Gambia Cough Syrup Deaths: भारतीय अथॉरिटी अफ्रीकी देश के 72 बच्चों की मौत को रोक सकता था?

Gambia Cough Syrup Deaths
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Gambia Cough Syrup Deaths: अफ्रीकी देश गाम्बिया में भारतीय कंपनी मेडेन फार्मा के बने कफ सीरप पीने से 72 बच्चों की मौत का आरोप है. गाम्बिया की फार्मा कंपनी एटलांटा मेडेन से दवा आयात करती है. मेडेन की दवाओं को गाम्बिया की ड्रग अथॉरिटी से क्लियरेंस मिला था. इस त्रासदी के बाद वहां के राष्ट्रपति ने एक स्पेशल टास्क फ़ोर्स बनाई. इसमें सामने आया कि एटलांटा फार्मा की ड्रग अथॉरिटी के साथ सांठ-गांठ थी.

फिलहाल गाम्बिया में यह मामला कोर्ट में हैं. वहां 19 पीड़ित अभिभावकों ने 200 मिलियन डालासी (गम्बियन करेंसी) के हर्जाने की मांग की है. ना तो एटलांटा और ना मेडेन की तरफ से अब तक कोई वहां की कोर्ट में उपस्थित हुआ है. इनमें से कुछ माता-पिता से मेरी बात हुई. उनका कहना है कि इंडियन गवर्नमेंट मेडेन फार्मा को बचाने में लगी हुई है. हम भले ही एक छोटे से देश के नागरिक हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे बच्चों की जान की कोई कीमत नहीं है.

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गाम्बिया और WHO दोनों के सैंपल टेस्ट में मेडेन फार्मा के बनाए सिरप में डाई -इथाइलीन ग्लाइकोल (DEG) और इथाइलीन ग्लाइकोल (EG)की मात्रा पाई गई थी. लेकिन भारत में जब मेडेन फार्मा के कफ सिरप की जांच हुई तो उसमें यह जानलेवा कैमिकल नहीं मिले. हेल्थ मिनिस्टर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. भारत के ‘फार्मेसी ऑफ़ वर्ल्ड’ बनने के सपनों के खिलाफ इसे साजिश करार दिया.

इस मामले में नया मोड़ तब आया जब हरियाणा के एक गुमनाम वकील ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को मेल करके कहा कि जांच से ठीक पहले हरियाणा के ड्रग कंट्रोलर मनमोहन तनेजा ने पांच करोड़ की रिश्वत लेकर सैंपल बदलवा दिए. जैसे ही रायटर्स की यह खबर छपी, भारतीय अथॉरिटी सफाई देने लगी. कहा गया कि जांच करवाई जाएगी.

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हरियाणा के FDA कमिश्नर अशोक कुमार मीणा की अध्यक्षता में जांच शुरू हुई. बाद में बताया गया कि वकील साहब मुख-ज़ुबानी दावे के अलावा कुछ भी ठोस पेश नहीं कर पाए. जांच ठंडे बस्ते में चली गई.

लेकिन गाम्बिया, कैमरून और उज्बेकिस्तान के मामलों के बाद सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) थोड़ा सतर्क हुआ. उसने निर्यात होने वाले कफ सीरप के बैच की जांच करना अनिवार्य कर दिया. मई 2023 से अक्तूबर 2023 के बीच 54 सैंपल टेस्ट पास नहीं हो पाए. इसमें तमाम बड़ी फार्मा कंपनियों के सैंपल भी शामिल हैं. यह जानकारी स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पत्रकारों को दिसम्बर में दी गई. लेकिन इसमें एक बात को जान-बूझकर छिपाया गया. सैंपल किस वजह से रिजेक्ट हुए.

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हाल ही में NIKKEI Asia की रिपोर्ट आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकन जेनरिक मार्केट का 40 फीसदी शेयर भारत के पास है. लेकिन ख़राब क्वालिटी की दवाओं के चक्कर में अब अमेरिका ने चीनी फार्मा कंपनियों की तरफ रुख किया है. 2021 में अमेरिका में चीनी दवाओं के आयत में 534 फीसदी का उछाल हुआ है. ये तो हुई बात फार्मेसी ऑफ़ वर्ल्ड बनने के दावों की. अब चलते हैं घरेलू बाज़ार की तरफ़.

