अब रोज़ाना 15-16 घंटे करने होंगे काम? अखिलेश ने युवाओं के नाम लिखा यह पत्र

आज जो लोग युवाओं को ये सलाह दे रहे हैं, वो दिल पर हाथ रखकर बताएं कि ये विचार उन्हें तब आया था क्या जब वो युवा थे और आया भी था और उन्होंने अपने समय में अगर 90 घंटे काम किया भी था तो फिर आज हम इतने कम ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी तक ही क्यों पहुंचे?

90 घंटे काम करने पर क्या बोले अखिलेश?
90 घंटे काम करने पर क्या बोले अखिलेश?

Akhilesh Yadav over 90-Hour Workweek debate: क्या अब भारत में लोगों को रोज़ाना 15-16 घंटे काम करने होंगे? यह सवाल पीएम मोदी के बेहद कीरबी माने जाने वाले नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत के बयान पर उठ रहे हैं. अमिताभ कांत ने हाल ही में युवाओं को 80-90 घंटे काम करने की सलाह दी थी. उन्होंने जापान, दक्षिण कोरिया और चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि मजबूत कार्य नीति के जरिए ही आर्थिक सफलता हासिल की जा सकती है. उन्होनें कहा कि भारतीयों को 2047 तक 30,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.

इससे पहले इंफोसिस के नारायण मूर्ति और एलएनटी के एसएन सुब्रह्मण्यम भी 70-90 घंटे काम करने की सलाह दे चुके हैं. तो क्या देश अब उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है?

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने अमिताभ कांत का नाम लिए बगैर कहा है कि कहीं वे इंसान की जगह रोबोट की बात तो नहीं कर रहे. उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, ‘
प्रिय यंग एम्प्लॉयीज़

जो लोग एम्प्लॉयीज़ को 90 घंटे काम करने की सलाह दे रहे हैं कहीं वो इंसान की जगह रोबोट की बात तो नहीं कर रहे हैं. क्योंकि इंसान तो जज़्बात और परिवार के साथ जीना चाहता है. और आम जनता का सवाल ये भी है कि जब अर्थव्यवस्था की प्रगति का फ़ायदा कुछ गिने चुने लोगों को ही मिलना है तो ऐसी 30 ट्रिलियन की इकोनॉमी हो जाए या 100 ट्रिलियन की, जनता को उससे क्या?

सच्चा आर्थिक न्याय तो यही कहता है कि समृद्धि का लाभ सबको बराबर से मिले, लेकिन भाजपा सरकार में तो ये संभव ही नहीं है. साथ ही सलाह देनेवाले भूल गये कि मनोरंजन और फ़िल्म उद्योग भी अरबों रुपए इकोनॉमी में जोड़ता है. ये लोग शायद नहीं जानते हैं कि एंटरटेनमेंट से लोग रिफ़्रेश्ड, रिवाइव्ड और री-एनर्जाइज़्ड फ़ील करते हैं, जिससे वर्किंग क्वॉलिटी बेटर होती है.

ये लोग न भूलें कि युवाओं के सिर्फ़ हाथ-पैर या शरीर नहीं, एक दिल भी होता है जो खुलकर जीना चाहता है और बात घंटों काम करने की नहीं होती बल्कि दिल लगाकर काम करने की होती है. क्वांटिटी नहीं, क्वॉलिटी ऑफ़ वर्क सबसे ज़रूरी होता है.

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सच तो ये है कि युवाओं की रात-दिन की मेहनत का सबसे ज़्यादा लाभ सबसे ऊपर बैठे हुए लोगों को बैठे-बिठाए मिलता है, इसलिए ऐसे कुछ लोग ‘90 घंटे काम करने’ जैसी इंप्रैक्टिकल सलाह देते हैं.

आज जो लोग युवाओं को ये सलाह दे रहे हैं, वो दिल पर हाथ रखकर बताएं कि ये विचार उन्हें तब आया था क्या जब वो युवा थे और आया भी था और उन्होंने अपने समय में अगर 90 घंटे काम किया भी था तो फिर आज हम इतने कम ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी तक ही क्यों पहुंचे?

वर्क एंड लाइफ़ का बैलेंस ही मानसिक रूप से एक ऐसा स्वस्थ वातावरण बना सकता है, जहां युवा क्रिएटिव और प्रॉडक्टिव होकर सही मायने में देश और दुनिया को और बेहतर बना सकते हैं.

अगर भाजपाई भ्रष्टाचार ही आधा भी कम हो जाए तो अर्थव्यवस्था अपने आप दुगनी हो जाएगी. जिसकी नाव में छेद हो उसकी तैरने की सलाह का कोई मतलब नहीं.’

बार-बार देश के बड़े उद्योगपतियों की तरफ से काम के घंटे बढ़ाए जाने को लेकर दिए जा रहे बयान और अब पीएम मोदी के बेहद क़रीबी का भी सुर में सुर मिलाना, कहीं कोई इशारा तो नहीं है?

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काम के घंटे को लेकर क्या है मौजूदा नियम?

बता दें, फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 में काम के घंटों को तय किया गया है. इसके मुताबिक, भारत की फैक्ट्रियों और प्रोडक्शन यूनिट्स में एक दिन में अधिकतम 9 घंटे और हफ्ते में 48 घंटे काम का समय तय है. अगर कोई व्यक्ति 9 घंटे की शिफ्ट करता है तो उसे खाना खाने के लिए एक घंटे का समय मिलना चाहिए.

साथ ही हफ्ते में एक अवकाश भी देना जरूरी है. नियम के मुताबिक अगर कोई कर्मचारी अपने तय समय से ज्यादा काम करता है तो उसे ओवरटाइम का पैसा मिलना चाहिए.

Last Updated on March 3, 2025 10:52 pm

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