BJP के लिए इस बार UP में आसान नहीं राह, क्या यही सोचकर नेता छोड़ रहे पार्टी?

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) समेत देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. कुछ ही दिन पहले चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान किया है. तभी से यूपी में चुनावी सरगर्मी काफी तेज हो गई है. पिछले 24 घंटो में बीजेपी से 2 मंत्री और तीन विधायको के इस्तीफे से पार्टी को बड़ा झटका लगा है. बीजेपी (BJP) में श्रम मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) ने मंगलवार को योगी कैबिनेट से इस्तीफा देकर सबको चौका दिया. इसे बीजेपी के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है.

मौर्य के इस्तीफे के बाद 3 अन्य विधायको ने पार्टी का दामन छोड़ दिया. इनमें शाहजहांपुर की तिलहर सीट से विधायक रोशनलाल वर्मा, कानपुर के बिल्हौर से विधायक भगवती सागर और बांदा (Banda) जिले की तिंदवारी विधानसभा से विधायक ब्रजेश प्रजापति शामिल हैं.

वहीं बुधवार को बीजेपी के वन्‍य एवं पर्यावरण मंत्री दारा सिंह चौहान (Dara Singh Chauhan) ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. वह उत्तर प्रदेश के दूसरे मंत्री हैं, जिन्होंने अपना इस्तीफा दिया है.

स्वामी प्रसाद मौर्य पिछड़ों के बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं, जिनकी पकड़ गैर-यादव वोटों में बताई जाती है. स्वामी प्रसाद मौर्य को ‘मौसम विशेषज्ञ’ के रूप में भी जाना जाता है यानि वे उसी पार्टी में शामिल होते हैं जिसके जीतने के चांस ज्यादा रहते हैं. बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने 2017 में बीएसपी छोड़ बीजेपी का दामन थामा था.

बीजेपी से इस्तीफे के बाद इन्होंने अभी तक कोई पार्टी ज्वाइन नहीं की है, लेकिन दोनों ही सपा ज्वाइन करने वाले हैं. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दोनों नेताओं के साथ अपनी एक फोटो भी ट्वीटर पर साझा की है जो काफी वायरल हो रही है. अखिलेश यादव ने फोटो शेयर करते हुए दोनों का पार्टी में स्वागत किया है.

इस्तीफा देने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने मीडिया से कहा, ‘आज मैंने दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों, छोटे लघु मध्यम व्यापारियों के खिलाफ सरकार के रवैये को देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के मंत्रिमंडल से मैंने इस्तीफा दिया.’ और कमोबेश यही बात दारा सिंह ने अपने इस्तीफे में कही है. दोनों ही नेताओं ने बीजेपी पर दलितों और पिछड़ो को नज़रअंदाज करने का आरोप लगाया है.

इस्तीफों से उठ रहे सवाल

चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद से एकाएक इस्तीफों से कई सवाल पैदा हो रहे हैं. मसलन ये कि क्या प्रदेश में बीजेपी की पकड़ कमजोर हो रही है? क्या मोदी लहर जिसके दम पर बीजेपी लगातार जीत दर्ज करती आई है वो अब फीकी पड़ने लगी है? खासकर स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे को बीजेपी के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है.

स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान दोनों ही पिछड़ी जातियो से आते हैं. स्वामी प्रसाद जिस मौर्य समाज से आते है यूपी में उनकी संख्या लगभग 6 फीसदी है. मौर्य ओबीसी समाज की तीसरी बड़ी जाति मानी जाती है. जिसका असर 100 सीटों पर पड़ सकता है. प्रतापगढ़ ज़िले के रहने वाले 68 साल के स्वामी प्रसाद मौर्य तकरीबन तीन दशकों से यूपी की सक्रिय राजनीति का हिस्सा हैं. कुशवाहा, शाक्य और मौर्य, कोली जातियो में उनकी अपनी पैठ है. यूपी में लगभग 6 फीसदी मौर्य जाती के लोग रहते है, जिनका प्रभाव 100 सीटों पर सीधे पड़ता है.

वहीं मऊ जिले की मधुबन विधानसभा सीट से विधायक दारा सिंह काफी प्रभावशाली माने जाते है. उनके क्षेत्र से जुड़े 20 जिलों में उनका प्रभाव देखने को मिलता है. मधुबन विधानसभा में 3 लाख 93 हजार 299 मतदाता है जिसमें सबसे अधिक दलित वोट है.

यूपी के जातिय समीकरण की बात करे तो यहां सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का बताया जाता है. जिसमें 43 फीसदी वोट बैंक गैर यादव बिरादरी का है. 2017 में बीजेपी ने इसी सोशल इंजीनियरिंग के बल पर यूपी में सभी दिशाओं में जीत का परचम लहराया था. लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है.

पश्चिमी यूपी में किसान नाराज हैं. पूर्वी यूपी में इस बार सोशल इंजीनियरिंग की हवा निकल रही है. क्योंकि ओम प्रकाश राजभर से दारा सिंह चौहान तक सभी पार्टी से अलग हो चुके हैं. वहीं शहरों में जहां पर बीजेपी का दबदबा माना जाता है वहां पर महंगाई ने पहले ही लोगों की हवा निकाल दी है. ऐसे में एक के बाद एक लगातार हो रहे इस्तीफे से लोगों के मन में सवाल उठा रहे हैं कि क्या नेताओं को लगने लगा है कि इस बार बीजेपी के लिए यूपी की राह आसान नहीं रहने वाली है.

Last Updated on January 12, 2022 3:57 pm

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