विपक्ष लोकसभा चुनाव को लेकर सीरियस नहीं, क्यों उठने लगे हैं सवाल?

विपक्ष चुनाव लड़ने के मूड में नहीं?
विपक्ष चुनाव लड़ने के मूड में नहीं?

आपको लगता है कि विपक्ष लोकसभा चुनाव को लेकर सीरियस भी है? एक तरफ़ वो ये नैरेटिव बनाने में लगा हुआ कि वो यह चुनाव लोकतंत्र बचाने के लिए लड़ रहा है. दूसरी तरफ़ तैयारी नगर निगम पार्षद के स्तर की भी नहीं है. आपसी कलह, सीट शेयरिंग और फोकस्ड सीट जैसे मसले आख़िर तक सुलझ नहीं पा रहे हैं. पूरा प्रचार अभियान दिशाहीन और बिखरा हुआ है. ना तो आख़िरी बजट सेशन के दौरान कोई बड़ी रैली हुई. ना लोकल एंटी इनकंबेंसी पर फ़ोकस करने की कोई रणनीति बनी. इलेक्टोरल बॉण्ड जैसे स्कैम ऐन चुनाव से पहले आए और चले गए. दो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर खानापूर्ति कर दी गई.

Journalist/Reporter/writer vinay sultan ने अपने X हैंडल (@vinay_sultan) पर यह सारी बाती लिखी हैं. वे आगे लिखते हैं- “विपक्ष के नेताओं के भाषण की जगह ध्रुव राठी का वीडियो, सत्ताधारी पार्टी को ज़्यादा परेशान कर रहा है. विपक्ष चुनाव ऐसे लड़ रहा है, जैसे यह चुनाव उनके गले आ पड़ा हो.

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दूसरी तरफ़ बीजेपी है. जहां एक बाड़मेर की सीट के लिए गृहमंत्री अमित शाह ने प्रभारी से लेकर स्थानीय लीडरशिप तक को लाइन हाज़िर कर दिया. इस मौक़े पर विपक्ष की एकमात्र रणनीति यह है कि एक दिन जनता का भरोसा बीजेपी से उठेगा और वो उसे चुनाव हरवा देगी. यह मुंगेरी लाल के सपने जैसा मालूम होता है.

मैं दर्जनों ऐसे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जानता हूं जो टॉप लीडरशिप की सुस्ती के चलते बस कुढ़ रहे हैं. महत्वाकांक्षा राजनीति कार्यकर्ता का सबसे बड़ा ईंधन है. अगर किसी राजनेता को विपक्ष की राजनीति में भविष्य नहीं दिखता तो वो क्यों रुका रहेगा? पलायन हो रहा है, पलायन होगा.

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विपक्ष अगर चुनाव लड़कर हारता तो भी कोई बात थी. यहां तो हारकर चुनाव लड़ने वाली स्थिति है.”

वहीं पत्रकार Rajesh Sahu अपने X हैंडल (@askrajeshsahu) पर लिखते हैं- ‘सपा ने मेरठ में तीन बार प्रत्याशी बदला. मुरादाबाद में आखिरी दिन बदला. रामपुर में पार्टी के सिंबल पर दो लोग नामांकन करने पहुंच गए. गौतमबुद्धनगर में महेंद्र नागर को टिकट दिया, काटकर राहुल अवाना को दिया, फिर महेंद्र को प्रत्याशी बना दिया. बदायूं में शिवपाल लड़ने को तैयार नहीं.

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अखिलेश जी कन्फ्यूज हैं, तय ही नहीं कर पा रहे कि किसके नाम पर फाइनल मुहर लगानी है. उनके कन्फ्यूजन ने प्रत्याशियों के साथ सपा समर्थकों में अविश्वास पैदा कर दिया है. इसका असर यह होता है कि जिसका टिकट कटता है उसके समर्थक पार्टी से दूर हो जाते हैं. अजब तो यह कि जिन्हें टिकट मिल गया है अब वह भी घबराए हुए हैं. मन लगाकार प्रचार ही नहीं कर पा रहे हैं.

 

Last Updated on April 4, 2024 1:25 pm

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