जिस दौर में ब्रूनो को चर्च ने ज़िंदा जलाकर मार डाला, गैलीलियो ने दिखाया यह साहस

चर्च ने गैलीलियो को कैद में डाल दिया था. बाद में उन्हें घर में ही नज़रबंदी की सज़ा सुनाई गई जहां किताब लिखते हुए उन्होंने 1642 में दम तोड़ दिया. पोप जॉन पॉल ने अपने कार्यकाल के दौरान गैलीलियो के साथ चर्च के बर्ताव को लेकर माफी मांगी थी.

Know about Galileo (PC- AI created Image)
Know about Galileo (PC- AI created Image)

Galileo Galilei achievements: ठीक है कि चारों तरफ सियासी शोर है लेकिन इस बीच एक ऐसे इंसान को भी याद करना चाहिए जिसने हमारी ज़िंदगी को सरल किया. जिसके सिद्धांतों ने हमें आज की ये विकसित दुनिया दी. थोड़ा सा वक्त दीजिए…

उन दिनों चारों तरफ हंगामा बरपा हुआ था. पहले से मानी जा रही हर बात पर सवाल उठ रहे थे. अब तो हद ही हो चुकी थी जब यूरोप का एक आदमी ज़ोर ज़ोर से कहने लगा कि धरती घूमती है. अभी तक तो माना जा रहा था कि धरती स्थिर है और चांद-तारे उसी के चक्कर लगाते हैं लेकिन इटली के पीसा शहर में हंगामा बरपा था.

एक प्रोफेसर धर्म और तत्कालीन विज्ञान दोनों को खुली चुनौती दे रहा था. लोग उसका मज़ाक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. कह रहे थे कि अगर धरती घूमती है तो फिर हमारे उछलने के साथ ही पांव तले से खिसक जानी चाहिए.

सौ साल पहले निकोलस कॉपरनिकस यही बात लिखकर मर चुके थे मगर ज़ोर से अपनी बात कहने का साहस तब कम ही लोगों में था. बाद में ब्रूनो ने कॉपरनिकस के सिद्धांतों पर काम किया और प्रचारित किया. उसे चर्च ने बदले में ज़िंदा जलाकर मार डाला.

बहरहाल, अपनी बात पर टिके प्रोफेसर ने पानी में तैरते जहाज के पाल से गेंद गिराकर गति का नियम साबित किया. साफ था कि हम जब कूदते हैं तो धरती की गति हमारे अंदर भी होती है इसलिए धरती के घूमने के साथ ही हम भी गतिमान होते हैं. उस प्रोफेसर ने घोषणा कर दी कि धरती की गति के साथ ही हम सब जुड़े हैं और बराबर गतिमान हैं.

आज तक दुनिया पीसा के उस प्रोफेसर के नियमों को मानकर प्रयोग कर रही है और नतीजे वही आ रहे हैं जिनका उसने एलान किया था. इतिहास के नायकों न्यूटन और आइंस्टीन ने कालांतर में इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर अपनी थ्योरीज़ दीं.

ये प्रोफेसर थे गैलीलियो गैलिली. उनका शहर इटली का पीसा था. वही पीसा जहां एक झुकी हुई मीनार तो खड़ी थी पर वो दुनिया के अचरज में तब शामिल नहीं थी. उसे बाद के दिनों में इतिहास का आश्चर्य बनना था.

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17 साल के गैलीलियो की विज्ञान से दोस्ती एक चर्च में हई थी. एक दिन उनकी नज़र चर्च में लटके झूमर पर पड़ी थी. वो झूमर कभी इधर आता तो कभी उधर जाता. अचानक तेज़ हवा में झूमर ने और ज़ोर ज़ोर से इधर-उधर तक जाना शुरू कर दिया. गैलीलियो ने अपने हाथ की नब्ज़ पकड़ ली और गिनती करने लगे .

तब घड़ियां नहीं थीं. वो ये जानकर हैरान रह गए कि कम दूरी तक हिलता झूमर और ज़्यादा दूर तक हिलता झूमर एक जितने ही वक्त में दोलन कर रहे थे. एक किनारे से दूसरे किनारे तक झूमर बराबर वक्त में झूल रहा था. सवाल से भरे गैलीलियो घर तो लौटे लेकिन अब उनके प्रयोग शुरू हो चुके थे.

