पंक्चर बनानेवाले (Puncture Wala) देश के लिए बहुत ज़रूरी हैं. मैंने फर्राटा भरती कारों के मालिक पिचके टायर लेकर इंतज़ार करते देखे हैं. टायर में हवा ज़्यादा या कम हो तो खेल हो जाता है, कार लहरा ले लेती है और उस दिन कार मालिक को पंक्चर वाले की अहमियत पता चल जाती है. पंक्चर खुद लगाना पड़ जाए तब भी अहसास हो जाता है कि एसी में बैठ फर्राटे तभी भरे जा सकते हैं जब टायर सलामत हो.
पंक्चर लगाने वाले (Puncture Wala) सुनसान में बैठे हों तो लंबे सफर पर निकले लोगों को राहत का अहसास होता है. पंक्चर वाला ना मिले तो बाल में जेल लगाए ब्रो की सारी हेकड़ी छू हो जाती है. हमें मालूम है कि टायर का इतिहास लिखा जाएगा मगर उसकी उम्र बढ़ाने वाले पंक्चर वालों का नहीं लेकिन उन सभी बेनाम पंक्चर वालों के नंबर दीवारों से नहीं मिटाए जा सकते जो आधी रात को बेबसी में मिलाए जाते हैं.
उसके आने का आश्वासन मिलते ही लॉन्ग ड्राइव पर निकले बाबू अपनी प्रेयसी से कहते हैं- बस, दस मिनट और बेबी.. पंक्चर वाले भैया (Puncture Wala) आ रहे हैं.
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भैया आते भी हैं और झटपट हुनर दिखाकर मरियल सी मोटर साइकिल पर निकल जाते हैं ताकि उनके पेशे को हिकारत से देखनेवाले लोग अपनी मंज़िलों पर पहुंच सकें. याद रहे पंक्चर ना लगे तो छेद भरे नहीं जा सकते.. ना टायर के ना सिस्टम के. मजबूरी में सही कोई पंक्चर लगा रहा है ताकि आपकी गाड़ी चलती रहे.
एक निजी रेडियो चैनल से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉल से.
Last Updated on April 18, 2025 8:07 am