उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) से पहले अपर्णा यादव (Aparna Yadav) ने बुधवार को बीजेपी ज्वॉइन कर ली. अपर्णा यादव समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं. ऐसे में लोगों के मन में दो सवाल उठ रहे हैं. पहला यह कि आखिर अपर्णा यादव को बीजेपी का दामन क्यों थामना पड़ा? दूसरा उनके बीजेपी में जाने से वोट बैंक के लिहाज से क्या बदल जाएगा?
यूपी BJP अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह (Swatantra Dev Singh), उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (Deputy Chief Minister Keshav Prasad Maurya) और पार्टी के मीडिया विभाग के प्रभारी अनिल बलूनी की मौजूदगी में उन्होंने पार्टी का दामन थामा. बीजेपी में शामिल होने के बाद अपर्णा यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सीएम योगी की तारीफ की. अपर्णा ने यह भी कहा कि राष्ट्रधर्म उनके लिए सबसे ऊपर है.
वहीं इस मौके पर यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, “हम आपका भाजपा परिवार में स्वागत करते हैं. हमें यह कहते हुए खुशी हो रही है कि मुलायम सिंह यादव की बहू होने के बावजूद उन्होंने (अपर्णा ने) अक्सर भाजपा के काम की सराहना की है. पिछले काफी समय से अपर्णा की बीजेपी में जाने के कयास लगाए जा रहे थे.
अपर्णा यादव, प्रतीक यादव की पत्नी हैं. प्रतीक यादव मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना यादव के बेटे हैं. जब इनकी परिवार में एंट्री हुई थी तो अखिलेश यादव ने बगावत शुरू कर दी थी. अमर सिंह ने ना केवल पिता और पुत्र के बीच बढ़ती दूरियों को कम किया, बल्कि साधना यादव को परिवार में एंट्री दिलाई. इस दौरान परिवार को साथ रखने के लिए एक समझौता भी हुआ.
समझौते के मुताबिक पिता की राजनीतिक विरासत के इकलौते वारिस अखिलेश यादव होंगे. साधना के बेटे प्रतीक यादव कभी भी राजनीति में नहीं आएंगे. हालांकि उस वक्त जो प्रॉपर्टी थी, उसे दोनों भाइयों में बराबर-बराबर बांटा गया था. यही वजह है कि प्रतीक यादव लगातार राजनीति में आने से मना करते रहे. लेकिन अपर्णा यादव की राजनीतिक महत्वाकांक्षा हमेशा से रही है. वह परिवार की दूसरी बहू डिंपल यादव की तरह पार्टी में आधिकार चाहती थीं. यही वजह रही कि साल 2017 में लखनऊ कैंट विधानसभा से मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने अपर्णा को पार्टी का टिकट दिलवाया, लेकिन अपर्णा चुनाव हार गईं.
समाजवादी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश!
परंपरागत रूप से यादव वोट बैंक पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है. राज्य में 9 फीसदी से ज्यादा यादव वोट बैंक की लड़ाई है. वहीं ओबीसी समुदाय का करीब 45 से 50 फीसदी वोट बैंक है. अखिलेश, यादव और मुस्लिम वोट बैंक के अलावा ओबीसी की अन्य जातियों- राजभर- 4 फीसदी, निषाद- 4 फीसदी, लोध- 3.5 फीसदी को अपने पाले में लाना चाहते हैं.
बीजेपी की नजर भी समाजवादी की इसी वोट बैंक पर है. हालांकि अखिलेश के लिए अच्छी बात यह है कि अपर्णा यादव मास लीडर नहीं रही हैं. वहीं बीजेपी यह साबित करना चाहती है कि अखिलेश अपने परिवार को नहीं संभाल पा रहे तो वह राज्य या बड़े गठबंधन को कैसे संभालेंगे?
Last Updated on January 19, 2022 3:35 pm