UP Election: चुनाव से पहले लोकार्पण और नेताओं के पार्टी बदलने से क्या बदल जाएगा?

उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) से पहले सरकार द्वारा योजनाओं की झड़ी लगा दी गई है. वहीं यूपी में मुख्य प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाली समाजवादी पार्टी (SP) सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर गैर यादवों को जोड़ने में जुटी है. नतीजा यह हो रहा है कि अब तक BJP से एक-एक कर 11 विधायक पाला बदल कर सपा (SP) में शामिल हो गए हैं. रविवार को BJP के एक और मंत्री दारा सिंह चौहान (Dara Singh Chauhan) आधिकारिक तौर पर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.

इससे पहले 14 जनवरी को उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मंत्री स्‍वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) और धर्म सिंह सैनी (Dharam Singh Saini) ने एक कार्यक्रम के दौरान अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की मौजूदगी में समाजवादी पार्टी ज्‍वॉइन कर ली. विनय शाक्‍य और भगवती सागर समेत छह विधायकों ने भी शुक्रवार को आधिकारिक रूप से समाजवादी पार्टी से नाता जोड़ लिया. अखिलेश इससे पहले ओम प्रकाश राजभर और जयंत चौधरी को भी अपने साथ जोड़ चुके हैं.

चुनाव से ठीक पहले नेताओं का पार्टी बदलना कोई नई बात नहीं है. स्वामी प्रसाद मौर्य इससे पहले बसपा (BSP) में हुआ करते थे और मायावती सरकार में मंत्री थे. बहुजन समाज पार्टी में उनका बड़ा कद था. वे मायावती के बेहद करीबी माने जाते थे. बीजेपी में बड़ा पद पाने की इच्छा में जुड़े. वहीं बीजेपी को उम्मीद थी कि स्वामी प्रसाद मौर्य के जुड़ने से पिछड़े तबके को साथ लाने में मदद मिलेगी. हुआ भी यही. लेकिन इस बार बीजेपी, सोशल इंजीनियरिंग के मुद्दे पर बेहद कमजोर पड़ रही है. बताया जा रहा है कि आने वाले समय में और भी कई नेता अखिलेश यादव के साथ जुड़ेंगे.

बागी नेता अखिलेश के साथ क्यों?

स्वामी प्रसाद मौर्य हों, भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद या फिर कांग्रेस (Congress) नेता इमरान मसूद, सभी समाजवादी पार्टी की तरफ देख रहे हैं. ये अलग बात है कि चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) और इमरान मसूद को समाजवादी पार्टी से उतना भाव नहीं मिला, जितने की अपेक्षा थी. समाजवादी पार्टी के लिए अच्छी बात यह है कि वह बागियों को अपने साथ जोड़कर लोगों में यह संदेश दे रहे हैं कि बीजेपी के अपने भी अब उनका साथ छोड़ रहे हैं.

इन नेताओं के आने से समाजवादी पार्टी को कितना लाभ होगा यह तो 10 मार्च 2022 को ही पता चलेगा. लेकिन क्या प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ हवा है. अगर नहीं तो नाव बदलने वाले नेता फिर से सक्रिय क्यों हैं? उन्हें उम्मीद तो होगी कि सरकार बदलेगी और अपनी राजनीतिक हैसियत भी.

योगी सरकार धड़ाधड़ योजनाओं का कर रही है लोकार्पण

20 दिसंबर 2021 को सीएम योगी ने, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Union Minister Nitin Gadkari) और अनुप्रिया पटेल की मौजूदगी में मिर्ज़ापुर में 3,037 करोड़ रुपये की लागत से 146 किलोमीटर की सड़कों और जौनपुर में 1,538 करोड़ रुपये की लागत से 86 किलोमीटर लंबी सड़क के अलावा 348 अन्य परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया.

ऐसा नहीं है कि योगी सरकार ही चुनाव से पहले ताबड़तोड़ लोकार्पण कर रही है. 20 दिसंबर 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ में कई परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, तब अखिलेश यादव ने 5 घंटे में 60 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं का लोकार्पण/शिलान्यास किया था.

