सब्जियां-फल बेचने वाले किसान कर रहे हैं घाटे की कमाई, क्या कहती है RBI Report?

RBI के अनुसार, “बाकी का हिस्सा थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं द्वारा बांटा जाता है. जबकि डेयरी जैसे अन्य क्षेत्रों में किसानों को कुल कीमत का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मिलता है.”

RBI Report on Fruits and Vegetables Farmer
RBI Report on Fruits and Vegetables Farmer

RBI Report reveals: सब्जियां और फल (vegetables-fruits) बेचकर किसानों का भला हो ना हो लेकिन थोक विक्रेता और खुदरा विक्रेता बाजार को खूब हो रहा है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की एक रिपोर्ट कहती है कि अगर उपभोक्ता बाजार से सब्जियां और फल खरीदते हैं और अगर वस्तु की कीमत 9 रुपये है तो छह रूपये थोक विक्रेता और खुदरा विक्रेता बाजार को जा रहा है. जबकि किसानों को महज तीन रुपये मिल रहे हैं.

RBI ने सब्जियों, दालों और सब्जियों पर अध्ययन किया. जिसके अनुसार किसानों को उपभोक्ता द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमत का लगभग एक तिहाई ही मिल रहा है, जबकि बेचने वालों को दो तिहाई. यह अध्ययन तीन प्रमुख सब्जियों – टमाटर, प्याज और आलू (TOP) पर किया गया है.

अध्ययन में कहा गया है कि उपभोक्ता रुपये में किसानों की हिस्सेदारी टमाटर के लिए लगभग 33 प्रतिशत, प्याज के लिए 36 प्रतिशत और आलू के लिए 37 प्रतिशत होने का अनुमान है.

आरबीआई पेपर का अनुमान है कि किसानों को केले के लिए 31 प्रतिशत, अंगूर के लिए 35 प्रतिशत और आम के लिए 43 प्रतिशत का हिस्सा मिलता है. यानी एक उपभोक्ता अगर 100 रुपये खर्च कर रहा है तो किसानों को तीन अलग-अलग फलों के लिए क्रमश: 31, 35 और 43 रुपये का लाभ मिलता है.

RBI के अनुसार, “बाकी का हिस्सा थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं द्वारा बांटा जाता है. जबकि डेयरी जैसे अन्य क्षेत्रों में किसानों को कुल कीमत का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मिलता है.”

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अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि दालों के मामले में उपभोक्ता जितना रुपया चुकाते हैं, उसका लगभग 70-75 प्रतिशत किसानों के पास वापस जाता है. चना दाल के मामले में 75 प्रतिशत, मूंग में 70 प्रतिशत और तूर दाल के मामले में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी किसानों की होती है.

क्या वजह है कि फल और सब्जी उपजाने वाले किसानों की कुल कीमत में हिस्सेदारी एक तिहाई ही है. RBI का अध्ययन कहता है कि अनाज और डेयरी उत्पादों में खरीद और विपणन (procurement and marketing) सिस्टम TOP सब्जियों से बेहतर है. इसका मुख्य कारण फसल की खराब होने की प्रकृति, क्षेत्रीय और मौसमी सघनता, पर्याप्त भंडारण सुविधाओं की कमी और बड़ी संख्या में बिचौलियों की उपस्थिति है.

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कोरोना काल के दौर में और उसके बाद 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान देश ने देखा कि TOP सब्जियों की आपूर्ति श्रृंखलाओं और विपणन बुनियादी ढांचे में काफी कमियां है. यही वजह है कि गर्मी के मौसम में उत्पादन लागत से कम कीमत मिलने पर अक्सर किसान अपना फसल फेंक देते हैं. टीवी स्क्रीन पर आपने कई बार इस तरह के विजुअल देखे होंगे. या फिर किसान मजबूरी में कम दामों पर अपना फसल बेच देता है. अध्ययन में इन बातों का बाक़ायदा ज़िक्र किया गया है.

Last Updated on October 7, 2024 1:36 pm

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