Ganesh Shankar Vidyarthi: भगत सिंह, बिस्मिल और गांधी से जुड़ी इमारत का हश्र देखें…

यहां शहीद भगत सिंह तक ने आकर लेख लिखे और आज़ाद के वो साथी रहे. शहीद रामप्रसाद ‘ बिस्मिल ‘ की हस्तलिखित आत्मकथा भी विद्यार्थी जी ने यहीं प्रकाशित की. यहीं गांधी लखनऊ अधिवेशन के समय विद्यार्थी जी और माखनलाल चतुर्वेदी जी के आग्रह के बाद आए और फर्श पर चादर बिछाकर सोये.

ganesh-shankar-vidyarthi hindi weekly newspaper pratap starts here
ganesh-shankar-vidyarthi hindi weekly newspaper pratap starts here

Ganesh Shankar Vidyarthi: इस फोटो में दिख रही इमारत में एक अखबार चलता था. उस पत्रकार का अखबार जिसने अपने शहर में फैले दंगे के बीच लोगों को बचाते हुए जान गंवा दी. वो कांग्रेस का सिपाही भी था और सशस्त्र क्रांति करनेवालों का शरणदाता भी. कानपुर वालों को घमंड होना चाहिए कि उसने काम करने के लिए उनका शहर चुना जबकि वो मूलतः मध्य प्रदेश से था. उसने चुना एक उपनाम जो किसी भी पत्रकार के लिए इकलौता होना चाहिए- विद्यार्थी!!

जिन्हें नारद में आद्य पत्रकार दिखता है, कायदे से उन्हें गणेश शंकर नाम के उस पत्रकार का प्रचार करना चाहिए था. कई अखबारों में नौकरी करके उन्होंने अपना अखबार चलाया- प्रताप!! किसान, मज़दूर और देश की हर उपेक्षित आवाज़ को सुनानेवाला प्रताप. पांच बार जेल काटकर, कितनी बार जुर्माने भर कर, मुकदमे झेलने के बावजूद विद्यार्थी जी बराबर ताप के साथ जुटे रहे.

उनके यहां शहीद भगत सिंह तक ने आकर लेख लिखे और आज़ाद के वो साथी रहे. शहीद रामप्रसाद ‘ बिस्मिल ‘ की हस्तलिखित आत्मकथा भी विद्यार्थी जी ने यहीं प्रकाशित की. यहीं गांधी लखनऊ अधिवेशन के समय विद्यार्थी जी और माखनलाल चतुर्वेदी जी के आग्रह के बाद आए और फर्श पर चादर बिछाकर सोये.

ये भी पढ़ें- भारत में गांधी को नकारने का बवंडर, फिर दुनिया में क्यों हो रहे लोकप्रिय?

पैंतीस की उम्र में विद्यार्थी जी चुनाव लड़ कर विधायक बने. 1929 में यूपी की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी. वो शायद इकलौते होंगे जिन पर जितना भरोसा अहिंसक तौर तरीकों से आज़ादी के पक्षकार करते थे उतना ही हथियारंबद देश के दीवाने भी.

आज विद्यार्थी जी के नाम पर पत्रकारिता का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों मिलता है मगर जिस इमारत में बैठ उन्होंने वो ऐतिहासिक प्रेस चलाई उसकी हालत आप फोटो में देख लें. नौ नवंबर 1913 को इस प्रेस का शुरूआत हुई थी. फोटो हमारे मित्र Kranti Kumar Katiyar की है जिनके पिता डॉ गया प्रसाद कटियार भगत सिंह- आज़ाद के साथी थे.

ये भी पढ़ें- AstraZeneca ने कोरोना काल में आपदा को अवसर बनाते हुए बिना अनुभव बनाई वैक्सीन!

अंग्रेज़ी सरकार से पहचान छिपी रहे इसके लिए भगत ने अपने बाल कटवा लिए थे, वो डॉ कटियार ने ही काटे थे. उनकी अपनी कहानी बहुत ग़ज़ब की है जिसमें सांडर्स की हत्या, लाहौर षड्यंत्र केस, कालापानी है, मगर फिलहाल तो इस इमारत को देखकर मन खिन्न है. नए नए मॉल शौक से बनाओ लेकिन आज़ाद भारत की इन नींवों को भी थोड़ा सहेज लो. टैक्स कोई कम तो नहीं देते हम.

एक निजी रेडियो चैनल से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉल से. 

डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए Newsmuni.in किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है.

Last Updated on November 15, 2024 1:14 pm

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *