The Kashmir Files Review: कश्मीरी पंडितों के नाम पर बनाया जा रहा कत्लेआम का माहौल!

दुख किसके पास नहीं है? दुनिया का कौन सा व्यक्ति, समूह या समाज है जिसे दुख न झेला हो. जिसे पीड़ा और अपमान न मिला हो. बुद्ध कहते हैं दुख सार्वभौम है. अज्ञेय ने कहा कि दुख मांजता है. मूल सवाल यह है कि हम दुख का करते क्या हैं? क्या दुख हमें और बेहतर इंसान बनाता है या हिंसक झुंड में तब्दील कर देता है?

सारा फर्क दुख की इसी प्रोसेसिंग से पैदा होता है. जब किसी का दुख कुछ मुट्ठीभर धूर्त और शातिरों के हाथ का प्रोपेगंडा बन जाए तो वह दुख पूरी दुनिया को नारकीय बना देता है.

गांधी और हिटलर इसके बड़े उदाहरण हैं. बैरिस्टर मोहनदास को फिरंगियों ने दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से नीचे फेंक दिया वो महात्मा गांधी बन गए. एडोल्फ हिटलर को वियना के आर्ट्स कॉलेज ने बाहर कर दिया तो वो नाज़ीवाद प्रवर्तक बन गया. पूरी दुनिया को उसने झुलसा दिया. 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी.

प्रोसेसिंग का ही फर्क है. रिपीट कर रहा हूं दुख की प्रोसेसिंग हम कैसे करते हैं – सारा फर्क वहीं से पैदा होता है.

“द कश्मीर फाइल्स” नाम की प्रोपगंडा फिल्म यही दूसरा वाला काम कर रही है. इस फिल्म के रिलीज के बाद से भारत के थियेटर हिंदू नाजीवाद का शाखा स्थल बन चुके हैं.

बरमूडा पहने, पॉपकॉर्न चबाते हुए फिल्म देखने वाला मध्य वर्गीय हिटलर, मुस्लिम महिलाओं के साथ खुलेआम रेप की तरकीरे दे रहा है. इस फिल्म की आलोचना करने की वजह से एक दलित के नाक तक रगड़वाई गई. भारतीय समाज के लिए डूब मरने वाली बात है लेकिन हम सबकी खाल बहुत मोटी है.

यूपी में कुछ हिंदू लड़कों ने फिल्म देखने के बाद एक मुसलमान पर देशभक्ति निकाली तो मुसलमान ने चाकू मार कर घायल कर दिया. एक दरोगा साहब ने फिल्म और शराब के नशे में दो बच्चों को गोली मार दी. बच्चों ने उनके कहने के बाद भी भारत माता की जय नहीं बोला था.

अगर कानून का राज होता तो पहले दिन के बाद ही “कश्मीर फाइल्स” पर प्रतिबंध लग जाता. अगर सेंसर बोर्ड नाम की संस्था की मौत नहीं हुई होती तो “कश्मीर फाइल्स” रिलीज ही नहीं होती. इसे देखने के बाद कोई भी आसानी से समझ सकता है कि यह भावनाओं को भड़काने वाली फिल्म है लिहाजा इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए.

जिस देश की नैतिकता का नाड़ा इतना ढीला है कि स्मूच और सेक्स सीन से फिल्मों पर बैन लग जाता है, उसी देश का दिमाग इतना वीभत्स हो चुका है कि कश्मीरी पंडितों की एकांगी सच्चाई के नाम पर खुलेआम कत्लेआम का माहौल तैयार किया जा रहा है.

तिस पर सबसे शर्मनाक यह है कि हम उसे जस्टीफाई करने में लगे हैं. इससे भी खतरनाक़ यह है कि इस देश का प्रधानमंत्री और पूरी सरकारी मशीनरी – यह जानते हुए भी कि फिल्म से दंगा फैल सकता है – लोगों से फिल्म देखने की अपील करता है.

चूंकी यह फिल्म हमारे सामूहिक दुख की गलत प्रोसेसिंग कर उसे सांप्रदायिक विद्वेष में बदल रही है, समुदायों के बीच घृणा, हिंसा फैलाने का काम कर रही है – इसलिए इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए.

वरिष्ठ पत्रकार विश्वदीपक के फेसबुक वॉल से…

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए Newsmuni.in किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

Last Updated on March 26, 2022 4:23 pm

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