ये दोनों घटनाएं बताती हैं कि आचार संहिता लगने से ठीक पहले सत्ताधारी पार्टी माहौल बनाने के उद्देश्य से इतनी योजनाओं का लोकार्पण/शिलान्यास करती है. क्या इस तरह की घोषणाओं से पार्टी को फायदा होता है? कई राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस तरह के उद्घाटन कई बार जनता को रिझाने के काम आती हैं. लेकिन यह वही लोग होते हैं जो माहौल देखकर वोट करते हैं. लेकिन अगर सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ एकतरफा माहौल हो तो फिर बहुत मुश्किल होती है.

धर्म के नाम पर वोट बटोरने की कोशिश

सीएम योगी हों या बीजेपी के अन्य वरिष्ठ नेता राम मंदिर के नाम पर हिंदू धर्म का वोट पाने की कोशिश में जुटे हैं. चुनाव से कुछ दिनों पहले ही वाराणसी में विश्वनाथ कॉरिडोर का भव्य उद्घाटन और ‘मथुरा काशी-बाकी है’ जैसे नारे के जरिए भी भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद है कि वह ज्यादा से ज्यादा हिंदुओं का वोट पाने में सफल रहेगी. एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग है, जो कि करीब 52 प्रतिशत है. इसमें करीब 43 प्रतिशत वोट गैर यादव ओबीसी का भी है. ऐसे में सिर्फ हिंदूत्व (Hindutva) के सहारे ही वोट पाना आसान नहीं होगा.

बीजेपी के लिए मुश्किल यह है कि किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी यूपी में उनके खिलाफ माहौल बना हुआ है. इसके साथ ही राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख अजीत चौधरी के बेटे जयंत चौधरी के अखिलेश के साथ गठबंधन करने से बीजेपी बेहद कमजोर हुई है. बता दें, कोरोना महामारी की चपेट में आए चौधरी अजीत सिंह का पिछले साल देहांत हो गया था. इसके बाद से पार्टी की कमान जयंत चौधरी के पास ही है.

वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के आने से माना जा रहा है कि पूर्वांचल में लगभग 100 सीटों पर बीजेपी को भारी नुकसान होगा. रही सही कसर हाल के दिनों में पेट्रोल-डीजल से लेकर खुदरा महंगाई ने पूरी कर दी है. जो एक बड़े तबके को सीधे प्रभावित करती है. वहीं इस बार मुस्लिम समुदाय के लोग भी बीजेपी को हराने के लिए एकजुट होंगे. ऐसे में माना जा रहा है कि इस समुदाय का ज्यादातर वोट समाजवादी पार्टी को ही मिलेगा. जो बीजेपी के लिहाज से ठीक नहीं है. कई राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यूपी में इस बार 100 से ज्यादा सीटों पर मुकाबला हजार से भी कम वोटों का हो सकता है. ऐसे में बीजेपी के लिए राह पिछले चुनाव जितनी आसान नहीं होने वाली है.

बीजेपी के बड़े नेता खूब बहा रहे पसीना

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर BJP 2022 में यूपी का चुनाव हार जाती है, तो 2024 में विपक्ष के लिए कुछ उम्मीदें बढ़ सकती हैं. यही वजह है कि BJP के बड़े बड़े नेता पसीना बहा रहे हैं. BJP के सबसे बड़े चेहरे नरेंद्र मोदी खुद एक महीने में सात बार उत्तर प्रदेश का दौरा कर चुके हैं. गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा तमाम दूसरे केंद्रीय और राज्य कैबिनेट के मंत्री यूपी चुनाव से पहले जमकर पसीना बहा रहे हैं.

खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिसंबर महीने के लगभग हर दिन अलग-अलग जिलों में दौरा कर चुके हैं. इन जिलों में सीएम योगी के दौरे के साथ ही करोड़ों रुपये की परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया गया.

Last Updated on January 16, 2022 4:34 pm

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