राजद्रोह (sedition) मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में 11 मई को एक अहम सुनवाई हुई. जिसमें कोर्ट ने राजद्रोह कानून के अंतर्गत दर्ज होने वाले नए मामलों पर रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार (Central Governmentt) से इस कानून (Law) पर विचार करने को कहा है.
असम में सबसे ज्यादा देशद्रोही
अंग्रेजों के समय के इस विवादास्पद राजद्रोह कानून यानी IPC की धारा 124A के तहत देश में साल 2014 से 2019 के बीच कुल 326 मामले दर्ज किए गए हैं. जिनमें अबतक सिर्फ छह लोगों को दोषी ठहराया गया. केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2019 के बीच राजद्रोह कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए. इनमें सबसे ज्यादा मामले 54 असम में दर्ज किए गए.
अधिकारियों ने बताया कि दर्ज मामलों में से 141 मामलों में आरोप-पत्र (Charge-Sheet) दाखिल किए गए हैं. जबकि छह साल की अवधि में केवल छह लोगों को अपराध के लिए दोषी करार दिया गया.
आंकड़ों के मुताबिक, असम में दर्ज किए गए 54 मामलों में से 26 मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए और 25 मामलों में मुकदमा पूरा हो गया. हालांकि, 2014 और 2019 के बीच एक भी मामले में दोष सिद्ध नहीं हुआ.
अन्य राज्यों के आंकड़े
झारखंड ने छह वर्षों के दौरान धारा 124 (ए) के तहत 40 मामले दर्ज किए, जिनमें से 29 मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए और 16 मामलों में मुकदमा पूरा हो गया. राज्य में दर्ज इन सभी मामलों में से केवल एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया.
हरियाणा में राजद्रोह कानून के तहत 19 मामलों में आरोप-पत्र दाखिल करने के साथ 31 मामले दर्ज किए गए और छह मामलों में सुनवाई पूरी हुई. यहां भी सिर्फ एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया. बिहार, जम्मू कश्मीर और केरल में राजद्रोह कानून के तहत 25-25 मामले दर्ज किए.
उत्तर प्रदेश में 2014 से 2019 के बीच 17 और पश्चिम बंगाल में राजद्रोह के आठ मामले दर्ज किए गए. उत्तर प्रदेश में आठ मामलों में और पश्चिम बंगाल में पांच मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए, दोनों राज्यों में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया था.
इस अवधि में दिल्ली में चार मामले दर्ज किए गए. किसी भी मामले में आरोप-पत्र दाखिल नहीं हुआ और न ही किसी को दोषी ठहराया गया. महाराष्ट्र (2015 में), पंजाब (2015), और उत्तराखंड (2017) में राजद्रोह का एक-एक मामला दर्ज किया गया था.
इन राज्यों में नहीं हुआ एक भी मामला दर्ज
छह साल की अवधि में मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, पुदुचेरी, चंडीगढ़, दमन और दीव तथा दादरा और नगर हवेली में राजद्रोह का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया.
साल 2018 में सबसे ज्यादा मामले दर्ज
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में देश में राजद्रोह के सबसे ज्यादा 93 मामले दर्ज किए गए. वर्ष 2018 में ऐसे 70 मामले दर्ज किए गए जबकि 2017 में 51, 2014 में 47, 2016 में 35 और 2015 में 30 मामले दर्ज किए गए.
देश में 2019 में राजद्रोह कानून के तहत चार, 2018 में 38, 2017 में 27, 2016 में 16, 2014 में 14 और 2015 में छह आरोप-पत्र दाखिल किए गए. साल 2014 से 2019 छह दोषियों में से दो को 2018 में और एक-एक को 2019, 2017, 2016 और 2014 में सजा मिली.
सरकार का हथियार रहा है ये कानून
गैर-जमानती प्रावधानों के साथ इस कानून के तहत ऐसा कोई भाषण या अभिव्यक्ति, जो भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना या असंतोष को बढ़ाने का प्रयास करता है तो यह एक दंडनीय अपराध है, जिसमें अधिकतम सजा आजीवन कारावास तक हो सकती है.
शीर्ष अदालत राजद्रोह संबंधी कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. राजद्रोह कानून उन आरोपों के बीच विवाद के केंद्र में रहा है, जिसमें कहा गया है कि विभिन्न सरकारों द्वारा राजनीतिक दुश्मनी निपटाने के लिए इसका हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पूर्व मेजर जनरल एसजी वोम्बटकेरे और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की जांच करने के लिए सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि इसकी मुख्य चिंता ‘दुरुपयोग’ है, जिससे मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है.
Last Updated on May 13, 2022 12:25 pm