850 रुपये का मिनरल वाटर पीने वाले देश में गंदे पानी के लिए जान जोखिम में क्यों डाल रहीं महिला?

शायद अब वक्त आ गया है जब हम चांद की तरफ देखने की बजाय अपने गांव की धरती की प्यास बुझाने पर ध्यान दें. क्योंकि एक प्यासा गांव सिर्फ एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि हमारी असफलता की जीती-जागती तस्वीर है.

Water Crisis: जान हथेली पर रख पानी भरने को मजबूर महिलाएं!
Water Crisis: जान हथेली पर रख पानी भरने को मजबूर महिलाएं!

Water crisis in Maharashtra: आजादी के सात दशक बीत जाने के बावजूद भारत के कई कोने आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इनमें सबसे जरूरी है पानी—एक ऐसा संसाधन जो जीवन का आधार है, लेकिन विडंबना यह है कि आधुनिक भारत में, जहां चांद पर बस्ती बसाने के सपने देखे जा रहे हैं, वहीं देश के कई गांवों में लोग अब भी बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं.

ताजा मामला महाराष्ट्र के नासिक जिले के पेठ तालुका स्थित बोरीचिवारी गांव का है, जहां महिलाओं को जान जोखिम में डालकर लगभग 70 फीट गहरे सूखते कुएं में उतरना पड़ रहा है ताकि वे अपने परिवार के लिए थोड़ी मात्रा में गंदा पानी भर सकें. इस दृश्य को देखकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल दहल जाए. यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था का आईना है, जो दिखाता है कि हमारे देश में विकास का पैमाना केवल शहरी चमक-दमक तक सीमित रह गया है.

इस घटना का वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें महिलाएं कुएं के पास कतार में खड़ी हैं. कोई रस्सी के सहारे नीचे उतर रही है तो कोई अपनी बारी का इंतजार कर रही है. यह नजारा समाज की उस सच्चाई को उजागर करता है, जिसे हम जानबूझकर नजरअंदाज करते रहे हैं.

राजनीतिक दल चुनावों के समय ‘हर घर जल’, ‘चांद पर घर’, ‘हर खेत को पानी’ जैसे नारे जरूर लगाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद क्रूर है. 2025 के फरवरी महीने में नासिक जिला प्रशासन ने 8.8 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी थी, जिसका उद्देश्य गर्मी के मौसम में पानी की किल्लत झेल रहे गांवों को राहत देना था. योजना के तहत जल आपूर्ति टैंकरों की तैनाती होनी थी, लेकिन अगर बोरीचिवारी गांव की स्थिति देखी जाए, तो स्पष्ट है कि यह योजना कागजों में ही सिमटकर रह गई.

समस्या सिर्फ प्रशासन की विफलता नहीं है, यह समाज के उस पिछड़ेपन और स्वार्थ का भी परिणाम है, जहां हम अपने हितों से परे जाकर सोचने को तैयार नहीं हैं. शहरों में रहने वाले शायद यह सोचते हैं कि पानी तो हर घर में आता है, लेकिन ग्रामीण भारत की वास्तविकता बहुत अलग है. यहां की महिलाएं रोज कई किलोमीटर पैदल चलकर या कुएं में उतरकर पानी लाती हैं. उनके लिए पानी सिर्फ एक आवश्यकता नहीं, बल्कि एक संघर्ष है.

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2022 में भूजल सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ था कि पुणे, नासिक, धुले, जलगांव, नंदुरबार और अमरावती जिलों के 213 गांवों को अप्रैल से ही पेयजल संकट का सामना करना पड़ता है. इसके बावजूद, दीर्घकालिक समाधान की बजाय केवल तात्कालिक उपायों पर ध्यान दिया जाता है. यह वही मानसिकता है, जो किसी गंभीर बीमारी पर पट्टी बांधकर इलाज करने जैसी है.

2025 की भूजल सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट ने नासिक जिले के 776 गांवों में कुआं खोदने पर प्रतिबंध लगा दिया है ताकि भूजल का अत्यधिक दोहन रोका जा सके. परंतु इसका कोई विकल्प नहीं दिया गया. प्रतिबंध लगाना आसान है, लेकिन विकल्प देना एक दूरदर्शी प्रशासन की पहचान होती है. जब तक लोगों को वैकल्पिक जल स्रोत नहीं मिलेंगे, तब तक वे ऐसे खतरनाक तरीकों का सहारा लेने को मजबूर होंगे.

समाज का सबसे बड़ा संकट यह है कि हमने ‘सामूहिक हित’ की भावना को खो दिया है. आज हर व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार जीना चाहता है. हम ये सोचते हैं कि अगर हमारे घर में पानी है, तो हमें दूसरे की चिंता क्यों करनी चाहिए? यही सोच हमें पीछे धकेल रही है. जिस दिन हम ये समझेंगे कि एक गांव की प्यास भी हमारी जिम्मेदारी है, उस दिन असली विकास की शुरुआत होगी.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि समाज का विकास तब तक अधूरा है, जब तक उसका सबसे पिछड़ा हिस्सा भी साथ नहीं बढ़ता. बोरीचिवारी की महिलाएं जो आज पानी के लिए कुएं में उतर रही हैं, कल उनकी जगह कोई और भी हो सकता है. जल संकट एक ऐसी समस्या है जो सीमाओं से परे है.

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इस घटना से सबक लेने की जरूरत है. सरकारों को चाहिए कि वे तात्कालिक राहत के साथ-साथ स्थायी समाधान पर काम करें. जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन, नदियों और जल स्रोतों का पुनर्जीवन जैसे उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. इसके साथ ही समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी.

शायद अब वक्त आ गया है जब हम चांद की तरफ देखने की बजाय अपने गांव की धरती की प्यास बुझाने पर ध्यान दें. क्योंकि एक प्यासा गांव सिर्फ एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि हमारी असफलता की जीती-जागती तस्वीर है. और जब तक यह तस्वीर नहीं बदलती, तब तक किसी भी उपलब्धि पर गर्व करना सिर्फ एक भ्रम होगा.

Last Updated on April 21, 2025 5:51 pm

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