Mahatma Gandhi की हत्या को देशभक्ति बताने वालों ने भगत सिंह की तरह अदालत में सच क्यों नहीं बताया?

स्वयं को वीर सिद्ध करने की कोशिश करने वाले गोपाल गोडसे ने अदालत में क्या किया? गोपाल गोडसे ने अदालत में इस षड्यंत्र में अपनी किसी भी तरह की भूमिका होने से इंकार कर दिया.

Remembering Mahatma Gandhi (PC- facebook@thenitinnotes)
Remembering Mahatma Gandhi (PC- facebook@thenitinnotes)

Remembering Mahatma Gandhi: इस तरह देखें तो गांधी की हत्या को देशभक्ति पूर्ण कृत्य ठहराने वाले इन हत्यारों को अंग्रेजों की सेना में भर्ती होने में कोई ऐतराज नहीं था. बल्कि वे प्रयास कर अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए थे. और सोशल मीडिया (Social Media) पर चलने वाला एक संदेश ठीक ही कहता है कि नाथूराम (Nathuram) और उसके साथी बंदूक चलाना जानते थे. लेकिन उन्होंने एक भी गोली अंग्रेजों के खिलाफ नहीं चलायी. अपनी ज़िंदगी में उन्होंने यदि गोली चलायी तो एक ऐसे 79 साल के निहत्थे बूढ़े पर चलायी, जो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के एक मोर्चे पर खड़ा रहा था.

इन हत्यारों के वैचारिक सहोदर, गांधी (Mahatma Gandhi) हत्या के कृत्य करने वालों को वीर साबित करने का भरसक प्रयास करते हैं. पर क्या गोली चलाने मात्र से कोई वीर सिद्ध हो जाता है? नाथूराम (Nathuram) के भाई गोपाल गोडसे ने जेल से छूटने के बाद गांधी की हत्या को जायज ठहराने के लिए “गांधी वध क्यूं” नामक किताब निकाली. यह पुस्तक गांधी की हत्या को जायज़ ठहराने और स्वयं के कृत्य को वीरतापूर्ण सिद्ध करने के लिए ही निकाली गई.

लेकिन किताब लिख कर स्वयं को वीर सिद्ध करने की कोशिश करने वाले गोपाल गोडसे ने अदालत में क्या किया? गोपाल गोडसे ने अदालत में इस षड्यंत्र में अपनी किसी भी तरह की भूमिका होने से इंकार कर दिया. यहां तक कि 18 जनवरी 1948 को दिल्ली जाने की बात से भी वह अदालत में मुकर गया.

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20 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या की कोशिश करने वाले मदन लाल पाहवा ने अदालत में कहा कि वह तो सिर्फ अपना आक्रोश प्रकट करना चाहता था. उसका मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था. जबकि यही पाहवा अपने परिचित बंबई के एक प्रोफेसर डॉ. जेसी जैन से देश के एक नेता की हत्या की योजना के बारे में उल्लेख कर चुका था. फिर अगली मुलाक़ात में उसने जैन को बताया कि वह नेता महात्मा गांधी हैं.

नाथूराम के साथ फांसी की सजा पाने वाला नारायण आप्टे तो इस बात से ही मुकर गया कि वह ग्वालियर में बंदूक खरीदने के बाद गोडसे के साथ दिल्ली वापस गया था.

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नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे ग्वालियर के डॉ. दत्तात्रेय परचुरे के पास हत्या में प्रयोग की जाने वाली पिस्तौल खरीदने गए थे. लेकिन अदालत में परचुरे इस बात से साफ मुकर गया. उसने अदालत में कहा कि गोडसे और आप्टे ने तो उससे दिल्ली में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के लिए स्वयंसेवक भेजने को कहा था.

CPI (ML) नेता Indresh Maikhuri के X हैंडल (@indreshmaikhuri) से.

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Last Updated on October 2, 2024 4:04 pm

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