भारत की सरकार को हमारे सांसदों और नेहरू पर सिंगापुर के पीएम का बयान रास नहीं आया है.
प्रधानमंत्री ली ह्सिइन लूंग ने अपनी संसद में लोकतंत्र पर बहस के दौरान जो कहा था, उसके प्रासंगिक हिस्से –
“ज़्यादातर देशों की नींव ऊंचे आदर्शों और नेक मूल्यों पर ही रखी जाती है. लेकिन दशकों और पीढ़ियों के साथ चीज़ें बदलती जाती हैं.”
“आज़ादी दिलाने वाले नेता अक्सर साहसी, सभ्य और विलक्षण क्षमता वाले नायाब शख़्स होते हैं. वो आग में ढलकर इंसानों और मुल्कों के अगुवा बनकर उभरते हैं. वो नेहरू होते हैं, वो डेविड बेन- गुरियन (इज़रायल के पहले प्रधानमंत्री) होते हैं.. ”
“ये नेता अपने लोगों और अपने देशों के लिए नया भविष्य गढ़ने की कोशिश करते हैं लेकिन शुरुआती उत्साह के बाद भावी पीढ़ियां उस ऊर्जा को बरकरार नहीं रख पाती हैं. राजनीति की सूरत बदल जाती है. लोगों को लगने लगता है राजनीति में ऐसे ही चलता है और इससे बेहतर की उम्मीद रखना बेमानी है. इसलिए राजनीति का स्तर गिरता जाता है. लोगों का भरोसा टूटता जाता है और देश गर्त में गिरता जाता है.”
भारत और इज़रायल की मिसाल देते हुए ली आगे कहते हैं, “कई राजनीतिक व्यवस्थाओं को आज उनके जनक नेता पहचान भी नहीं पाएंगे. बेन- गुरियन के इज़रायल की हालत ऐसी है कि वहां दो साल में चार बार चुनाव होने के बाद भी सरकार नहीं बन पाती. जबकि कई नेताओं और अधिकारियों पर आपराधिक आरोप हैं.”
“नेहरू का भारत एक ऐसा देश बन चुका है जहां अगर मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो लोकसभा के लगभग आधे सांसदों पर आपराधिक आरोप हैं, जिनमें क़त्ल और बलात्कार के आरोप भी शामिल हैं. हालांकि ये भी कहा जाता है कि इनमें से कई मुकदमे राजनीति से प्रेरित हैं.”
ख़बरों के मुताबिक भारत का विदेश मंत्रालय इस बयान से इस कदर उखड़ा है कि सिंगापुर के उच्चायुक्त तक को तलब किया गया है.
लेकिन क्यों?
प्रधानमंत्री ली ने भारतीय सांसदों को कठघरे में खड़ा किया इसलिए? लेकिन शुद्ध देसी एजेंसी एडीआर की साल 2019 की रिपोर्ट भी तो यही खुलासा करती है कि 2019 की लोकसभा मे चुने गए सांसदों में 43 फीसदी का आपराधिक रिकॉर्ड है.
12 जून 2014 को प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में अपने पहले भाषण में एक साल के भीतर संसद को दागियों से निजात दिलाने का वादा किया था. इससे पहले चुनावी रैलियों में कई बार ऐसा ही भरोसा दिलाया था. बीजेपी के घोषणा पत्र में भी यही वायदा था.
लेकिन एडीआर के मुताबिक 2019 की लोकसभा में साल 2014 के मुकाबले दागी सांसदों की तादाद 26 प्रतिशत बढ़ गई. मौजूदा लोकसभा में सबसे ज़्यादा 116 दागी सांसदों (39 प्रतिशत) वाली पार्टी बीजेपी ही है. इसके बाद कांग्रेस है जिसके 29 यानी कुल 57 फीसदी सांसदों का आपराधिक रिकॉर्ड है. दागी सांसदों के मामले में यूपीए सरकार के वक्त भी कोई बहुत उजला रिकॉर्ड नहीं था.
जब घर में ही खोट है तो बाहर वालों को उंगली उठाने से कैसे रोकेंगे? वैसे भी ये 80 और 90 के दशक की तरह “दूर हटो ऐ दुनिया वालो, हिंदुस्तान हमारा है..” वाले नारे का युग नहीं है. इंटरनेट के युग में दुनिया के हर जागरूक शहरी को पता होता है कि दूसरे देशों में क्या चल रहा है. लोकतंत्र में उनकी राय उनकी सरकारों के मार्फत कभी तो झलकेगी ही.
हमारे लिए दुख की बात ये है कि वो भारत जैसे उदाहरणों से सीख लेने की बात कर रहे हैं. अपने भाषण में ली आगे कहते हैं, “ हमारा लोकतंत्र मज़बूत रहेगा अगर शासक और शासित सही मूल्यों और कायदों पर चलते रहेंगे. लेकिन अगर हम अपने स्तर को ज़रा सा भी गिरने देंगे, ज़रा से झूठ को फौरी तौर पर भी नज़रअंदाज़ करेंगे, तो हमारी तरक्की का पहिया रुक जाएगा और ये हमारी नाकामी की शुरुआत होगी.”
(पुनश्च- कुछ ट्रोल पूछ रहे हैं कि कहीं भारत सरकार की नाराज़गी की वजह सिंगापुर के पीएम के भाषण में नेहरू की तारीफ़ तो नहीं है. उनकी राय में अगर ऐसा है तो प्रधानमंत्री ली ह्सिइन लूंग ख़ैर मना सकते हैं कि सीबीआई, ईडी सिंगापुर में छापे नहीं मार सकती!)
दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार की फेसबुक वॉल से.
Last Updated on February 23, 2022 12:02 pm