कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई कि नहीं इसको लेकर बहस अब तक जारी ही थी कि गंगा नदी के किनारे शव फेंके जाने को लेकर भी एक नया ख़ुलासा हुआ है. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने एक किताब में इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि कोरोना महामारी की भयावह दूसरी लहर दौरान गंगा नदी में शव फेंके गए थे.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक,‘गंगा: रिइमेजनिंग, रेजुविनेटिंग, रिकनेक्टिंग’ (Ganga: Reimagining, Rejuvenating, Reconnecting) नामक इस किताब के एक चैप्टर ‘Floating Corpses: A River Defiled’ में उन्होंने गंगा पर पड़े महामारी के भयावह प्रभाव की व्याख्या की है. उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि नदी को बचाने के लिए पिछले पांच सालों में जो कार्य किए गए थे, उन्हें नष्ट किया जा रहा है.
कौन हैं राजीव रंजन मिश्रा?
राजीव रंजन मिश्रा 1987-बैच के तेलंगाना-कैडर के आईएएस अधिकारी हैं. राजीव रंजन मिश्रा, अपने दो कार्यकालों के दौरान पांच साल से अधिक समय तक राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन में विभिन्न पदों पर काम किया है. वह 31 दिसंबर, 2021 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.
गंगा मिशन के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान मौतों की संख्या में कई गुना की वृद्धि होने लगी. श्मशान घाटों पर भीड़ काफी बढ़ गई थी. ऐसे में उत्तर प्रदेश और बिहार के कई गंगा घाटों पर लाशों को नदी में फेंका जाने लगा. हालांकि जिला प्रशासनों के आंकड़े के मुताबिक नदी में ‘करीब 300 शव’ फेंके गए थे, न कि 1000 से अधिक, जैसा कि रिपोर्ट्स में बताया गया था.
मिश्रा ने किताब में लिखा, ‘मैं उस समय गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल में कोविड-19 बीमारी से जूझ रहा था, जब मैंने मई महीने की शुरुआत में पवित्र गंगा में जली-सड़ी लाशों के तैरने की खबर सुनी थी.’
दिल तोड़ने वाला था अनुभव
उन्होंने आगे कहा, ‘टेलीविजन चैनल, पत्रिकाएं, समाचार-पत्र और सोशल मीडिया साइट्स भयानक तस्वीरों और शवों को नदी में फेंके जाने की कहानियों से भर हुए थे. यह मेरे लिए एक दर्दनाक और दिल तोड़ने वाला अनुभव था.’
उन्होंने कहा, ‘गंगा मिशन के महानिदेशक के रूप में मेरा काम गंगा के स्वास्थ्य का संरक्षक बनना है, इसके प्रवाह को फिर से जीवंत करना है, इसकी प्राचीन शुद्धता की ओर लौटना सुनिश्चित करना है और वर्षों की उपेक्षा के बाद इसकी सहायक नदियों के लिए भी यही सब सुनिश्चित करना है.’
11 मई को जब दूसरी लहर चरम पर थी, मिश्रा के नेतृत्व में गंगा मिशन ने सभी 59 जिला गंगा समितियों को गंगा में तैरते शवों के मुद्दे पर ‘आवश्यक कार्रवाई’ करने और इसकी रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था.
इसके बाद संस्था ने यूपी और बिहार को इस पर विस्तृत रिपोर्ट देने के लिए कहा था, जिसके बाद उत्तर प्रदेश ने जिला-वार इस तरह के मामलों की रिपोर्ट दर्ज करना शुरू किया था. किताब में गंगा किनारे स्थित तटवर्ती राज्यों में खराब कोविड प्रबंधन को लेकर भी लिखा गया है.
बिहार-यूपी में नदियों में मिली थी कई लाशें
बता दें कि मई महीने में बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा के अलावा अन्य दूसरी नदियों में भी बहती हुई लाशें मिली थीं. अकेले बिहार के बक्सर में कुल 81 शव मिले थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नदी के किनारे हजारों शव मिले थे. दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, मई महीने के दूसरे सप्ताह में अकेले उन्नाव में 900 से अधिक शवों को नदी के किनारे दफनाया गया था. उसने कन्नौज में यह संख्या 350, कानपुर में 400, गाजीपुर में 280 बताई. उसने बताया कि मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में ऐसे शवों की संख्या लगातार बढ़ रही थी.
बाद में कहा गया कि ग़रीबी के कारण कुछ लोगों ने बिना दाह संस्कार किए ही लाश को नदी में फेंक दिया था. वहीं यूपी के एक अधिकारी ने तो शव नदी में फेंके जाने को एक प्रथा करार दिया था.
Last Updated on December 24, 2021 1:17 pm