मां की ममता बहुत सुनी, अब Swiggy Delivery Agent पंकज की बापता पढ़ें.. रो पड़ेंगे…

पंकज ने बताया कि उसकी बेटी का नाम ‘टुन टुन’ है और जन्म के कुछ समय बाद ही उसकी मां का निधन हो गया था. “शाम के वक्त घर में कोई नहीं होता. बड़ा बेटा कोचिंग चला जाता है. बच्ची को छोड़ने के लिए कोई नहीं है, इसलिए उसे साथ लाता हूं,”

मजबूर Swiggy Delivery Agent पिता की कहानी
मजबूर Swiggy Delivery Agent पिता की कहानी

गुरुग्राम से आयी एक डिलीवरी एजेंट (Swiggy Delivery agent) की कहानी सोशल मीडिया पर दिलों को छू रही है. स्विगी के डिलीवरी एजेंट (Swiggy Delivery agent) पंकज की कहानी बताती है कि ममता केवल मां की पहचान नहीं, परिस्थितियां जब मजबूर करती हैं तो एक पिता भी ममता की मिसाल बन सकता है.

पंकज रोज़ाना अपनी दो साल की बेटी को बाइक पर साथ लेकर फूड डिलीवरी करने निकलते हैं. यह कहानी सामने लाए हैं गुरुग्राम स्थित एक कंपनी के सीईओ मयंक अग्रवाल, जिन्होंने इसे लिंक्डइन पर साझा किया.

‘बच्ची की आवाज़ सुन कर चौंक गया’
मयंक बताते हैं, “मैंने एक दिन स्विगी से खाना ऑर्डर किया. डिलीवरी एजेंट पंकज मेरे सेकेंड फ्लोर के घर के नीचे पहुंचा. मैंने उसे ऊपर आने को कहा, तभी मुझे फोन पर किसी छोटे बच्चे की आवाज़ सुनाई दी. मैंने पूछा, ‘क्या तुम्हारे साथ कोई बच्चा है?’ उसने कहा ‘हां’. मैंने कहा, ‘तुम रुको, मैं नीचे आता हूं.’”

नीचे जाकर मयंक ने देखा कि पंकज अपनी छोटी बेटी के साथ बाइक पर खड़े हैं.

‘घर में कोई नहीं होता, बेटी को साथ लाना पड़ता है’
पंकज ने बताया कि उसकी बेटी का नाम ‘टुन टुन’ है और जन्म के कुछ समय बाद ही उसकी मां का निधन हो गया था.

“शाम के वक्त घर में कोई नहीं होता. बड़ा बेटा कोचिंग चला जाता है. बच्ची को छोड़ने के लिए कोई नहीं है, इसलिए उसे साथ लाता हूं,” पंकज ने मयंक को बताया.

‘समाज की प्रतिक्रियाएं और पंकज की मुस्कान’
मयंक ने लिखा कि कुछ ग्राहकों ने पंकज से यह भी कह दिया: “अगर तुम नहीं संभाल सकते तो घर पर बैठो. बच्ची होना तुम्हारी समस्या है.”

मयंक कहते हैं, “यह सुनना परेशान करने वाला था. हम बतौर समाज किस दिशा में जा रहे हैं?” लेकिन पंकज के चेहरे पर कोई शिकवा नहीं था—सिर्फ़ एक शांत मुस्कान.

‘एक पिता, एक योद्धा’
मयंक लिखते हैं, “मिस्टर पंकज के पास न तो कोई चाइल्डकेयर है, न कोई सहारा. है तो बस एक पिता का प्रेम और कर्तव्य का भाव. वह हर दिन बच्ची के साथ काम पर निकलते हैं. उनकी मजबूरी ही उनका हौसला बन गई है.”

उन्होंने उम्मीद जताई कि स्विगी जैसी कंपनियां ऐसे डिलीवरी एजेंट्स के लिए सपोर्ट सिस्टम तैयार करेंगी.

‘कहानी जो हमेशा याद रहेगी’
मयंक कहते हैं, “मैंने अपनी ओर से जितना बन पाया, किया. लेकिन पंकज की कहानी और उनकी बिटिया का मासूम चेहरा मेरे ज़ेहन में हमेशा रहेगा. ये याद दिलाता है कि ज़िंदगी कितनी मुश्किल हो सकती है, और फिर भी हम कैसे मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते हैं.”

नोट: अगर कोई इस कहानी को चाइल्ड सेफ़्टी के चश्मे से देखे, तो पहले उस मजबूरी को समझे जिसमें यह पिता जी रहे हैं. यह उनकी पसंद नहीं, परिस्थिति की पुकार है.

और हां, कभी किसी पिता के प्यार को कम मत आंकिएगा.

Last Updated on May 18, 2025 10:09 am

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