Mobile vs TV Media: भारतीय मीडिया में एक बड़ा बदलाव हो रहा है. सरकार के प्रति समर्थन में खड़े होने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जिससे पत्रकारिता की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए हैं. इसके विपरीत, सोशल मीडिया ने लोगों को अपनी आवाज उठाने और समाचार प्राप्त करने का एक नया तरीका प्रदान किया है.
मुख्यधारा के मीडिया में गिरावट के कई कारण हैं-
सरकार के दबाव में आकर सरकार के समर्थन में खड़े होना. कई मीडिया घराने सरकार के दबाव में आकर अपनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता खो रहे हैं. इससे पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर असर पड़ता है और जनता को सही जानकारी नहीं मिल पाती है.
पत्रकारिता की स्वतंत्रता की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारण है.
“ग्राउंड रिपोर्टिंग का अभाव”
ग्राउंड रिपोर्टिंग की कमी के कारण मुख्यधारा के मीडिया में वास्तविकता की कमी हो गई है. ग्राउंड रिपोर्टिंग से तात्पर्य है कि पत्रकार सीधे घटनास्थल पर जाकर खबरें इकट्ठा करते हैं और वास्तविक स्थिति का वर्णन करते हैं. लेकिन वर्तमान में, मुख्यधारा के मीडिया में “ग्राउंड रिपोर्टिंग का अभाव” के कारण खबरें अक्सर कार्यालयों में बैठकर लिखी जा रही हैं, जिससे खबरों की विश्वसनीयता और गुणवत्ता पर असर पड़ता है.
सोशल मीडिया ने इन कमियों को दूर करने का एक नया विकल्प प्रदान किया है.
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YOUTUBE और FACEBOOK जैसे प्लेटफॉर्म ने लोगों को अपनी बातें कहने और जनता तक पहुंचाने के लिए एक नया मंच प्रदान किया है. सोशल मीडिया की विशेषताएं जैसे कि स्वतंत्रता, विविधता और तत्कालता इसे मुख्यधारा के मीडिया से अलग बनाती हैं.
“गोदी मीडिया” शब्द का इस्तेमाल भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल”
“गोदी मीडिया” शब्द का इस्तेमाल उन मीडिया संस्थानों के लिए किया जाता है, जिन पर सरकार या सत्ताधारी दल का समर्थन करने और उनकी आलोचना से बचने का आरोप लगाया जाता है. यह शब्द मीडिया की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर सवाल उठाता है. यह शब्द पहली बार NDTV के पत्रकार रवीश कुमार द्वारा इस्तेमाल किया गया था.
उनका कहना था कि कुछ भारतीय मीडिया संस्थान सरकार की गोद में बैठकर पत्रकारिता कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने इस शब्द का इस्तेमाल किया.
भारत में, कुछ मीडिया घरानों पर सरकार के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चुप रहने के आरोप लगे हैं. इससे उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग गया है. कई लोग मानते हैं कि मीडिया को सरकार के प्रति आलोचनात्मक रवैया अपनाना चाहिए और जनता के मुद्दों को प्रमुखता से उठाना चाहिए.
रवीश कुमार अब NDTV के पत्रकार नहीं हैं. NDTV को एक बड़े कॉरपोरेट हाउस ने खरीद लिया है. अब रवीश कुमार YouTube पर आकर अपने चैनल के माध्यम से अपनी बातें कह रहे हैं.
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हालांकि, सोशल मीडिया की भी अपनी कुछ कमज़ोरियां हैं. गलत सूचना बहुत तेज़ी से फैलती है, जिससे किसी की छवि खराब हो सकती है और समाज में गलत धारणाएं बन सकती हैं. इसलिए, सोशल मीडिया पर जो कुछ भी दिखाई दे, उस पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए.
यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बदलाव कैसे जारी रहता है? और भारतीय मीडिया का भविष्य कैसा होगा? क्या सोशल मीडिया मुख्यधारा के मीडिया की जगह लेगा, या दोनों एक दूसरे के पूरक बनेंगे? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसका उत्तर भविष्य में ही पता चलेगा.
वरिष्ठ पत्रकार राजेश यादव की कलम से.…
Last Updated on May 4, 2025 9:42 am