्त वायुमंडल से घर्षण के वक्त बहुत ज़्यादा गर्मी होती है और तापमान 1500 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.

स्पेसक्राफ्ट के आगे टाइल्स और कार्बन फाइबर कम्पोजिट्स से बनी हीट शील्ड लगी होती हैं जो स्पेसक्राफ्ट को गर्म होने से रोकती हैं. तकनीकी खराबी हो तो स्पेसक्राफ्ट के जलने का खतरा रहता है.

अगर धरती के वायुमंडल में रीएंट्री के वक्त सब सही रहता है तो पैराशूट सिस्टम की सुरक्षा के लिए आगे लगी हीट शील्ड हटा दी जाती है. फिर दो ड्रैगन और तीन मुख्य पैराशूट स्पेसक्राफ्ट की रफ्तार को कम करते जाते हैं. फिर बेस हीट शील्ड डुअल एयरबैग सिस्टम को एक्सपोज करते हुए डिप्लॉय हो जाती हैं.

रिकवरी टीम कैसे करेगी काम?

छह प्राइमरी एयरबैग कैप्सूल के बेस पर डिप्लॉय रहेंगे जो लैंडिंग के दौरान कुशन की तरह काम करेंगे. लैंडिंग के दौरान कैप्सूल की रफ्तार करीब छह किलोमीटर प्रति घंटे की होगी. टचडाउन के बाद चालक दल पैराशूट हटाएगा, स्पेसक्राफ्ट की बिजली बंद करेगा और मिशन कंट्रोल लैंडिंग और रिकवरी टीमों से सैटेलाइट फोन कॉल के जरिए संपर्क करेगा.

रिकवरी टीम कैप्सूल के चारों ओर एक टेंट लगाएगी और स्पेसक्राफ्ट में ठंडी हवा पंप करेगी. कैप्सूल का हैच खुलने और लैडिंग के एक घंटे से भी कम समय बीतने के बाद दोनों एस्ट्रोनॉट्स को हेल्थ चेक के लिए मेडिकल व्हील में अस्पताल भेज दिया जाएगा.

धरती पर सुरक्षित वापसी के बाद भी अंतरिक्ष यात्रियों को नॉर्मल होने में कम से कम 45 दिन का वक्त लगता है. कभी कभी ये वक्त एक साल तक का भी हो सकता है. इसे ऐसे समझिए धरती पर ग्रैविटी की तुलना में अंतरिक्ष में ग्रैविटी शून्य या बहुत कम होती है जिसे माइक्रोग्रैविटी कहा जाता है. जो जो बदलाव आ सकते हैं, उनमें धरती पर चलना भूल जाना भी शामिल है.

धरती पर चलना भूल जाना
दरअसल अंतरिक्ष में ग्रैविटी न होने की वजह से मांसपेशियों को काम नहीं करना पड़ता. वहां एस्ट्रोनॉट्स एक तरह से उड़ते या हवा में तैरते जैसे दिखते हैं. ऐसे में लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने से मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं जिसे मस्कुलर वीकनेस भी कहा जाता है. बोन डेनसिंटी एक फीसदी कम हो जाती है. इससे पैर, पीठ और मांसपेशियों पर ज्यादा असर होता है.

ऐसे में अंतरिक्ष से लौटने के बाद लंबे समय तक धरती पर चलने में परेशानी होती है. अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली को शरीर की ताकत बढ़ाने के लिए फिजिकल थेरेपी लेनी पड़ी थी.

शरीर के संतुलन में परेशानी
हमारे कानों और मस्तिष्क में एक वेस्टीबुलर सिस्टम होता है. ये हमारे शरीर का बैलेंस बनाए रखने में मदद करता है. अंतरिक्ष में ग्रैविटी न होने की वजह से ये सिस्टम ठीक से काम नहीं करता. 21 सितंबर 2006 को अमेरिकी एस्ट्रोनॉट हेडेमेरी स्टीफेनीशिन-पाइपर ‘शटर अटलांटिस मिशन’ के तहत 12 दिन अंतरिक्ष में रह कर धरती पर लौटीं.
स्वागत समारोह में बोलना शुरू करते ही हेडेमेरी के पैर लड़खड़ाने लगे और वो गिर पड़ीं. धरती पर लौटने में कुछ दिन तक खड़ा होने, संतुलन बनाने, और शरीर के विभिन्न अंगों जैसे आंख, हाथ, पैर में समन्वय बनाने में समस्या आती है. यही वजह है खड़े होने में परेशानी होती है.

चीज़ें हवा में ऐसे ही छोड़ देना
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में कोई एस्ट्रोनॉट चीज़ों को ऐसे ही छोड़ देता है तो वो हवा में तैरती रहती हैं. धरती पर लौटने के बाद भी ये आदत एकदम से नहीं जाती. नासा के टॉम मार्शबर्न ने एक इंटरव्यू में अनुभव साझा करते हुए वाटर बोटल और पैन को हवा में छोड़ दिया. तब उन्हें याद आया कि वो धरती पर हैं. उनके मुंह से फिर निकला- “स्टुपिड ग्रैविटी”.

आंखों की समस्या
अंतरिक्ष में किसी एस्ट्रोनॉट के आंसू भी आते हैं तो वो गिरते नहीं, तैरते रहते हैं. स्पेस में ज़ीरो ग्रैविटी की वजह शरीर का लिक्विड हिस्सा सिर की ओर बढ़ता है जिससे आंखों की पीछे की नसों पर दबाव पड़ता है. इसे स्पेसफ्लाइट एसोसिएटेड न्यूरो ओकुलर सिंड्रोम या सांस कहा जाता है.

कैनेडा के एस्ट्रोनॉट क्रिस हैडफील्ड को अंतरिक्ष में दोनों आंखों में समस्या हुईं तो उन्हें लगा कि कहीं हमेशा के लिए ही उन्हें दिखना न बंद हो जाए. धरती पर लौटने पर एस्ट्रोनॉट का शरीर एडजस्ट करता है तो आंखों पर सीधा असर पड़ता है. चश्मा लगाने की जरूरत भी महसूस हो सकती है.

इनके अलावा अंतरिक्ष यात्रियों को इम्यून सिस्टम कमज़ोर होना, डीएनए में बदलाव, कार्डियोवैस्कुलर प्रॉब्लम, मानसिक बीमारियों जैसी चुनौतियों का सामना कर पड़ सकता है.

आइए अब आपको थोड़ा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के बारे में बताते हैं. सबसे पहले ISS की कंट्रोल यूनिट को 1998 में रूसी रॉकेट से लॉन्च किया गया. 2 नवंबर 2000 को पहली बार प्रयोग के मकसद से एस्ट्रोनॉट्स यहां रहने पहुंचे. 2011 में ये बनकर तैयार हो गया. इसमें एक साथ छह एस्ट्रोनॉट्स रह सकते हैं.

ISS की लागत 15 हज़ार करोड़ डॉलर है. ये 109 मीटर लंबा है. धरती पर इसका वजन करीब 4 लाख बीस हजार किलोग्राम है.इसमें छह स्लीपिंग रूम, दो बाथरूम और एक जिम है जिसमें एस्ट्रोनॉट रोज दो घंटे वर्कआउट करते हैं. ISS धरती के चारों ओर 28 हज़ार 163 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चक्कर काट रहा है. ISS 90 मिनट में धरती का एक चक्कर काट लेता है.

सुनीता विलियम्स कौन हैं?

अब सुनीता विलियम्स के बारे में जानिए. सुनीता विलियम्स का जन्म 19 सितंबर 1965 को अमेरिका के ओहियो प्रांत के यूक्लिड में हुआ.
सुनीता के पिता दिवंगत डॉ. दीपक पांड्या भारतीय मूल के थे और उनकी मां बोनी पांड्या स्लोवाक मूल की हैं. सुनीता की शादी ज्यूडिशियल सिक्योरिटी डिविजन के चीफ इंस्पेक्टर, मार्शल और हेलीकाप्टर पायलट माइकल जे विलियम्स से हुई.

सुनीता ने 1983 में Massachusetts के Needham High School से पढ़ाई पूरी की. इसके बाद, 1987 में उन्होंने United States Naval Academy से physics में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. US Navy में शामिल होने के बाद सुनीता ने 1995 में Florida Institute of Technology से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल की.

सुनीता ने जून 1998 में नासा ज्वाइन किया. लंबी ट्रेनिंग के बाद, दिसंबर 2006 में उन्होंने अपने पहले अंतरिक्ष मिशन पर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की यात्रा की. 2012 में सुनीता दोबारा अंतरिक्ष में गई. अपने इन अंतरिक्ष मिशन के दौरान, सुनीता ने कई अनोखे रिकॉर्ड बनाए. उन्होंने अंतरिक्ष में रहते हुए ट्रेडमिल पर दौड़कर बोस्टन मैराथन में भाग लिया, जो एक अनोखी उपलब्धि थी.

उन्होंने 7 बार स्पेसवॉक किया और 50 घंटे से अधिक समय अंतरिक्ष में चहलकदमी की. यह रिकॉर्ड आज भी उनके नाम दर्ज है. अपने शानदार करियर के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार मिले. उन्हें नासा स्पेस फ्लाइट मेडल और नौसेना प्रशस्ति पदक जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया. भारत सरकार ने 2008 में उन्हें “पद्म भूषण” पुरस्कार देकर सम्मानित किया.

बहरहाल, दुनिया में हर किसी को अब इंतज़ार है सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की धरती पर सुरक्षित वापसी का.

वरिष्ठ पत्रकार खुशदीप सहगल के फेसबुक पेज से…

Last Updated on February 15, 2025 5:54 pm

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