वो रस्सी से लोहे के गोले को बांधकर हिलाते और और दोलन का वक्त गिनते. चाहे तेज़ हिलाओ या धीमे वक्त बराबर था. फिर यही प्रयोग लेड और कॉर्क के गोले बांधकर किया गया. नतीजा वही रहा. इसके बाद गैलीलियो ने रस्सी की लंबाई बढ़ा दी. इस बार गोले को इधर से उधर जाने में वक्त ज़्यादा लगा.

गैलीलियो ने पकड़ लिया कि जैसे पेंडुलम के गोले का भार उसके दोलन के वक्त और गति दोनों को प्रभावित नहीं करता वैसे ही किसी चीज़ के गिरने के समय में वज़न का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. बाद के दिनों में पेंडुलम घड़ी इसी आधार पर बनी और कई सौ साल तक वक्त बताने का सबसे सटीक यंत्र बनी.

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बहरहाल गैलीलियो ने अपने प्रोफेसर को जाकर इस खोज के बारे में बताया. प्रोफेसर भड़क गए. उन्होंने ग्रीक के चिंतक अरस्तू महान के सिद्धांत को पकड़ा हुआ था जिन्होंने कहा था कि भार से ही चीज़ें तय होती हैं. साफ था कि भारी चीज़ें नीचे की तरफ तेज़ी से गिरती हैं. दो हज़ार सालों तक दुनिया यही मानती रही थी. किसी धर्म ने भी इसे चुनौती नहीं दी थी, लेकिन अदना सा गैलीलियो अड़ा हुआ था. वो सालों तक उधेड़बुन में रहा.

फिर पीसा विश्वविद्यालय में गैलीलियो गणित के अध्यापक बन गए. वो अब तक प्रयोगों में उलझे थे. उनका दिल पुरानी मान्यताओं के खिलाफ खड़ा था. आखिर वो इस तथ्य पर पहुंचे कि ज़मीन पर गिरनेवाली चीज़ों की गति में फर्क हवा के घर्षण से तय हो रहा है. यानि अगर हम हवा को खत्म कर दें और तब एक पंख के साथ पत्थर को नीचे गिराएं तो दोनों बराबर तेज़ी से नीचे गिरते हैं.

गैलीलियो ने दूरबीन भी बनाई, चार चंद्रमा खोजे, हमारे चंद्रमा की उबड़ खाबड़ ज़मीन के बारे में कहा, बृहस्पति ग्रह का लंबे वक्त तक अध्ययन किया, शनि ग्रह के छल्लों पर शोध किया. साल 1632 में उन्होंने अपनी किताब लिख डाली और कॉपरनिकस के सिद्धांतों को माना.

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चर्च अब भी ताकतवर था. उन्हें कैद में डाल दिया गया. बाद में उन्हें घर में ही नज़रबंदी की सज़ा सुनाई गई जहां किताब लिखते हुए उन्होंने 1642 में दम तोड़ दिया. पोप जॉन पॉल ने अपने कार्यकाल के दौरान गैलीलियो के साथ चर्च के बर्ताव को लेकर माफी मांगी थी.

आज ही के दिन यानि 15 फरवरी 1564 में गैलीलियो का जन्म हुआ था. शहर पीसा था. उस साल विलियम शेक्सपीयर भी आए लेकिन मशहूर कलाकार माइकल एंजेलो और सुधारक जॉन कैल्विन ने विदा ली. राजनीति से ज़्यादा हमें विज्ञान और कला का कृतज्ञ होना चाहिए जिसने दुनिया को ज़्यादा खूबसूरत बनाया लेकिन राजनीति से शासित होने को विवश हैं.

(पहली तस्वीर में गैलीलियो, दूसरी तस्वीर में 1793 में प्रकाशित गैलीलियो की दुर्लभ जीवनी, तीसरी तस्वीर में पीसा विवि और पीछे झुकी हुई ऐतिहासिक मीनार)

#इतिइतिहास

एक निजी रेडियो चैनल से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉल से. 

Last Updated on February 16, 2025 12:01 pm

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