Period Leave Policy: पीरिएड्स के दौरान पेड लीव (छुट्टी) को लेकर इन दिनों चर्चा ज़ोरों पर है. महिला बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के एक बयान को लेकर हर तरफ़ चर्चा है. जिसमें वह कहती हैं कि मेंस्ट्रुएशन (पीरिएड्स) यानी कि मासिक धर्म महिलाओं के जीवन का स्वाभाविक हिस्सा है. यह कोई “अपंगता” नहीं है, कि सरकार पेड पॉलिसी पर कोई क़ानून बनाए. सिर्फ कुछ महिलाएं हैं जिन्हें उन दिनों में जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे में इस तरह की लीव को मान्यता देने से महिला कर्मचारियों के साथ भेदभाव बढ़ेगा. केंद्रीय मंत्री के बयान के बाद राजनीतिक गलियारों से लेकर गली-मुहल्लों तक पेड लीव को लेकर नई बहस छिड़ गई है. कुछ लोग यह कहकर सरकार का बचाव कर रहे हैं कि महिलाएं किसी से कमज़ोर नहीं हैं. इसलिए महिलाओं को कमतर मानने वाले हर कानून का विरोध होना चाहिए. वहीं कुछ लोग यह कहते हुए पेड लीव का बचाव कर रहे हैं कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को होने वाला दर्द शारीरिक से अधिक इमोशनल और सॉयकोलिजकल होता है. इस दर्द को कोई पुरुष समझ ही नहीं सकता.
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो केंद्रीय मंत्री के ‘इम्प्लॉयर महिलाओं के साथ भेदभाव’ वाली बात से सहमत हैं. जबकि कुछ लोग इसे नियोक्या यानी कि कंपनियों पर छोड़ने की बात कर रहे हैं. ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि पेड लीव क्यों महिलाओं के लिए ज़रूरी या गैर ज़रूरी है? क्या किसी अन्य देश में पेड लीव को मान्यता है या भारत में ही नई बहस छिड़ी है? क्या किसी राज्य में पेड लीव को मान्यता मिली है?
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पीरिएड्स के दौरान पेड लीव बहस की शुरुआत कैसे हुई?
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सांसद मनोज झा ने बुधवार को राज्यसभा में महिलाओं को पीरियड्स के दौरान पेड लीव को अनिवार्य बनाने को लेकर सवाल पूछा. जिसके जवाब में ईरानी ने कहा, “एक महिला के तौर पर मैं जानती हूं कि पीरियड्स और मेंस्ट्रुएशन साइकिल परेशानी की बात नहीं हैं. ये एक महिला की जीवन यात्रा का स्वाभाविक हिस्सा है. मासिक धर्म कोई विकलांगता नहीं है. मासिक धर्म महिलाओं की क्षमता को सीमित नहीं करता है. सिर्फ कुछ महिलाओं को उन दिनों में जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. इसलिए किसी ‘वैतनिक अवकाश नीति’ की कोई ज़रूरत नहीं है. पीरियड्स के दौरान ऑफिस से लीव मिलना महिलाओं से भेदभाव का कारण बन सकता है. कई लोग जो खुद मेंस्ट्रुएट नहीं करते हैं, लेकिन इसे लेकर अलग सोच रखते हैं. हमें उनकी सोच को आधार बनाकर ऐसे मुद्दों को नहीं उठाना चाहिए, जिससे महिलाओं को समान अवसर मिलने कम हो जाएं.”
केंद्रीय मंत्री ने अपने लिखित जवाब में कहा, “महिलाओं, लड़कियों के एक छोटे से हिस्से को ही मेंस्ट्रुअल क्रैम्प्स (मासिक धर्म में ऐंठन) या ऐसी ही शिकायतें होती हैं. इनमें से ज़्यादातर की तकलीफ़ें दवाओं से ठीक हो जाती हैं.”
Watch | “Menstruation Not A Handicap”: Smriti Irani Vs Manoj Jha On Paid Leave Policy pic.twitter.com/Aaglklj3RP
— NDTV (@ndtv) December 14, 2023
तेलंगाना के पूर्व सीएम केसीआर की बेटी के. कविता (K. Kavitha) ने स्मृति ईरानी के बयान पर आपत्ति जाहिर की है. उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर लिखा- “केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने मासिक धर्म की चुनौतियों को काफी हल्के में लिया है. जिससे मेरा मन निराश है. एक महिला के रूप में, ऐसी अनभिज्ञता देखना निराशाजनक है. हमारे संघर्ष, हमारी यात्राएं दया की पात्र नहीं हैं, उन्हें समान अवसर की आवश्यकता है. मासिक धर्म कोई विकल्प नहीं है, यह एक जैविक हकीकत है. पेड लीव से इनकार करना उन अनगिनत महिलाओं की असहनीय पीड़ा को नजरअंदाज करना है. महिलाओं की वास्तविक चुनौतियों और संघर्ष के लिए सहानुभूति नहीं होना, एक महिला के रूप में मेरे लिए परेशान करने वाला है.”
Disheartened by the Union Minister of Women and Child Development Smriti Irani Ji’s dismissal of menstrual struggles in Rajya Sabha. As a woman, it’s appalling to see such ignorance, for our struggles, our journeys isn’t a consolation, it deserves a level playing field and that’s… pic.twitter.com/vj9wbb0A4f
— Kavitha Kalvakuntla (@RaoKavitha) December 15, 2023
बीआरएस नेता ने कहा, “अब समय आ गया है कि हम नीति-निर्माण और वास्तविकता के बीच की दूरी को सहानुभूति और तर्क से भरें.”
