बहुत-से लोग मुझसे पूछते हैं कि मेरा ईश्वर में विश्वास क्यों नहीं है. वे यह भी कहते हैं कि अब, जब मेरा जीवन समाप्त होने वाला है, मुझे ईश्वर की शरण ले लेनी चाहिए. लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता.
अगर मैं ईश्वर में विश्वास करता, तो सबसे पहले मैं यह पूछता कि जब गरीब लोग भूखे मरते हैं, जब किसानों का शोषण होता है, जब समाज में अन्याय व्याप्त है, तब वह ईश्वर कहां रहता है? क्या वह केवल राजा और धनवानों का संरक्षक है? क्या वह अन्याय के विरुद्ध लड़ने वालों की कोई मदद नहीं करता?
मैंने अपने जीवन में तर्कशीलता और विज्ञान का अनुसरण किया है. मुझे कभी भी ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण नहीं मिले. मेरा विश्वास है कि ईश्वर का विचार डर और अज्ञानता से उत्पन्न हुआ है. जब लोग प्राकृतिक घटनाओं को समझ नहीं पाते थे, तो उन्होंने ईश्वर की कल्पना कर ली. लेकिन अब विज्ञान ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रकृति अपने नियमों के अनुसार काम करती है.
कुछ लोग कहते हैं कि ईश्वर में विश्वास से मन को शांति मिलती है. लेकिन क्या यह केवल आत्म-संतोष नहीं है? क्या यह सच्चाई से मुंह मोड़ना नहीं है? यदि मैं गलत हूं, तो ईश्वर मुझे दंड क्यों नहीं देता? क्या वह इसलिए चुप है क्योंकि वह अस्तित्व में ही नहीं है?
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मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मेरा नास्तिक होना किसी अहंकार का परिणाम नहीं है. बल्कि, यह गहन विचार, अध्ययन और अनुभव का नतीजा है. मुझे मृत्यु का भय नहीं है. अगर ईश्वर है, तो वह मुझे दंड दे सकता है. लेकिन अगर वह नहीं है – और मुझे पूरा विश्वास है कि नहीं है – तो मेरी सोच सही साबित होगी.
मैं अपने देश और मानवता के लिए बलिदान देने जा रहा हूं. मैं यह कार्य किसी स्वर्ग की इच्छा से नहीं कर रहा हूं, बल्कि इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मुझे अपने लोगों की भलाई के लिए संघर्ष करना सही लगता है.
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अंत में, मैं यही कहूंगा कि मुझे अपने विचारों पर गर्व है. मैं नास्तिक हूं और रहूंगा. मुझे अपने जीवन और अपने विचारों पर कोई पछतावा नहीं है.
— भगत सिंह (लाहौर जेल, 5-6 अक्तूबर 1930)
Environmental & Socio- Political Activist Hansraj Meena के एक्स पेज (@HansrajMeena) से.
Last Updated on March 23, 2025 4:02 pm