Farah Khan Food Show: फराह खान का अपने नौकर और सेलिब्रिटियों के साथ खाना बनाने का कथित शो विशुद्ध रूप से यह स्पष्ट कर देता है कि बॉलीवुड में विचारों की कमी नहीं है बल्कि आइडियाज़ का अकाल पड़ चुका है. अब यह सर्वविदित है कि बॉलीवुड लंबे समय से एक फार्मूले पर काम करता है. यह फॉर्मूला बीच-बीच में बदलता है और जैसे ही बदलता है बाकी लोग उस फॉर्मूले पर फिल्में बनाने लग जाते हैं.
हमने सलीम-जावेद फार्मूला देखा जिसे एंग्री यंग मैन फॉर्मूला कहा गया और अमिताभ उसके झंडाबरदार बने. कालांतर में मिठुन, अनिल कपूर आदि लोगों ने इस झंडे को ढोया. उसके बाद रोमांटिक फिल्मों का दौर आया जिसमें शाहरूख खान, आमिर खान और आगे चलकर सलमान खान की बादशाहत हुई. यह वो समय भी था जब बंबई से इतर दूसरे राज्यों के लोग बंबई आए और फिल्में बनानी शुरू कीं.
इस दौर में हमने अनुराग कश्यप एंड ilk या कहें कि एक तरह का वैकल्पिक सिनेमा जो कमर्शियल भी हो उसका दौर आया. अनुराग से पहले रामगोपाल वर्मा और उसके बाद दिबाकर बनर्जी, अनुराग बासु के अलावा और भी कई डायरेक्टर इस लीक पर चले लेकिन ये सारी लीकें अचानक से टूट गईं.
इसे तोड़ा दबंग नाम की फिल्म ने जिसने एक बार फिर से बॉलीवुड को अपना चिरपरिचित फॉर्मूला दिया कि हीरो सबकुछ कर सकता है और सबकुछ उसके इर्द गिर्द घटेगा ग्रैंड लेबल पर. इस फार्मूले के बाद हमने सिंघम सीरिज़ और अक्षय कुमार की लगातार घटिया फिल्में देखीं.
अजय देवगन जैसे अच्छे अभिनेता को और कालांतर में शाहरूख खान को इस महाग्रैंड नैरेटिव का शिकार होकर पठान और जवान जैसी घटिया फिल्में बनानी पड़ीं जो कथित रूप से हिट रहीं. पिछले दस सालों में गलत सलत इतिहास की फिल्में बनने और फ्लॉप होने की उठापटक के बीच पैरेलल सिनेमा का जो संसार खड़ा हो रहा था जिसमें हम लंचबॉक्स, फोटोग्राफ, सर जैसी फिल्मों (और भी हैं) के नाम ले सकते हैं उन फिल्मों को सुनियोजित ढंग से बर्बाद करने की प्रक्रिया शुरू हुई और इसका बीड़ा उठाया पेड रिव्यूअर्स ने.
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तरण आदर्श, कोमल नाहटा और अधिकतर बंबई बेस्ड समीक्षक पैसे लेकर फिल्मों की तारीफ करते हैं. यह अब ढकी छुपी बात नहीं है. जिसे दिक्कत हो वह अल जज़ीरा की हालिया रिपोर्ट देखें जिसमें इन सभी लोगों के रेटकार्ड छपे हैं कि वो कितना पैसा लेकर पॉजिटिव रिव्यू लिखते हैं. इस चक्कर में करण जौहर जैसे टुच्चे प्रोड्यूसर डायरेक्टर द्वारा बनाई गई निकृष्टतम फिल्मों को हिट करार दिया गया और एक बेहतर फिल्ममेकिंग की बनती हुई इमारत को ढहा दिया गया.
राष्ट्रवाद और मिथकीय इतिहास का नया झोंका राजामौली लेकर आए जो अपनी यह ट्रिक तेलुगु में मगादीरा से आजमा चुके थे. उन्होंने बाहुबली के ज़रिए बॉलीवुड को एक और फार्मूला दिया जिस पर पिछले आठ नौ सालों में कुछ नहीं तो पंद्रह फिल्में बन ही चुकी हैं. कुछ हिट रही कुछ फ्लॉप.
इस बीच Kapil Sharma सबसे बडे़ शोमैन होकर उभरे जिनकी ख्याति घटिया चुटकुलों से बढ़ी और आज उसके शो में आने के लिए बड़े अभिनेता भी तड़पते हैं. जिन्हें शक हो वो देखें कि कपिल के शो में आकर अच्छे अच्छे अभिनेताओं ने कपिल की तारीफ की है. कपिल के चुटकुले अभी भी वैसे ही हैं. कम से कम कपिल खुलेआम कहते हैं कि वह फिल्मों का पीआर करते हैं. फिल्मों के प्रोडयूसर पैसा देते हों कपिल के शो को तो यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा.
खैर अभी Farah Khan का फूड शो जिसमें वह अपने नौकर का मज़ाक उड़ाकर जिस तरह का घटिया शो बना रही हैं उस पर यही कहा जा सकता है कि ये लोग फूहड़ और घटिया चीज़ें बनाने में माहिर लोग हैं. मुझे यह जानकर आश्चर्य होगा कि Farah Khan के घर में काम करने वाले उनके नौकर को इन वीडियोज़ से बनने वाली रॉयल्टी का कोई हिस्सा दिया जा रहा हो. मेरा अनुमान है कि नहीं. शो स्क्रिप्टेड हो तो भी नौकर का ही मज़ाक क्यों उड़ाना.
पिछले कुछ समय में बॉलीवुड ने जिस बेशर्मी से भाई भतीजावाद और पैसों के बल पर कुछ भी हिटा करा लेने को डिफेंड किया है वह पिछले बरसों में शायद ही किसी ने देखा हो. मुझे पता है कि इंडस्ट्री में काम कर रहे मेरे की मित्रों को यह बात बुरी लग सकती है लेकिन यही सच्चाई है. मुश्किल, अच्छे फिल्ममेकरों के लिए है जो कुछ बेहतर करना चाहते हैं.
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विचारों का ऐसा अकाल है कि पंचायत और लापता लेडीज़ जैसी औसत सीरिज़ का स्पिन ऑफ बनाया जा रहा है मानो कि और कोई कहानी ही नहीं हो इंडस्ट्री के पास. कहानी से याद आया. मेरा अपना विश्लेषण है कि इसके लिए सलीम-जावेद की जोड़ी का हिट होना और उनका स्टारडम ज़िम्मेदार है.
लेखक के रूप में उनके एरोगेंस ने शायद प्रोड्यूसर डायरेक्टरों को यह समझ दी होगी कि लेखक को अधिक भाव मत दो वर्ना वह सर पर चढ़ जाएंगे. आप देखेंगे कि लेखक नाम की चिड़िया सलीम-जावेद के साथ बॉलीवुड में विलुप्त होती चली गई.
कम बोले को अधिक समझिए कि कई डायरेक्टर जिन्हें पांच पंक्तियां लिखना नहीं आता है वह भी लेखक का क्रेडिट आधा खा जाता है. हर डायरेक्टर लेखक या स्क्रीनप्ले राइटर के रूप में अपना नाम चाहता है जबकि सुपरस्टारों की फिल्मों में सेट पर डायलॉग और प्लॉट बदलने के किस्से डाक्यूमेंटेंड हैं.
Former Multi-Media Journalist at BBC News हिन्दी जे सुशील के फेसबुक पेज से..
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
Last Updated on March 13, 2025 4:28 pm