Ranveer Allahbadia controversy: यह किसे पता था कि फिल्मों में बेवजह के भों…..के से शुरु हुआ सफर माता-पिता-संभोग-दर्शन पर खत्म होगा. ग़लती असल में उन नए लड़कों की नहीं है जिन्हें बात बात में गाली देना कूल लगता है. उन्हें कूल इसलिए लगता है कि हम लोगों को यह कूल लगता है. वेब सीरिज़ में, फिल्मों में, आपसी बातचीत में क्योंकि हमारे पास अपनी कुंठा, अपनी बेबसी, अपनी परेशानी को बता पाने के लिए ढंग के शब्द नहीं रहे.
अब शब्द क्यों नहीं रहे यह एक अलग बहस है कि दिन भर रील स्क्रोल करे तो आदमी को पढ़ने-जानने का समय कहां मिलेगा. ख़ैर रुकिए इस पूरे गाजियाबादी कचरेनुमा पहाड़ में एक और एंगल है. वह है रईसों का एंगल. थोड़ा सा इतिहास देखेंगे तो हम पाएंगे कि कुछ वर्ष पहले ऑल इंडिया बकचोद नाम की एक चीज़ आई थी जिसमें रोस्ट करने के नाम पर मां-बहन हुआ था. कहा गया कि यह अमेरिकी चीज़ है तो यहां भी होनी चाहिए. विवाद हुआ बंद हुआ. याद कीजिए कौन लोग थे वो?
आया ध्यान. वही तन्मय भट्ट जिन्होंने पिछले दस बारह सालों में पता नहीं क्या उखाड़ा है, घटिया बातें करने के अलावा कि उन्हें अमिताभ बच्चन (चाहे वो जो भी करें कम से कम उस आदमी ने गाली-गलौज को कभी प्रमोट नहीं किया) अपने केबीसी में बुलाते हैं. दूसरे चंपक के साथ जिसे हास्य के नाम पर गालियां ही आती हैं.
उस अश्लील रोस्टनुमा शो के सभी परफॉर्मर दिल्ली-बंबई के एलीट लोगों के बच्चे हैं जिनका यही टेस्ट है. वो ऐसे ही बात करते हैं क्योंकि उन्हें यही कूल लगता है. वे लोग फक-शिट से आगे निकल गए हैं और अमेरिका के ड्रग माफिया अंडरग्राउंड कल्चर के मदा….फकअअअ आदि को ही अवांगर्द मानते और समझते हैं. आप और हम स्नूप डॉग को नहीं भूले होंगे जो अब बुढ़ापे में नए पीआर के तहत कूल-डैड की तरह अमेरिका में प्रचारित हो रहे हैं. ओलंपिक मशाल जला रहे हैं आदि आदि.
लेकिन लौटते हैं. इस नए वाले लेटेंट शो में एक सरदार कॉमेडियन भी आते हैं जिनका हास्य दूसरे की मां के हाल-चाल से शुरु होता है और……..लेकिन इन कथित स्टैंड अप कॉमेडियन्स को वायरल कौन करता है और वायरल होने के बाद अच्छा मंच कौन देता है. आप सोच रहे होंगे कि मैं क्या बात कर रहा हूं….हमारी बॉलीवुड इंडस्ट्री और कौन.
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निर्भया कांड के दौरान आपको यो यो हनी सिंह पर हुआ बवाल याद होगा. हनी सिंह के वो सारे गाने यूट्यूब से हट गए और उसके बाद उन्हें बॉलीवुड में चार बोतल वोदका से लेकर क्या क्या नहीं गंवाया गया. वह स्थापित कलाकार हो गए.
स्थापित होने की यह सबसे आसान और त्वरित तरकीब है. हम कोई घटिया काम करेंगे. लोग हमें गाली देंगे लेकिन देखेंगे और फिर हम ……..स्थापित हो जाएंगे.
एक वायरल हुए थे मिडिल क्लास आदमी- ज़ाकिर खान. उनके हास्य में गालियां कम थीं जितना मैंने देखा है. नेटफ्लिक्स पर शो था. तीन एपिसोड के बाद बंद हो गया. कहा गया दर्शक नहीं मिल रहे हैं.
