“पीरियड आया है तो क्लास के अंदर मत बैठो!” दलित बेटी सीढ़ियों पर परीक्षा देने को मजबूर क्यों?

कोयंबटूर में 13 साल की दलित बच्ची को पीरियड्स के कारण सीढ़ियों पर बैठाकर दिलवाई गई परीक्षा — ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की सच्चाई यही है क्या?

दलित बेटी को क्लासरूम से बाहर क्यों बिठाया?
दलित बेटी को क्लासरूम से बाहर क्यों बिठाया?

देश में करोड़ों रुपये ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ पर खर्च हो चुके हैं. अखबारों में विज्ञापन, दीवारों पर पोस्टर, टीवी पर भावुक स्पीच- लेकिन ज़मीन पर क्या हो रहा है?

कोयंबटूर ज़िले के एक स्कूल में 13 साल की दलित लड़की (Dalit Girl) को सिर्फ इसलिए क्लासरूम से बाहर बैठाया गया, क्योंकि उसे पीरियड्स (Periods) हो गया था. जी हां, 2025 में भी ये सोच जिंदा है.

बच्ची बाहर, परीक्षा सीढ़ी पर
बच्ची अरुंथथियार समुदाय से आती है. यानी समाज के उस तबके से जिसे आज भी बराबरी का दर्जा नहीं मिला. स्कूल में जब उसे पीरियड हुआ, तो उसकी टीचर ने प्रिंसिपल से कहा और प्रिंसिपल ने फैसला ले लिया: “क्लास में मत बैठाओ. बाहर सीढ़ियों पर बैठाओ. वहीं पेपर दे.”

मां ने वीडियो बनाया, हंगामा मच गया
बच्ची की मां ने जब ये देखा, तो दिल पसीज गया. उन्होंने वीडियो बना लिया. उसमें बच्ची बैठी है सीढ़ियों पर, हाथ में पेपर, नीचे ज़मीन पर बैठकर परीक्षा दे रही है. और पीछे मां की आवाज़ आती है:

“अगर किसी को पीरियड हो जाए, तो क्या उसे क्लास से बाहर निकाल देंगे? क्या ये सम्मान है? क्या यही शिक्षा है?”

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हेडमिस्ट्रेस सस्पेंड, स्कूल पर जांच शुरू
शिक्षा विभाग और पुलिस की प्रारंभिक जांच के बाद स्कूल की हेडमिस्ट्रेस को निलंबित कर दिया गया है. अधिकारियों का कहना है कि मां ने बच्ची के लिए ‘अलग व्यवस्था’ की मांग की थी, लेकिन सवाल उठता है —
क्या ‘अलग व्यवस्था’ का मतलब है बिना डेस्क के, सीढ़ियों पर बैठाकर परीक्षा देना?

“बेटी पढ़ाओ” की ज़मीन पर हकीकत

प्रधानमंत्री जी ने कहा था- “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ.” लेकिन सवाल है- बचाना किससे? पढ़ाना कैसे? जब एक मासूम बच्ची को मासिक धर्म की वजह से क्लास से बाहर किया जाए, जब उसकी जाति और जेंडर मिलकर उसे “कमज़ोर” बना दें, तो हम किस मुंह से नारा लगाते हैं?

मुद्दा सिर्फ उस बच्ची का नहीं
ये मामला एक आइना है, जो दिखाता है कि आज भी menstruation को “अशुद्ध” समझा जाता है. दलित बेटियों के साथ दोहरी मार पड़ती है. जाति की भी, जेंडर की भी. और हमारे शिक्षा संस्थान संवेदनशीलता की परीक्षा में फेल हो रहे हैं.

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📣 नारे नहीं, नीयत बदलनी चाहिए
अगर सच में बेटियों को पढ़ाना है, तो उन्हें इज़्ज़त देनी होगी. पीरियड कोई पाप नहीं है, और जाति कोई पैमाना नहीं. बेटी जब स्कूल जाए, तो डर नहीं — सम्मान महसूस करे. तभी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ सिर्फ योजना नहीं, बदलाव बनेगा.

Last Updated on April 10, 2025 9:21 pm

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