अयोध्या में फ़िल्मकारों का जमावड़ा यूं ही बेवजह नहीं था. दरअसल दिमाग़ हाईजैक करने का खेल बेहद सुनियोजित तरीक़े से हो रहा है. थोड़ा पीछे चलेंगे तो ये खेल भी आसानी से समझ जाएंगे. ज़्यादा नहीं, बस ज़रा सा पीछे.
कोई कैसे भूल सकता है कि….
बस कुछ वक़्त पहले इस देश में देशभक्ति का मतलब रंग दे बसंती जैसी अच्छी फ़िल्में हुआ करती थीं. आज का युवा नये अन्दाज़ में अपने वक़्त के भगत, राजगुरु और सुखदेव ढूंढ रहा था. अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाना, कैंडल मार्च निकालना सीख रहा था. (जो बाद में कई आंदोलन जैसे कि अन्ना, निर्भया वग़ैरह में दिखा भी)
कोई कैसे भूल सकता है कि….
बस कुछ वक़्त पहले लगे रहो मुन्नाभाई जैसी फ़िल्में हमें गांधी के सिद्धांतों की आज के वक़्त में दोबारा अपनी प्रासंगिकता सिखा रही थी.
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कोई कैसे भूल सकता है कि….
बस कुछ वक़्त पहले PK जैसी फ़िल्म बड़ी निर्भीकता से हमें धर्म की आड़ में उल्लू बनाने वाले ढोंगी बाबाओं और धर्मगुरुओं के राँग नंबर पकड़ना सिखा रही थी.
कुल मिलाकर हम एक बेहतर इंसान बनने की तरफ़ बढ़ रहे थे. फ़िल्में हमें बेहतर तरीक़े से जागरूक नागरिक के तौर पर शेप कर रही थीं.
लेकिन एक जागरूक नागरिक तानाशाही सरकार के लिए बहुत बड़ा ख़तरा होता है. एक जागरूक नागरिक पूंजीपतियों के लिए बड़ा ख़तरा होता है. हिटलर भी इस ख़तरे को समझता था इसलिए जर्मनी में फ़िल्मकारों को सबसे पहले झुकाया गया.
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भारत में भी कुछ लोग जानते थे कि अच्छी फ़िल्में उनके निज़ाम के लिए कितनी ख़तरनाक हैं. अच्छी फ़िल्में तो कम पढ़े लिखे लोगों को भी अच्छा और जागरूक नागरिक बना देती हैं! इसलिए इंसान को वैचारिक तौर पर ज़ॉम्बी बनाने की क़वायद शुरू हुई.
पिछले कुछ सालों में धीरे धीरे बहुत कुछ बदलना शुरू किया गया. सामाजिक चेतना देने वाली फ़िल्मों की बड़े ही सुनियोजित तरीक़े से “हत्या” शुरू की गई. एक्सप्रेसिव आवाज़ों को अलग अलग तरीक़े से दबाया जाना शुरू हुआ. कुछ से काम छीना गया, कुछ की फ़िल्में रुकवाई गईं.
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तर्क, लॉजिक, एंपेथी और देशभक्ति की जगह प्रोपेगेंडा, ग़ुस्सा, नफ़रत, मार काट, विध्वंस का बोलबाला बनाया जाने लगा. पिछले कुछ सालों में देश की सांस्कृतिक चेतना को शून्य करने में काफ़ी मेहनत की जा रही है. तभी तो हम एक विवेकहीन भीड़ बन पाएंगे.
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यही वजह है कि अयोध्या में फ़िल्मकारों का जमावड़ा लगाया गया. ताकि दिमाग़ हाईजैक करने का खेल बेहद आराम से, बेहद सुनियोजित तरीक़े से किया जा सके.
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक कुंदन शशिराज के ट्विटर पेज (@kundanshashiraj) से…
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Last Updated on January 29, 2024 8:14 am