Rooh Afza vs Patanjali: शरबत का धर्मयुद्ध या मार्केटिंग मास्टरस्ट्रोक?

“1947 में मुल्क बंटा, हमदर्द भी. एक रूह अफ़ज़ा इंडिया में रहा, दूसरा पाकिस्तान चला गया. बाद में बांग्लादेश भी जुड़ गया इस मोहब्बत के शरबत से.”

रूह अफ़ज़ा: मोहब्बत का शरबत या 'शरबत जिहाद'?
रूह अफ़ज़ा: मोहब्बत का शरबत या 'शरबत जिहाद'?

Rooh Afza vs Patanjali: “जब लू चलती है और गला सूखता है… तब कोई और नहीं, सिर्फ एक ही याद आता है – रूह अफ़्ज़ा.” लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये गुलाबी जादू आया कहां से? साल था 1906. ब्रिटिश इंडिया के लाहौर में एक यूनानी हकीम हुआ करते थे – हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद. उनका सपना था – गर्मी से बेहाल लोगों के लिए एक ऐसा ‘कूलर इन ए बॉटल’ बनाया जाए, जो सेहत भी दे, स्वाद भी और राहत भी.

1906 की दिल्ली की गलियों में, हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने एक यूनानी दवाखाना ‘हमदर्द’ की नींव रखी. अगले साल, 1907 में, उन्होंने एक खास शरबत तैयार किया—’रूह अफ़ज़ा’. इसका मतलब होता है ‘आत्मा को ताज़गी देने वाला’. गुलाब, केवड़ा, खस, तरबूज, पुदीना और कई जड़ी-बूटियों से बना यह शरबत गर्मियों में लू से बचाने के लिए तैयार किया गया था. ​

1947 के विभाजन के बाद, हमदर्द कंपनी भी बंट गई. हकीम मजीद के बड़े बेटे, हकीम अब्दुल हमीद भारत में रहे और यहीं रूह अफ़ज़ा का निर्माण जारी रखा. छोटे बेटे, हकीम मोहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए और वहां रूह अफ़ज़ा बनाना शुरू किया. बाद में, बांग्लादेश में भी हमदर्द की स्थापना हुई. इस तरह, रूह अफ़ज़ा तीन देशों में फैल गया. ​

ये भी पढ़ें- दमोह में 7 मौत के बाद Fake Doctor John Camm की खुलने लगी पोल, पढ़ें पूरी डिटेल

रामदेव का ‘शरबत जिहाद’ बयान: विवाद की जड़
हाल ही में, योग गुरु बाबा रामदेव ने अपने पतंजलि गुलाब शरबत के प्रचार के दौरान ‘शरबत जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया. उन्होंने आरोप लगाया कि एक शरबत कंपनी अपनी कमाई का इस्तेमाल मस्जिदें और मदरसे बनवाने में कर रही है. रामदेव ने सॉफ्ट ड्रिंक्स की तुलना टॉयलेट क्लीनर से करते हुए पतंजलि शरबत को बेहतर विकल्प बताया. ​

रामदेव के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं. कई लोगों ने इसे सांप्रदायिकता फैलाने वाला और मार्केटिंग के लिए अनुचित बताया. पूर्व IPS अधिकारी अमिताभ दास ने कहा कि ‘रूह अफ़ज़ा मोहब्बत का शरबत है’ और इसे सांप्रदायिक रंग देना गलत है. ​

रूह अफ़ज़ा: सांस्कृतिक विरासत या व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का शिकार?
रूह अफ़ज़ा सिर्फ एक शरबत नहीं, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है. यह रमजान के दौरान इफ्तार में, गर्मियों में ठंडक के लिए और त्योहारों में विशेष रूप से उपयोग किया जाता है. हमदर्द कंपनी के अनुसार, रूह अफ़ज़ा की रेसिपी एक पारिवारिक रहस्य है, जिसे केवल तीन लोग जानते हैं. ​

ये भी पढ़ें- “पीरियड आया है तो क्लास के अंदर मत बैठो!” दलित बेटी सीढ़ियों पर परीक्षा देने को मजबूर क्यों?

रामदेव का ‘शरबत जिहाद’ बयान न केवल व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक को विवादों में घसीटने का प्रयास भी है. यह देखना महत्वपूर्ण है कि उपभोक्ता इस विवाद को कैसे देखते हैं और क्या वे अपने पसंदीदा शरबत को सांप्रदायिक चश्मे से देखना शुरू करेंगे.​

Last Updated on April 12, 2025 8:52 am

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *