Kanya Pujan: आज बालिकाओं का दिन है. सोसायटी में देख रहा हूँ कि लोग बालिकाओं के सामने मिन्नतें कर रहे हैं कि वह उनके घर भी जाएं. शायद ये सभी कंजक पूजन (Kanya Pujan ) कर स्वर्गलोक में अपने लिए प्लॉट ख़रीद रहे हैं. दो कन्या पूजन में 100 गज ज़मीन और 20 में 1000 गज. इस धरती पर भी चोरी-बेईमानी कर अपने लिए सुख भोग का अमरत्व ही प्राप्त करना चाहते हैं. ऐसा नहीं है कि धन की लालसा रखने वाले सभी लोग बेईमान ही हैं. रतन टाटा जैसे लोग भी हैं जिन्होंने जीवन पर्यन्त समाज को बहुत कुछ दिया भी.
ख़ैर बात कन्या पूजन (Kanya Pujan) की. समझ में नहीं आता कि जिस समाज में बुजुर्ग भी आज छोटी-छोटी कन्याओं के पैर छू लेने को आतुर हैं वहां पर दो-तीन साल की मासूम के साथ रेप कैसे हो जाता है? घिन आती है समाज के इस दोगलेपन पर.
मेरी सोसायटी में गरबा प्रोग्राम चल रहा है. बच्चियां और महिलाएं रंग-बिरंगे पोशाकों में शामिल हो रही हैं. नृत्य कर रही हैं. हर आयु वर्ग का अलग-अलग समूह है. कोई बड़े झुंड में घेरा बनाकर तो कुछ पांच-दस के समूह में नृत्य कर रही हैं. जिस तरह की ख़बरें रोज़ाना देखता हूं उससे इतर तस्वीर. महिलाएं, बच्चे सभी इस पल को जी लेना चाहते हैं. उनके चेहरे की मुस्कुराहटें और भाव निश्छल हैं. नाचती हुई सभी तितलियों सी नज़र आ रही हैं. अलग-अलग फूलों पर मंडराती हुई लाल-पीली, हरी-बैंगनी.
इसी भाव के बीच जब यह सोचता हूं कि देश के किसी हिस्से में ना जाने किस बच्ची या महिला के साथ रेप या हिंसा की घटना हो रही होगी तो सिहर जाता हूं. भला कोई व्यक्ति बिना पूछे इन सुंदर बच्चियों को छूने की हिमाक़त भी कैसे कर सकता है. आपको अपनी इच्छा इन महिलाओं पर थोपने का अधिकार कैसे मिल गया?
जिस परिवार के बच्चे या मर्द रेप जैसी घटना को अंजाम देते हैं क्या उनके घर में आज कन्या पूजन नहीं होता होगा? क्या इसके लिए सिर्फ़ उसका परिवार दोषी है या पूरा समाज, जो महिला भक्ति का नाटक करता है?
इसे एक उदाहरण के साथ समझाता हूं. मेरी सोसायटी में गरबा कार्यक्रम चल रहा है जैसा कि मैं ऊपर बता चुका हूं. कार्यक्रम स्थल के बग़ल में एक बड़ा सा पार्क है. सोसायटी के लोग इसे सेंट्रल पार्क बुलाते हैं. गरबा के बाद कई बच्चे और बच्चियां शोर-शराबे से दूर रात में यहां सुस्ताने बैठे. कुछ अपने दोस्तों के साथ सेल्फ़ी लेने लगे. इसी बीच युवाओं का एक समूह लड़कियों पर अपना प्रभाव जमाने के लिए ज़ोर ज़ोर से बातें करने लगे, चुटकुले सुनाने लगे. यहां तक तो ठीक है.
लड़कियों को इंप्रेस करने का भाव इस क़दर हावी हुआ कि वह ज़ोर ज़ोर से बोलने लगे कि ऐसे मत कर नहीं तो तेरा बलात्कार कर दूंगा और एक सुर में ठहाके लगाने लगे. बातें लड़के आपस में कर रहे थे लेकिन इतने लाऊड थे कि 100 मीटर दूर वॉक करते हुए भी मैं स्पष्ट सुन पा रहा था. लड़कों के समूह के पास खड़ी लड़कियां और उनके परिवार के लोग वहां से खिसकने लगे. लेकिन किसी ने बलात्कार जैसे जघन्य शब्द पर अट्टहास करते लड़कों को समझाने का प्रयास नहीं किया. संभवतः वह डर गए होंगे कि परिवार के साथ इन लफ़ंगों से कौन पंगे ले. जो कि बेहद स्वाभाविक है.
मेरी चिंता का विषय यह है कि यह सभी बच्चे संभवतः 9वीं से 12वीं के बीच के होंगे और यह सभी एक “सभ्य” समाज से आते हैं. जिनके मां-बाप इनके स्कूलिंग पर मोटी रक़म खर्च कर रहे होंगे लेकिन रिज़ल्ट आपके सामने हैं. ऐसा भी नहीं है कि इनके मां बाप ऐसे कृत्यों को सहमति देते होंगे. फिर परीक्षा में 99-100% मार्क्स लाने वाले ये बच्चे इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं?
हमारी कन्या पूजन वाली भावना distinction मार्क्स लाने वाले बच्चों तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है. तो क्या हमारा समाज दोगला है, जिसकी कथनी और करनी में भयंकर फ़र्क़ है और छोटे बच्चों ने भी उस रणनीति को अब डीकोड कर दिया है???
Last Updated on October 11, 2024 12:26 pm