Shaila-Himanshi: देश की दो बेटियां, नफ़रत से भिड़ीं… अब रेप की धमकियां!

शैला नेगी को धमकी मिली—“झील में फेंक देंगे.” हिमांशी को सोशल मीडिया पर कहा गया—”देशद्रोही है.” क्या यह वही भारत है जो ‘बेटी बचाओ’ का नारा देता है? या अब नारा बदल गया है—‘बेटी चुप कराओ’?

शैला नेगी को धमकी, हिमांशी हो रहीं ट्रोल!
शैला नेगी को धमकी, हिमांशी हो रहीं ट्रोल!

 नैनीताल की शैला नेगी (Shaila Negi) और शहीद लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी नरवाल (Himanshi Narwal)—दो महिलाएं, जिन्होंने देश में फैल रही नफ़रत के खिलाफ़ आवाज़ उठाई, लेकिन बदले में मिली गालियां, ट्रोलिंग और रेप की धमकियां.

‘नफ़रत नहीं, इंसाफ चाहिए’—लेकिन क्या देश इसके लिए तैयार है?
पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब पूरा देश उबल रहा था, हिमांशी नरवाल ने कहा—”नफ़रत नहीं चाहिए, हमें न्याय चाहिए.” उधर नैनीताल में शैला नेगी ने एक बच्ची के साथ बलात्कार के विरोध में हुए सांप्रदायिक हिंसा का सामना करते हुए कहा—”यह बच्ची की लड़ाई है, धर्म की नहीं.” लेकिन इन बेटियों की आवाज़ों को सम्मान देने के बजाय सोशल मीडिया पर इन्हें रेप की धमकियां मिलने लगीं.

‘क्या बेटियों का बोलना गुनाह है?’
हिमांशी की गलती ये थी कि उन्होंने कश्मीरियों को दोषी ठहराने से मना किया. शैला नेगी की गलती थी कि उन्होंने भीड़ के सामने खड़े होकर कहा—”यह न्याय की लड़ाई है, नफ़रत की नहीं.” लेकिन देश का वह हिस्सा जो खुद को ‘राष्ट्रवादी’ कहता है, इन बेटियों की आवाज़ सुनने की बजाय उन्हें गालियों, धमकियों और ट्रोलिंग से चुप कराने में जुट गया.

बोलो मत, वरना...
शैला नेगी को धमकी मिली—“झील में फेंक देंगे.” हिमांशी को सोशल मीडिया पर कहा गया—”देशद्रोही है.” क्या यह वही भारत है जो ‘बेटी बचाओ’ का नारा देता है? या अब नारा बदल गया है—‘बेटी चुप कराओ’?

भीड़ की हिंसा बनाम इंसाफ की पुकार
शैला ने बीबीसी से बातचीत में बताया—”हमारी दुकान बंद नहीं की तो भीड़ ने गालियां दीं, सांप्रदायिक नारे लगाए, पूछा- ‘तू हिंदुस्तानी है या पाकिस्तानी?'” हिमांशी ने कहा—”हमारे सैनिक की मौत को नफ़रत फैलाने का बहाना न बनाएं.” पर यह देश अब नफ़रत सुनना चाहता है, इंसाफ नहीं.

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राजनीतिक समर्थन आया, लेकिन क्या वो काफ़ी है?
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शैला के परिवार से बात कर भरोसा दिया कि सरकार उनके साथ है. राष्ट्रीय महिला आयोग ने हिमांशी का समर्थन किया. पर सवाल उठता है—क्या यह समर्थन उन ट्रोल्स और धमकियों के सामने टिक पाएगा?

सोशल मीडिया की दो दुनिया
जहां एक ओर ट्रोल्स ने इन महिलाओं पर हमला किया, वहीं कुछ लोग इनकी हिमायत में भी सामने आए. “सच्चाई की कीमत हर बार बेटियों को ही क्यों चुकानी पड़ती है?” एक यूजर ने पूछा. शैला और हिमांशी के समर्थन में अब कई नागरिक, संगठनों और यूजर्स की आवाज़ जुड़ चुकी है.

धर्म के नाम पर नफ़रत का धंधा
जो लोग शैला और हिमांशी को गद्दार बता रहे हैं, वही लोग धर्म के नाम पर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं. ऐसे लोग जब ‘इंसाफ’ की बात करते हैं, तो दरअसल वे सिर्फ नफ़रत को जस्टिफाई करने की कोशिश कर रहे होते हैं.

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क्या अब बोलने का हक सिर्फ भीड़ को है?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या अब लोकतंत्र में किसी आम नागरिक को हिंसा और नफ़रत के खिलाफ बोलने का हक़ नहीं है? क्या अब वही देशभक्त कहलाएगा जो चुप है या सिर्फ भीड़ के सुर में बोलता है?

नफ़रत के इस दौर में इंसानियत की आखिरी लड़ाई
शैला और हिमांशी की कहानी सिर्फ दो बेटियों की नहीं है, यह पूरे देश की आत्मा के लिए एक आईना है. यह उन सभी को सवाल करता है जो सोचते हैं कि इंसानियत अभी जिंदा है—क्या आप चुप रहेंगे या साथ खड़े होंगे?

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Last Updated on May 6, 2025 10:16 am

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