अब इतनी बात चल रही है तो गैंग्स ऑफ वासेपुर का नाम ले देना उचित होगा. मैं पिछले दिनों यह फिल्म फिर से देख रहा था और फिर से लगा कि इस फिल्म में भी गालियां जबरन घुसाई गई हैं कई जगहों पर. मैं झारखंड में रहा हूं. वहा भों…..का प्रचलन वैसा तो कतई नहीं है जैसा दिखाया गया था इस फिल्म में. इस फिल्म ने अपनी आने वाली पीढ़ियों पर भों…….को वह दर्ज़ा दिया जो जावेद अख़्तर की फिल्मों ने मां को दिया था. बिना भों…के कोई सीरिज़ बनती नहीं और बनती है तो…
बाद बाकी उस पॉडकास्टर के बारे में कुछ कहना ठीक नहीं. करीब तीन साल पहले मैं किसी प्रोफेसर से मिला भारत में तो उन्होंने बहुत चहक कर बताया कि फलां पॉडकास्टर ने उनकी किताब पर उनका इंटरव्यू किया है. मेरा मन किया कहूं कि आप तो ऐसे न थे और न ही बेवकूफों से बात करने की आपकी कभी तमन्ना दिखी लेकिन जैसा कि मैं अक्सर करता हूं, ऐसे मौकों पर चुप हो जाता हूं.
वह पॉडकास्टर पेड प्रमोटर है. यह बात अब लगभग सभी जानते हैं. लेकिन पैसा लेने के आरोप में तिहाड़ से लौटे पत्रकार जब पैसा देकर इंटरव्यू फिक्स करते हैं और उन्हें पत्रकारिता का एक अच्छा अवार्ड मिल जाता है तो फिर पॉडकास्टर पैसा लेकर इंटरव्यू कर रहा है तो क्या ग़लत है. उसे रोज़ी चलानी है.
यह भी सही है कि जो पब्लिक देखती है, चाहती है, वही दिखाया जा रहा है. भोजपुरी में अश्लीलता की आलोचना की ही जाती है लेकिन रील के ज़माने में जुगुप्सा रस के उत्पादन पर तब तक कुछ नहीं कहा गया, जब तक मां-बाप तक बात नहीं पहुंची. मां बाप से पहले उस कश्मीरी बालक के शो में बहन-भाई, लिंग से जुड़ी तमाम घटिया जोक बोले-सुने और हंसे गए हैं वह भी टिकट लेकर.
और हां ऑल इंडिया बक….के फैन तो पढ़े लिखे लोग भी रहे हैं.
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अभी देखते जाइए पढ़े लिखे लोग यह भी कहेंगे कि फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन है. ठीक है फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन होना ही चाहिए. लेकिन इस तरह के पेड शो की रील सोशल मीडिया पर अपलोड करने का क्या प्रयोजन है. ये रील्स दर्शक तो बना नहीं रहे. शो के लोग ही बना रहे हैं. जाहिर है उन्हें यह तरीका पता है कि वायरल होंगे तो नाम होगा.
मुझे याद है कल तक लोग कपिल शर्मा को भी अश्लील बताते थे कि वे द्विअर्थी संवाद बोल कर हंसाते हैं. आज वह बॉलीवुड का सफल सितारा है. कहते हैं कि फिल्म रिलीज़ करने वाले सितारे उनके शो में आने के लिए मरे रहते हैं. कई स्थापित कलाकारों ने शो में इसे सपना पूरा होना बताया है.
तो हमें वही मिल रहा है जो हमने बोया है. एन्जॉय कीजिए. हास्य का अमृत काल है. समस्या बीयर बाइसेप्स नहीं है. समस्या समय है. हम विकट समय में जी रहे हैं जहां हमें गाली-गलौज में निर्वाण मिल रहा है. कल को समय रैना बॉलीवुड में स्थापित कलाकार-प्रोड्यूसर हो जाए तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा.
Former Multi-Media Journalist at BBC News हिन्दी जे सुशील के फेसबुक पेज से..
स्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
Last Updated on February 12, 2025 8:52 am