Nagpur Riots: “जो देश इतिहास में जीने-मरने लगे, वह नागरिकों की तबाही लिखता है”

“भूत में उलझने की बजाय वर्तमान संवारने पर ध्यान दो. डेवलपमेंट, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, प्रदूषण समेत कई बातें हैं जो इनसे अधिक जरूरी हैं. तुम ज्यादा से ज्यादा 60-70 साल तक हो यहां. फिर तुम्हारा किसी को पता नहीं होगा. इसे अपने लिए जियो, एजेंडों के लिए नहीं.”

Nagpur Riots: किसने फैलाई आग?
Nagpur Riots: किसने फैलाई आग?

Nagpur में Riots हुए. इसको लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है. लोगों का आरोप है कि सरकार की नाकायमाबी छिपाने के लिए इलाक़े में अशांति फैलाई जा रही है. वहीं कई लोगों का आरोप है कि मनोरंजन के नाम पर कुछ लोगों ने फिल्में बनाई. फिर करोड़ों बनाए. एक्टर-निर्देशक मालामाल हुए और आम नागरिक मजनू बने घूम रहे हैं. एक दूसरे के घरों को फूंक रहे हैं. वरिष्ठ लेखक और इतिहासकार अशोक पांडे लिखते है कि 1707 में Aurangzeb मरा और एक साधारण सी क़ब्र बनी उसकी. 2025 में लोगों को याद आया कि पौने 13 रुपये में बनी वह क़ब्र देश के लिए ख़तरा है.

अशोक पांडे अपने एक्स हैंडल पर लिखते हैं, ‘जहां कभी दंगे नहीं हुए, जहां बाबा साहब अंबेडकर की दीक्षाभूमि है उस Nagpur में भी दंगे हो ही गए. 1707 में Aurangzeb मरा और एक साधारण सी क़ब्र बनी उसकी. 2025 में लोगों को याद आया कि पौने 13 रुपये में बनी वह क़ब्र देश के लिए खतरा है.

ठीक तब जब बेरोज़गारी चरम पर है, महाराष्ट्र में एक शिक्षक ने 18 साल से वेतन न मिलने के बाद अपनी जान दी है, एक किसान ने क़र्ज़ में डूबकर और खरबपतियों के अरबों के क़र्ज़ माफ़ हो रहे हैं- हिन्दू और मुसलमान दोनों को गुस्सा आया तो क़ब्र पर, ज़िंदा लोगों के लाश बनते जाने का और सबूत क्या होगा? जो देश वर्तमान और भविष्य को छोड़कर इतिहास में जीने-मरने लगता है, वह अपने नागरिकों की तबाही की इबारत लिख रहा होता है.’

वहीं सीनियर पत्रकार दीपक यादव अपने फेसबुक पर लिखते हैं, ‘एक फिल्म बनाई गई #छावा. फिल्म के निर्माताओं ने देश की भावनाओं को टोहते हुए बड़ी ही सटीकता से फिल्म को तैयार किया. कंटेंट और कॉमर्शियल वैल्यू का पूरा ध्यान रखा गया. फिल्म चल पड़ी. ख़बर है 750 करोड़ से ज्यादा कमाई हुई है. जिन्होंने जेब खर्च, वेतन, काम धंधे से बचाए पैसों से फिल्म देखी वो पर्दे पर हुई घटनाओं को देखने के बाद फूट-फूट कर रो रहे हैं.

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जिस देश में सालाना करीब 750 टन सोना आयात होता है, वहां एक गांव में खेत के खेत खोद ले रहे हैं, सोना खोजने के लिए. हर पतले मुंह, दाढ़ी टोपी वाले में Aurangzeb देख ले रहे हैं. 318 साल पहले मर चुके Aurangzeb की कब्र खोदने पर अमादा हैं. विरोध में इतने उतावले हैं कि Aurangzeb की जगह बहादुर शाह जफर की फोटो फूंक दे रहे हैं.

बदले में दाढ़ी टोपी वीर Nagpur में हिंसा की ओर बढ़ रहे हैं. Nagpur शहर के पुलिस जोन 3, जोन 4 और जोन 5 में संचार बंदी लागू की गई है. मेडिकल कारण छोड़कर 5 से अधिक लोगों के जमा होने पर रोक लगा दी गई है.

हे भारत के आम लोगों होश में आओ, अपने घर परिवार, बच्चों की फिक्र करो. समझो, छत्रपति महाराज एक महानायक थे और Aurangzeb खलनायक वैसे ही जैसे प्रभु श्रीराम के विपरीत रावण. वैसे ही जैसे श्रीकृष्ण के विपरीत कंस.

4 अरब आयु वाली इस पृथ्वी पर जाने कितनी सभ्यताएं आईं और गईं. हर सभ्यता में एक धड़ा संरक्षण करता रहा दूसरा उसके विनाश की ओर बढ़ता है. प्रभुत्व के संघर्ष हमेशा रहे हैं. ये प्रभुत्व का ही संघर्ष है कि ‘सेपियंस’ के रूप में सिर्फ हमारी मानव जाति, यहां तक पहुंच सकी. आज भी ये संघर्ष जारी है. बस नाम और चेहरे बदल गए हैं.

अतीत से सीखने की जरूरत है ना की अतीत को बदलने की. अतीत बदला जा भी नहीं सकता है. आज जो Aurangzeb के हिमायती बन रहे हैं, ना वो Aurangzeb को जानते हैं और जो छत्रपति महाराज का झंडा बुलंद कर रहे हैं, ना वो उनके बलिदान को जानते हैं.

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भूत में उलझने की बजाय वर्तमान संवारने पर ध्यान दो. डेवलपमेंट, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, प्रदूषण समेत कई बातें हैं जो इनसे अधिक जरूरी हैं. तुम ज्यादा से ज्यादा 60-70 साल तक हो यहां. फिर तुम्हारा किसी को पता नहीं होगा. इसे अपने लिए जियो, एजेंडों के लिए नहीं.’

Last Updated on March 18, 2025 4:34 pm

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