हिंदी साहित्य को एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई है. लेखिक गीतांजलि श्री (Geetanjali Shrees) के हिंदी उपन्यास ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ (Tomb of Sand) (रेत समाधि) को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार (international booker prize) से नवाजा गया है. यह उपन्यास बुकर पुरस्कार से सम्मानित होने वाला हिंदी भाषा का पहला उपन्यास है.
पुरस्कार मिलने से गदगद लेखिका
यह समारोह लंदन में आयोजित हुआ था. पुरस्कार मिलने पर गीतांजलि श्री ने कहा कि उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि मैंने ये पुरस्कार जीता है, मैं इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी. मैंने कभी बुकर पुरस्कार जीतने का सपना नहीं देखा था. मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं यह कर सकती हूं. यह बहुत बड़ी उपलब्धि है. मैं खुश हूं और सम्मानित महसूस कर रही हूं.
उन्होंने कहा, रेत समाधि/टॉम्ब ऑफ सैंड एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं. यह एक ऐसी ऊर्जा है, जो आशंकाओं के बीच उम्मीद की किरण जगाती है. बुकर पुरस्कार मिलने से यह पुस्तक अब और ज्यादा लोगों के बीच पहुंचेगी.
उपन्यास का अंग्रेजी डेजी रॉकवेल ने किया
गीतांजलि श्री के उपन्यास का अंग्रेजी में अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया है. रॉकवेल पेशे से एक पेंटर और लेखक हैं. वे अमेरिका में रहती हैं. उन्होंने हिंदी और उर्दू की कई साहित्यिक कृतियों का अनुवाद किया है.
करीब 50 लाख रुपये की पुरस्कार राशि लेखिका और अनुवादक के बीच बराबर बांटी जाएगी. टॉम्ब ऑफ सैंड ’13 लॉन्ग लिस्ट किए गए उपन्यासों में से एक था, जिसका 11 भाषाओं से अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था.
‘रेत समाधि’ उत्तर भारत की पृष्ठभूमि पर आधारित है और 80 वर्षीय एक बुजुर्ग महिला की कहानी बयां करता है. बुकर पुरस्कार के निर्णायक दल ने इसे ‘मधुर कोलाहल’ और ‘बेहतरीन उपन्यास’ करार किया.
कई भाषाओं में अनुवाद हुआ साहित्य
बता दें कि गीतांजलि श्री उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से ताल्लुक रखती है. उन्होंने तीन उपन्यास और कई कथा संग्रह की लिखे हैं. उनकी कृतियों का अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, सर्बियन और कोरियन भाषाओं में अनुवाद हुआ है. हिंदी में उनकी अन्य रचनाएं- ‘माई’, ‘हमारा शहर उस बरस’ और ‘तिरोहित’ है. फिलहाल गीतांजलि श्री दिल्ली में रहती हैं.
गीतांजलि श्री पिछले तीन दशक से लेखन की दुनिया में सक्रिय हैं. उनका पहला उपन्यास ‘माई’ और फिर ‘हमारा शहर उस बरस’ 1990 के दशक में प्रकाशित हुए थे. फिर ‘तिरोहित’ आया और फिर आया ‘खाली जगह’.
पांच किताबें पुरस्कार पाने की रेस में शामिल थीं
इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ हर वर्ष अंग्रेज़ी में अनुवादित और इंग्लैंड/आयरलैंड में छपी किसी एक अंतरराष्ट्रीय किताब को दिया जाता है. इस पुरस्कार की शुरूआत साल 2005 में हुई थी. इस प्रतियोगिता में पांच किताबें पुरस्कार पाने की रेस में शामिल थीं.
Last Updated on May 27, 2022 12:49 pm