रामायण (Ramayan) के मुताबिक जब रावण का वध किया गया था तो श्रीराम ने लक्ष्मण से उनकी चरणों में जाकर ज्ञान लेने को कहा था. संदेश साफ था कि अगर दुश्मन ज्ञानी है तो सीखने में बुराई नहीं है. अव्वल तो यह ही साफ नहीं है कि भारत के लिए बड़ा दुश्मन कौन है पाकिस्तान या चीन? क्योंकि यह धारणा वास्तविक नहीं राजनीतिक होती है. मौजूदा दौर में अगर चीन (Chaina) को देखें तो आर्थिक मोर्चों पर वह भारत से कहीं ज्यादा बेहतर है. लेकिन कोरोना (Corona) से निपटने को लेकर चीनी सरकार और भारत सरकार के रवैये में बहुत बड़ा फर्क है.
चीन की राजधानी बीजिंग में शनिवार को कोरोना वायरस के दो और मामले मिलने के बाद शहर के उत्तरी जिले के कई रिहायशी इलाकों को सील कर दिया गया है. अधिकारियों ने बताया कि चाओयांग जिले के एंझेन्ली इलाके को शनिवार को सील किया गया था और किसी को भी परिसर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं दी गई थी.
चीन शुक्रवार को ओलंपिक खेलों के उद्धाटन समारोह का आयोजन करने की तैयारी कर रहा है जिसके मद्देनजर बीजिंग हाई अलर्ट पर है.
देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में मामले कम हैं लेकिन कोविड को लेकर चीन कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर चला रहा है और मामले मिलने पर जितना जल्दी हो सके संक्रमण के प्रसार की श्रृंखला को तोड़ना चाहता है.
सरकार समर्थक ‘बीजिंग न्यूज़’ के मुताबिक, अधिकारियों ने महामारी पर प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि इलाके में निवासियों की जांच के लिए 19 जगहों पर व्यवस्था की गई है और शुक्रवार तक रोज़ाना लोगों की जांच की जाएगी.
यह तो हुई चीन की बात. अब भारत की बात करते हैं. केंद्र सरकार द्वारा रविवार सुबह जारी आंकड़ो के मुताबिक एक दिन में 2,34,281 कोरोनावायरस संक्रमित मरीज सामने आए हैं. जबकि 24 घंटे के दौरान 893 संक्रमितों की मौत हुई हैं.
आबादी के मामले में चीन और भारत की स्थिति लगभग एक जितनी है. लेकिन लोगों को बचाने के लिए चीन सरकार की तरफ से जो प्रयास किए गए हैं, वह भारत की तुलना में कहीं बेहतर है.
एक सच यह भी कोरोना रोकथाम के नाम पर चीन से कई अमानवीय तस्वीरें भी सामने आईं, जब चीनी अफ़सर संदिग्ध कोरोना मरीज़ों को उनके घरों में नहीं, बल्कि कंटेनरनुमा दड़बों में सील कर रहे थे, जहां रहना किसी भी इंसान के लिए एक बेहद बुरा ख्वाब हो सकता है.
बुरे पक्ष को छोड़ दें तो क्या भारत सरकार या अन्य राज्य सरकारों ने भी यहां पर लोगों की जान की परवाह की? सोचिए भारत में कोरोना से एक दिन में लगभग 900 लोग मर जातें हैं और सरकारें स्कूल और अन्य संस्थान खोलने पर विचार कर रही है. इतना ही नहीं गाइडालाइन जारी कर कहा गया कि जांच वही लोग कराएं जो अन्य किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हों या उम्रदराज हों. बाकी लोग घर पर ही रहकर इलाज करें. सही भी है क्योंकि इसका इलाज तो है नहीं? लेकिन इसके असल आंकड़े छिपाकर क्या लोगों को लापरवाह होने नहीं दिया जा रहा है. जो बहुत बुरा भी साबित हो सकता है.
चुनाव आयोग ने रैली पर भले ही रोक लगा दी हो लेकिन क्या डोर टू डोर कैंपेन से यह वायरस नहीं फैलेगा? चीन की बुराइयों को छोड़ दें तो क्या हमने उनकी अच्छाई से कोई सबक ली क्या? जबकि चीन तकनीक और अर्थव्यवस्था के मामले में भारत से बहुत आगे है.
तो क्या भारत की सरकारों ने यहां के लोगों को केवल एक प्रयोग समझ रखा है? क्योंकि नेता बीमार पड़ेंगे तो उन्हें अच्छे अस्पताल भी मिल जाएंगे और देखरेख भी. लेकिन आमलोग तो दो घूंट ऑक्सीजन की कमी से भी सड़क पर दम तोड़ देते हैं. सरकारें इसे भगवान की मर्जी बता देती हैं और लाचार कौम यह मान भी लेती है. ना तो कभी जिम्मेदारी तय होती है और ना ही कोई उठाना चाहता है. फंस जाए तो कहेंगे- होइहि सोइ जो राम रचि राखा.
असल में इस मुहावरे का प्रयोग मजबूत करने के लिए होना था लेकिन अब राम ‘लाचारगी’ के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि कोई मजबूत नहीं हुआ है. आप किसी भी वर्ग के नेता को देख लीजिए, वो किसी समुदाय विशेष और धर्म विशेष के नाम पर राजनीति शुरू करता है. अपनी गरीबी को हमदर्दी पाने का जरिया बनाकर बेचता है. कुछ दिनों बाद वह मालामाल और संबंधित धर्म या जाति के लोग वहीं रह जाते हैं कंगाल. ज्यादातर राज्यों में जाति के नाम पर पार्टियों ने सरकार बनाई, क्या उन जाति के लोगों की आर्थिक हालत सुधर गई?
यानी वही राम नेता को बेईमानी, मक्कारी के बाद भी मालामाल बना देते हैं और आप ईमानदार रहकर भी राम के नाम पर शहीद हो जाते हैं. क्या आपके राम ईमानदारों पर इतने बेरहम और बेईमानों पर इतने नरम हो सकते हैं? अगर इतना भी नहीं समझ पाए तो फिर आपने श्रीराम को समझा ही नहीं.
Last Updated on January 30, 2022 6:07 pm