Ram temple event: राम मंदिर क्यों नहीं जाना, पढ़ें कांग्रेस और शंकराचार्य क्या कहते हैं?

राम से कांग्रेस को क्या है दिक्कत? फोटो क्रेडिट-@ShriRamTeerth एक्स अकाउंट
राम से कांग्रेस को क्या है दिक्कत? फोटो क्रेडिट-@ShriRamTeerth एक्स अकाउंट

Ram temple event: राम तो सबके हैं, फिर राम मंदिर जाने पर आपत्ति क्यों? 10 जनवरी यानी कि बुधवार से सबके मुंह पर यही बात है, जब से कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के न्योते को ठुकराया है. कई राजनीति के जानकार भी समझ नहीं पा रहे हैं कि कांग्रेस ने समारोह में जाने से मना क्यों किया? जबकि कई बार देखा गया है कि कांग्रेसी नेता भी राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने की कोशिश करते हैं. कुछ दिनों पहले राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी एक बयान आया था, जिसमें वो कहते हैं, “राम मंदिर को बनाने में राजस्थान सरकार का बहुत बड़ा योगदान है लेकिन इसका कोई नाम नहीं ले रहा है. PM मोदी कम से कम राजस्थान सरकार को धन्यवाद तो देते.

वहीं पूर्व सीएम कमलनाथ ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान एक इंटरव्यू में राम मंदिर और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का ज़िक्र किया था. उन्होंने कहा था, ‘राम मंदिर को लेकर प्रधानमंत्री रहते राजीव गांधी ने भी काफी कुछ किया था. 1986 में पहली बार राम मंदिर का ताला खुलवाने का श्रेय भी राजीव गांधी को ही हासिल है. राजीव गांधी ने सिर्फ ताला ही नहीं खुलवाया था, बल्कि विश्व हिंदू परिषद को शिलान्यास की अनुमति भी दी थी और कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अपने मंत्री बूटा सिंह को भी भेजा था. ये राजीव गांधी ही रहे हैं जिनके कार्यकाल में दूरदर्शन पर रामानंद सागर के रामायण सीरियल को प्रसारित कराया गया. 1989 का चुनाव करीब आने तक राजीव गांधी ने राम राज्य लाने का वादा भी किया था.’
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कांग्रेस का स्टैंड कब बदला?
ऐसे में सवाल उठता है कि राम मंदिर को लेकर कांग्रेस का स्टैंड कब और क्यों बदला? कुछ दिनों पहले न्योता मिलने के बाद तक कांग्रेस का यही स्टैंड था कि सोनिया गांधी का पॉजिटिव रुख है. अगर वो नहीं जाएंगी तो किसी पार्टी नेता/ प्रतिनिधिमंडल को अयोध्या भेजा जाएगा. उद्धव ठाकरे गुट का भी यही मानना था कि कांग्रेस को समारोह में जाना चाहिए. जबकि अरविंद केजरीवाल और और शरद पवार न्योता मिलने का इंतजार कर रहे हैं.

हालांकि लालू प्रसाद यादव, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी, वृंदा करात जैसे नेताओं ने अयोध्या से पहले ही दूरी बना रखी थी. तो क्या कांग्रेस भी इन्हीं दलों की लाइन पर है?
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बयान तो कुछ ऐसा ही कहता है. बुधवार को कांग्रेस ने एक बयान जारी करते हुए कहा, ”हमारे देश में लाखों लोग भगवान राम की पूजा करते हैं. धर्म एक निजी मामला है. लेकिन आरएसएस / बीजेपी ने लंबे समय से अयोध्या में मंदिर को राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाया है. बीजेपी और आरएसएस के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है. 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए और भगवान राम का सम्मान करने वाले लाखों लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी ने स्पष्ट रूप से आरएसएस/बीजेपी के कार्यक्रम के निमंत्रण को सम्मानपूर्वक अस्वीकार कर दिया है.”

