Pahalgam Attack: कौन चाहता है कि पड़ोस में रहने वाले हिंदू-मुसलमान आपस में खून के प्यासे हो जाएं?

पाकिस्तान आर्मी चीफ का पिछले हफ़्ते का बयान पाकिस्तान के नापाक इरादों को साफ़ ज़ाहिर करता है. उनका मकसद भारत में मज़हबी एकता को तार तार करना है जिस इरादे से पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने पहलगाम में निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारा.

पहलगाम अटैक का मकसद क्या?
पहलगाम अटैक का मकसद क्या?

पहलगाम में हुए नरसंहार के पीछे पाकिस्तान की वही पुरानी घिनौनी रणनीति है- भारत को भीतर से तोड़ो, हिंदू-मुसलमान के बीच नफ़रत की दीवार खड़ी करो, और ऐसा माहौल बना दो कि लोग एक-दूसरे का खून बहाने पर उतर आएं. अगर पाकिस्तान का यही मकसद था, तो वो आज सोशल मीडिया पर ट्रोल्स और उकसावे भरे पोस्ट्स देखकर ताली बजा रहा होगा. “धर्म पूछा, जात नहीं” जैसी बातें अब आग लगाने के लिए लिखी जा रही हैं. कोई पूछे—धर्म किसने पूछा? उस आतंकी ने, जो खुद को मुसलमान कहता था?

असल साजिश यह है कि पड़ोसी के हिंदू से मुसलमान को और मुसलमान से हिंदू को डर लगने लगे. यह फ़र्क़ मिटा देना ही आतंकियों का एजेंडा है. पाकिस्तान के आतंकी संगठन और उनके स्थानीय एजेंट इसी बंटवारे की फसल बो रहे हैं. जिन्हें भारत में इंसानियत से ज़्यादा खून की राजनीति चाहिए.

आप अपने पड़ोस के हिंदू या पड़ोस के मुसलमान से नफ़रत करें वो यही चाहते हैं. वो भी जो सरहद पार हैं, वो भी जो सरहद के इस तरफ ऐसी वारदातों से पैदा हो रहे गुस्से की फसल काटने को आतुर है. इस दुख और परीक्षा की घड़ी में हिंदू को धैर्य और मुसलमान को समझदारी दिखानी पड़ेगी.

हमें इस जाल में नहीं फंसना है. इस समय हिंदू को धैर्य और मुसलमान को समझदारी दिखानी होगी. हम वक़्फ़ की लड़ाई भी समझते हैं और विस्थापन के ज़ख्म भी. हम बांग्लादेश और मुर्शिदाबाद में हिंदुओं पर हुए अत्याचार से भी वाकिफ़ हैं और दिल्ली के दंगों में जलते मकानों से भी. लेकिन यह वक्त हिसाब चुकता करने का नहीं, इंसानियत का इम्तिहान देने का है.

क्योंकि यह हमला सिर्फ 28 सैलानियों की जान नहीं ले गया, यह उस भरोसे की हत्या है जो कश्मीर की वादियों में आने वाले हर सैलानी के दिल में पलता है. यह कश्मीरियत की हत्या है. यह भारतीय आत्मा पर हमला है.

पाकिस्तान को इस बार खुश नहीं होने देना है. इस बार इंतज़ार लश्कर-ए-तैयबा की रीढ़ टूटने का होना चाहिए, न कि पड़ोसियों के साथ रिश्ते तोड़ने का. कश्मीर की सड़कों पर जो आवाजें आतंक के खिलाफ उठ रही हैं, वो इस देश की उम्मीद हैं. महबूबा मुफ्ती, मीरवाइज, और घाटी के तमाम लोग जो इस हमले की भर्त्सना कर रहे हैं, आज उनका साथ देना ही असली राष्ट्रवाद है.

जो सत्ताधारी पार्टी है, जो खुद को राष्ट्रभक्तों का ठेकेदार बताती है, उससे भी सवाल पूछा जाएगा. कश्मीर में पर्यटक अगर टारगेट हैं, तो देश की सुरक्षा में छेद करने वालों की जवाबदेही तय होनी चाहिए

और हां, एक और गुज़ारिश- इन बेकसूरों की लाशें मत परोसिए सोशल मीडिया पर. शवों के फोटो और वीडियो से न हमदर्दी बढ़ती है, न इंसाफ़ मिलता है. यह सिर्फ आतंक का प्रचार है. जो गए हैं, उन्हें इंसाफ़ मिलना चाहिए. जो जिंदा हैं, उन्हें नफ़रत से बचाया जाना चाहिए.

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क्योंकि ये लड़ाई हिंदू बनाम मुसलमान की नहीं है. ये लड़ाई भारत बनाम आतंकवाद की है और इस बार, भारत को जीतना ही होगा.

Last Updated on April 23, 2025 12:04 pm

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