जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ाए तब हमारी विदेश नीति फेल हुई?

जिस देश को FATF की ग्रे लिस्ट में बार-बार रखा गया. फिर भी उसे करीब डेढ़ बिलियन डॉलर का कर्ज मिल गया. मैं नहीं कहूंगा कि आप और आपके कारकून चाहे जितना जोर लगा लें लेकिन आपकी छवि पर लगे दाग को फिलहाल तो मिटा नहीं सकते.

भारत-पाकिस्तान टेंशन कभी खत्म होगा?
भारत-पाकिस्तान टेंशन कभी खत्म होगा?

भारत-पाकिस्तान युद्ध (India Pakistan tension) टल गया है. खत्म नहीं हुआ. होगा भी नहीं. इस फानी दुनिया में युद्ध खत्म होने के लिए नहीं होते. युद्ध हमेशा एक उम्मीद छोड़ते हैं कि हम कल फिर होंगे. युद्ध हमेशा होने के लिए ही बने हैं. बीच-बीच में शांति के स्टेशन हैं. बस बात ये है कि आपकी ट्रेन का कितनी देर इस स्टेशन पर हॉल्ट है?

मैं जिस ट्रेन में हूं उसमें तीन तरह की बातें तीन तरह के नेता कर रहे हैं. मैं अखबार के पन्नों में छुपकर उनकी बातें सुन रहा हूं. छुपकर बातें सुनना, दिखकर भी न दिखना एक प्लेजर है. मैं उसके आनंद में हूं. इससे मुझे सीआईडी या फिर आईबी का जासूस होने का एहसास हो रहा है.

तीन नेता भारत-पाक युद्ध को लेकर बातें कर रहे हैं. एक कहता है- ‘अच्छा हुआ युद्ध खत्म हुआ. हमने दुश्मन के दांत खट्टे कर ही दिए. इस बार ऐसी मार पड़ी है कि याद ही रखेंगे.’ दूसरा कहता है- ‘अजी क्या खाक अच्छा हुआ और ये युद्ध था भी कहां? युद्ध तो हमारे प्रधानमंत्री ने लड़ा था.’ तीसरे नेता ने कहा – आप दोनों आजादी के बाद से इस देश के बेवकूफ बनाते रहे. न ये युद्ध था न पहले जो युद्ध हुए वो युद्ध थे, युद्ध वो है जो हम लड़ रहे हैं दुनिया भर में पूंजीवाद के खिलाफ. ये युद्ध जारी है.

यात्री जनता हैं. जनता के सामने तीन विकल्प हैं. वो तीनों विकल्प में से कोई एक चुन सकती है. देश में यही लोकतंत्र की सुंदर तस्वीर है. आप स्माल, मीडियम, लार्ज या फिर एस्क्ट्रा लार्ज चुन सकते हैं. बस यही चुनकर लोग सोशल मीडिया पर उतरते हैं. या फिर यही चुनने के लिए उतरते हैं. आप अपनी सुभीता से चुन सकते हैं.

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पर सवाल ये है कि अगर इन तीन ऑप्शन में से आप किसी भी एक ऑप्शन के पक्ष में नहीं तो? तो ये कि आप तीनों तरफ से मारे जाएंगे. क्योंकि तीनों ही तरह की धारा के लंपट कारकूनों की फौज है. उसकी डिप्लॉएमेंट हर तरफ है.

अभी मध्यप्रदेश के एक आदरणीय मंत्री का बयान तो आपने सुना होगा. सर्च करेंगे तो मिल जाएगा. ये संघ की पवित्र धारा से निकले लोग हैं. जो राष्ट्र और सांस्कृतिक चेतना के संन्यासी हैं. उनके गीत बड़े मधुर और प्रेरक हैं पर निवेदन है उन्हें अपने बच्चों को मत सुनाइएगा.

आज के दौर में तर्क के दांत नहीं होते. दांत तर्कहीन टिप्पणियों के होते हैं. वो लोगों को काट खाती हैं. यही वजह है कि तर्क का जवाब दांत काटकर दिया जाता है. अब मुझे उन तीन नेताओं की बात में रस नहीं आ रहा. वो लड़ नहीं रहे. न तर्क दे रहे हैं.

अभी अभी देखा एक एडिटर को सरकार की तारीफ करने के फेर में दूसरे पूर्व एडिटर ने टिप्पणी करके काट लिया. एडिटर महोदय ने कहा आप तो मुझे अच्छे से जानते हैं वैसे ही जैसे मेरा परिवार. दूसरे ने कहा हां जानता हूं फिर भी अभी काटना मेरा धर्म है, कल जब सरकार बदलेगी तो मैं तर्क रखूंगा तुम काटना.

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सरकार के पक्ष में बोलने वाले हमेशा तर्क ही रखते हैं ऐसा बहुधा कहा जाता है. जैसे कि ये एक प्रामाणिक तर्क है कि सीज फायर हो चुका है. जैसे कि ये प्रामाणिक तर्क है कि हमने दुश्मन को बहुत फोड़ा है. जैसे कि ये भी प्रामाणिक तर्क है कि प्रधानमंत्री ने खुली छूट सेना को दे रखी थी और है. जैसे कि ये प्रामाणिक तर्क है कि दुश्मन के एक दर्जन एयरबेस तबाह हुए हैं.

जैसे कि प्रामाणिक तर्क है कि संघर्ष विराम की खबर सबसे पहले अमेरिका से आई. जैसे कि ये प्रामाणिक तर्क है कि देश की सरकार ने इस बात को पीसी सरकार के मैजिक की तरह गायब कर दिया कि जो दावा अमेरिका और ट्रंप कर रहे हैं वो क्या है? क्या करें देखना तो हम भी नहीं चाहते लेकिन इस बात को जंगल में मोर के नाच वाले जुमले में ढंक नहीं सकते क्योंकि अमेरिका में ट्रंप नाचा हमने देखा.

लेकिन क्षमा करें. मैं कुछ नहीं कहूंगा. मैं नहीं कहूंगा कि जब हमारी जांबाज सेना ने (आपकी दी गई खुली छूट के बाद) पराक्रम दिखाते दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया है. तब आपकी कूटनीति विदेश नीति फेल हुई है. मैं नहीं कहूंगा कि ‘ट्रंप माई फ्रेंड’ वाले फुलाए गए बड़े गु्ब्बारे की हवा निकल चुकी है. क्योंकि उसने न टैरिफ में आपको छोड़ा न जंग की टेंशन में. वो उस देश के साथ खड़ा रहा जिस पर आपने आतंकी होने के सच्चे आरोप लगाए थे. प्रमाण दिए थे.

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जिस देश को FATF की ग्रे लिस्ट में बार-बार रखा गया. फिर भी उसे करीब डेढ़ बिलियन डॉलर का कर्ज मिल गया. मैं नहीं कहूंगा कि आप और आपके कारकून चाहे जितना जोर लगा लें लेकिन आपकी छवि पर लगे दाग को फिलहाल तो मिटा नहीं सकते. मैं इसलिए नहीं कहूंगा क्योंकि फिर तर्क नहीं दांतों वाली टिप्पणियां आएंगी और वो काटना शुरु करेंगी. और आपके कारकूनों के दंत “विषैले” हैं.

सीनियर पत्रकार राकेश पाठक के फेसबुक वॉल से…

Last Updated on May 16, 2025 4:53 pm

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