अरुंधती रॉय जैसे लोग ही मोदी मार्का फासीवाद जिसका वो बार-बार विरोध करती हैं, के सच्चे प्रचारक हैं.
कुछ छूट गया हो तो नहीं कहता लेकिन मैंने अरूंधती को पूरा पढ़ा है. कई सालों से लगातार उनके लेख, इंटरव्यू आदि फॉलो करता हूं.
भारतीय लोकतंत्र में खामियां हैं. इससे कौन इनकार कर सकता है? भारतीय स्टेट के व्यवहार में फासीवादी प्रवृत्तियां दिखाई पड़ती हैं. इससे भी किसी को इनकार नहीं होगा. लेकिन मैं नहीं मानता कि भारत फासीवादी देश है.
‘मुसलमानों का नरसंहार हो रहा है’ जैसी बातें उत्तेजना फैलाने और हेडिंग बटोरने के लिहाज से तो सही हैं लेकिन ये किसी मकसद को पूरा नहीं करतीं. अंत में होता उल्टा है. जैसे ही अरूंधती रॉय या उनके जैसे लोग इस तरह की शातिराना बातें बोलते हैं, भगवा खेमें में लामबंदी बढ़ जाती है.
अगर अरूंधती रॉय, अल जज़ीरा (कतर राजशाही का सरकारी चैनल) पर बैठकर भारत में लोकतंत्र और प्रेस और न्यायालय की स्वतंत्रता पर बात करेंगी तो फिर बात कहीं और पहुंच जाएगी. कतर का शाही घराना दुनिया भर में कट्टरपंथी इस्लाम के लिए जमकर फंडिंग करता है. यह बात किसी से छिपी नहीं. स्वतंत्रता के पैमाने पर अल जज़ीरा की हैसियत डीडीन्यूज़ से भी गई बीती है. अरूंधती को यब सब नहीं मालूम होगा–ऐसा सोचना नासमझी होगी.
फिर? कई बार आप अपनी ही परछाइयों में कैद होकर रह जाते हैं. अरूंधती रॉय अब खुद को रिपीट कर रही हैं. उनके पास नया कुछ नहीं. वही बात पिछले 20 साल से, उसी अंदाज़ में बोलती आ रही हैं.
हिंदुत्व, इसके अंदर फासीवादी तत्वों की मौजूदगी, उनकी ताकत-सीमाओं को समझने-समझाने वाला उनका कोई लेख नहीं पढ़ा. स्टारडम और मीडिया हाइप. यही चल रहा है. इनकी बदौलत मोदी नहीं हारेगा मितरों. कतर का शेख वोट देने नहीं आएगा.
वरिष्ठ पत्रकार विश्व दीपक के ट्विटर पेज से…
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए Newsmuni.in किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
Last Updated on September 17, 2023 12:03 pm