True Nationalism or Forced Loyalty?: देश 1947 में आज़ाद हुआ तो देश के भीतर संघ जैसे संगठन भी थे जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया और लाखों ऐसे लोग थे जो अंग्रेज़ों की नौकरियों में थे, ऐसे पुलिसवाले जिन्होंने कुछ दिन पहले कांग्रेस के नेताओं को जेलों में डाला था, अधिकारी, कर्मचारी सब.
पंडित नेहरू या फिर सत्ता ने उन्हें ‘देशद्रोही’ कहकर मुख्यधारा से अलग करने की कोशिश नहीं की. उन पर आक्षेप नहीं लगाया. एक नया संविधान बना जिसकी प्रक्रिया में सबके प्रतिनिधियों को शामिल किया गया.
सबसे उम्मीद की गई कि सब राष्ट्र के निर्माण में योगदान दें. किसी की देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं. नतीजा यह कि बिना शिकवा-शिक़ायत सब नए भारत को शानदार बनाने में लगे.
हैदराबाद के बाग़ियों को उम्मीद थी कि उन पर हमला हुआ तो देश भर के मुसलमान उठ खड़े होंगे, लेकिन देश का मुसलमान हर जंग में देश के साथ रहा. उत्तर-पूरब-पश्चिम-दक्षिण का हर नागरिक देश के साथ रहा. नया नारा बना- अनेकता में एकता. यानी अनेकता का सम्मान और एक होने का निश्चय। यही भारत की पहचान बनी जिसे दुनिया ने तस्लीम किया.
आज़ादी के पचहत्तर साल बाद देश में देशद्रोही और देशभक्ति के सर्टिफिकेट बांटे जा रहे हैं. तुम हमारी बोली बोलो तो देशभक्त, हमारे खिलाफ़ हुए तो देशद्रोही. यानी हम ही देश. यानी एकता में अनेकता पैदा करने की कोशिश.
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एक छोटे से हिस्से को लगता है बस वही देशभक्त है, उसी की गालियों से भरी भाषा राष्ट्रभाषा है, उसी का भोजन राष्ट्रीय भोजन है, उसी का वस्त्र राष्ट्रीय वस्त्र है, धर्म की उसकी परिभाषा ही इकलौता धर्म है.
वह छोटा सा हिस्सा नहीं जानता कि अपनी इस हरक़त से वह देश को खोखला, बहुत खोखला कर रहा है. देश की एकता को छिन्न-भिन्न कर रहा है.
कोरस में सबको एक ही स्वर में गाना होता है, एक ही पिच पर। चीखता हुआ वह हिस्सा देश के कोरस का सुर बिगाड़ रहा है. देश मज़बूत होता है जब उसके नागरिकों में एका होता है, जब उसके नागरिक अपनी आज़ादी को सेलिब्रेट करते हुए खुद को देश का हिस्सा समझते हैं.
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जब नागरिकों को लगातार कमतर साबित किया जाता है, उन्हें फिरकों में बांटा जाता है तो देश सीरिया बन जाते हैं. हमने सबको सम्मान दिया तो हम एक रहे. हम सबका अपमान करेंगे तो हम एक कैसे रह पाएंगे?
लेखक और इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय के एक्स हैंडल (@Ashok_Kashmir) से.
Last Updated on May 4, 2025 8:19 pm