क्या बीजेपी यही चाहती थी?
कई राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कांग्रेस ने न्योता अस्वीकार कर अपने लिए मुश्किल बढ़ा ली है. वहीं न्योता अस्वीकार करने के पीछे कांग्रेस का भी यही डर है. जो कि उन्होंने बयान जारी करते हुए कहा भी है- “आरएसएस / बीजेपी ने लंबे समय से अयोध्या में मंदिर को राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाया है. बीजेपी और आरएसएस के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है.”
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लोकसभा चुनाव में महज तीन महीने का वक़्त रह गया है. पिछले एक महीने से सभी टीवी चैनलों पर राम मंदिर की भव्यता और पीएम मोदी के विशाल आयोजन की ही चर्चा हो रही है. मौजूदा समय में शहर के किसी भी सोसाइटी में चले जाइए, रोज़ाना राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर ज़ुलूस निकालने और ‘पूजित अक्षत’ बांटने का कार्यक्रम चल रहा है. 22 जनवरी को राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद से अगले दो महीने तक बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर जाने के इच्छुक श्रद्धालुओं की सहायता करने के लिए अभियान चलाएगी. यह अभियान 25 जनवरी से 25 मार्च तक चलेगा. यानी एक बात तो साफ़ है कि बीजेपी राम मंदिर के मुद्दे को तो भुनाएगी ही, कांग्रेस को ‘हिंदू विरोधी’ प्रचारित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ेगी.

कांग्रेस ने अपने पैरों पर मारी कुल्हाड़ी?
1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अयोध्या में सरयू नदी के तट से अपने लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत की थी. तब उन्होंने ‘राम राज्य’ का वादा भी किया था. लेकिन 1989 की चुनावी हार के बाद राजीव गांधी ने ‘राम राज्य’ के बारे में बात करनी बंद कर दी. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद सोनिया गांधी ने अपना पहला राजनीतिक बयान देते हुए कहा था कि अगर राजीव जीवित होते तो वो बाबरी विध्वंस की अनुमति नहीं देते. जबकि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने अपनी पुस्तक में राजीव गांधी और उनकी टीम द्वारा विवादित स्थल पर ‘शिलान्यास’ करने का जिक्र किया था. यानी तभी से कांग्रेस का स्टैंड बदल रहा था. जबकि वहीं से बीजेपी ने इस स्टैंड को पकड़ लिया.
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शंकराचार्यों की क्या है आपत्ती?
ज्योतिष्पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने कुछ दिनों पहले कहा कि आधे अधूरे मंदिर में भगवान को स्थापित किया जाना न्यायोचित और धर्म सम्मत नहीं है. हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी नहीं बल्कि हितैषी हैं. इसलिए सलाह दे रहे हैं कि शास्त्र सम्मत कार्य करें.

उन्होंने आगे कहा कि पूर्व में तत्कालीन परिस्थिती की वजह से बिना मुहूर्त के राम की मूर्ति को सन 1992 में स्थापित किया गया था. लेकिन वर्तमान समय में स्थितियां अनुकूल हैं. ऐसे में उचित मुहूर्त और समय का इंतजार किया जाना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के उस बयान पर भी नाराज़गी ज़ाहिर की जिसमें न्होंने कहा है कि ‘राम मंदिर रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों का है, शैव और शाक्त का नहीं.’ उन्होंने राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव समेत सभी पदाधिकारियों के इस्तीफे की भी मांग की है.

वहीं ओडिशा के जगन्नाथपुरी मठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा,‘मोदी जी लोकार्पण करेंगे, मूर्ति का स्पर्श करेंगे तो मैं वहां तालियां बजाकर जय-जयकार करूंगा क्या? मेरे पद की भी मर्यादा है. राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रों के अनुसार होनी चाहिए, ऐसे आयोजन में मैं क्यों जाऊं?’. उन्होंने कहा कि राम मंदिर पर जिस तरह की राजनीति हो रही है, वह नहीं होनी चाहिए. इस समय राजनीति में कुछ सही नहीं है. आज सभी प्रमुख धर्म स्थलों को पर्यटन स्थल बनाया जा रहा है. धर्म स्थलों को भोग-विलासता की चीजों से जोड़ाना ठीक नहीं है.

Last Updated on January 11, 2024 11:00 am

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