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पीरियड लीव ज़रूरी क्यों?
पिछले कुछ दिनों में कई पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनलों पर ‘पीरियड लीव ज़रूरी क्यों?’ को लेकर महिलाओं के बयान दिखाए जा रहे हैं, छापे जा रहे हैं. जिसका संदर्भ यह है कि कुछ महिलाओं के लिए मासिक धर्म भले ही दुखदायी नहीं हो लेकिन आधी से अधिक महिलाओं के लिए यह दर्द असहनीय है. कुछ लड़कियों ने यहां तक कहा कि पीरियड्स के दौरान उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. और सिर्फ गोली नहीं, बल्कि कई इंजेक्शन तक लेने होते हैं. यानी बहुत सारी महिलाओं और लड़कियों के लिए पीरियड का दर्द असहनीय है.
हाल के दिनों में ज़्यादातर ऑफिसों में टार्गेट एचिवमेंट का चक्कर होता है. जो सामान्य दिनों में पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए बेहद मानसिक तनाव वाला होता है. ऐसे में मासिक धर्म के दौरान होने वाला दर्द जो कई महिलाओं के लिए फिजिकल से अधिक इमोशनल और सॉयकोलिजकल है, उनके लिए एक साथ दो-दो मानसिक तनाव झेलना काफी असहनीय हो जाता है.
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‘द हिंदू’ ने मिशिगन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान और वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रोफेसर सियोबन हार्लो का हवाला देते हुए लिखा है कि मासिक धर्म में होने वाली ऐंठन 15-25 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित करती है. ये ऐंठन मध्यम से गंभीर तक हो सकती है.
सच्ची सहेली की अध्यक्ष डॉ. सुरभि सिंह ने द ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए बताया कि हर महिला के लिए मासिक धर्म का अनुभव अलग-अलग होता है. कइयों के लिए अस्पताल में भर्ती होने तक की नौबत आ जाती है. ऐसे में इस मुद्दे पर एक समान नीति विकसित करना बहुत खतरनाक हो सकता है.”
बाकी देशों में पीरियड्स लीव पर क्या?
बता दें महिलाओं को प्रत्येक महीने पीरियड्स होती है. कई महिलाओं के लिए यह समय बेहद पीड़ादायक होती है. महिलाओं की पीड़ा और जरूरत को देखते हुए द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद 1947 में जापान ने नए श्रम कानून में पीरियड्स लीव को शामिल किया था. क़ानून के मुताबिक कंपनियों को मासिक धर्म की छुट्टी देने के लिए सहमत होना होगा यदि महिलाएं इसके लिए अनुरोध करती हैं. मार्च 2021 में स्पेन, महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म अवकाश लेने की अनुमति देने वाला यूरोप का पहला देश बना.
दरअसल 1922 में सोवियत संघ ने इसके लिए नेशनल पॉलिसी बनाई थी. तभी से कुछ सेक्टर्स में पीरियड लीव दी जाने लगी थी. ‘आजतक’ के मुताबिक इंडोनेशिया में साल 2003 में यह क़ानून लाया गया, जिसमें महिलाओं को प्रति माह दो दिन के मासिक धर्म अवकाश का अधिकार दिया गया. इसके लिए महिला को पहले सूचना देने की भी आवश्यकता नहीं थी. लेकिन व्यवहार में यह प्रावधान विवेकाधीन है.
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वहीं दक्षिण कोरिया में, सभी महिलाएं प्रत्येक महीना एक दिन मासिक धर्म अवकाश (leave without pay) लेने की हकदार हैं. इनकार करने वाले नियोक्ताओं को 5 मिलियन वॉन (लगभग सवा तीन लाख़ रुपये) तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है. वियतनाम में भी महिलाओं को हर महीने तीन दिन की मासिक धर्म की छुट्टी मिलती है. यदि नियोक्ता छुट्टी नहीं देने का निर्णय लेते हैं तो उन्हें उन्हें अधिक भुगतान करना होगा. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस, ताइवान, इंग्लैंड, दक्षिण कोरिया जैसे देश भी माहवारी के लिए छुट्टी दे रहे हैं.
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बिहार पीरियड्स लीव देने वाला पहला राज्य
देश में पहली बार 2 जनवरी 1992 को 2 दिन की पीरियड्स लीव को मंजूरी मिली थी. बिहार ऐसा करने वाला पहला राज्य बना, तब लालू प्रसाद यादव वहां के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. हालांकि यह लीव ऐसे ही नहीं दी गई थी. बल्कि इसके लिए वहां की महिलाओं ने 32 दिन तक हड़ताल की थी. इसके बाद 1997 में मुंबई स्थित कल्चर मशीन ने 1 दिन की छुट्टी देने की शुरुआत की. वहीं साल 2020 में फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो ने पीरियड लीव देने का ऐलान किया. इस समय भारत में 12 कंपनी पीरियड लीव दे रही हैं जिसमें बायजू, स्विगी, मातृभूमि, बैजू, वेट एंड ड्राई, मैगज्टर जैसी कंपनियां शामिल हैं.
Last Updated on December 18, 2023 11:17 am