2020 में जम्मू के रामनगर में 12 बच्चों की मौत डिजिटल विजन नाम की फार्मा कंपनी के सिरप कोल्ड-बेस्ट सिरप की वजह से हो गई. यह मौतें भी इस लिए पकड़ में आई क्योंकि इन बच्चों का इलाज PGI चंडीगढ़ में हो रहा था. एक पीड़ित अभिभावक ने मुझसे कहा कि मेरा बच्चा आईसीयू में था. मेरे सामने उसको ब्रेन हेमरेज हुआ. उनके नाक-कान-मुंह से खून निकलने लगा. वो मेरे सामने मर गया. वो सीन मेरे दिमाग से निकलता तक नहीं. इन 12 पेरेंट्स को मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर महज 3 लाख का मुआवजा मिला. इसे भी चैलेंज करने के लिए सरकार कोर्ट में चली गई.

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एक्सपर्ट्स का कहना है कि DEG से हो रही बच्चों की मौत की जो ग्लोबल वेब शुरू हुई है, रामनगर उसका प्रस्थान बिंदु था. अगर उस समय इस पर ठीक से कार्रवाई हो जाती तो शायद ये हालात पैदा ही नहीं होते.

लेकिन ड्रग अथॉरिटी ने क्या किया? 12 बच्चों की मौत के आरोप लगने के बावजूद डिजिटल विजन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. एक साल बाद 2021 में राधिका नाम की एक बच्ची का दाखिला PGI चंडीगढ़ में हुआ. उसने भी डिजिटल विजन का कफ सीरप पीया था. PGI चंडीगढ़ ने जब अपने लैब में इसकी जांच की तो पाया कि सेम फार्मेसी के अलग बैच में भी DEG पाया गया.

आरोप के मुताबिक राधिका को उस फार्मा कंपनी के जहरीले सीरप की वजह से जान गंवानी पड़ी, जिसे पीकर एक साल पहले ही 12 बच्चों की जान गई थी. फिलहाल यह मामला जम्मू की कोर्ट में विचाराधीन है. चार्जशीट लगाकर मुकदमें की कार्रवाई शुरू होने में तीन साल का वक्त लग गया है. अब तक एक भी पेशी नहीं हुई है. ऐसे में न्याय की उम्मीद करना बेईमानी होगी.

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इस मामले में एक और चीज समझना ज़रुरी है. किसी भी कफ सीरप को बाजार में जाने से पहले दो स्तर पर जांच से गुजरना पड़ता है. पहला स्तर रॉ मैटिरियल पर होता है. जिसे फार्मा कंपनी खुद करती है. दूसरा स्तर फाइनल प्रोडक्ट पर होता है, जिसे ड्रग अथॉरिटी अंजाम देती है. उसके बाद ही सीरप मार्केट में आता है.

सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) हर महीने अलर्ट जारी करती है. ये ऐसी दवाएं होती है जिन्हें मार्केट से सैंपल के तौर पर कलेक्ट किया जाता है. 2020 से फरवरी 2024 के बीच कुल 13 ऐसे सैंपल मिले हैं जिनमें DEG और EG पाया गया. इसमें एक ख़ास बात गौर करने लायक है.

जनवरी 2020 में डिजिटल विजन केस के बाद अगला सैंपल अगस्त 2023 में गाम्बिया में मामला उठने के बाद पकड़ा गया. मतलब इस बीच DEG और EG को लेकर कितनी गंभीरता से काम हुआ यह समझा जा सकता है.

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दूसरा सबसे बड़ा पेंच यह है कि अगर किसी फार्मा की कोई दावा जहरीली पाई जाती है तो उसके पास नियमों के मुताबिक दो विकल्प हैं. पहला कि वो अपनी दवा को बाजार से खुद रिकॉल कर ले. दूसरा विकल्प वो जांच रिपोर्ट को चैलेंज कर दे. ऐसी स्थिति में सैंपल सेंट्रल ड्रग टेस्टिंग लैब कोलकाता जाता है. वहां से रिपोर्ट आने पर ही ड्रग अथॉरिटी को यह अख्तियार है कि वो दवा को बाजार से जब्त करवा सके.

इस बीच जो दवा बिक चुकी हैं, वो किस मरीज ने खरीदी है, उन पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसको ट्रेक करने का कोई मैकेनिज्म नहीं है. कुल जमा बात यह है कि आपकी जान दांव पर है. लेकिन इसकी परवाह ना तो सरकार को है ना ड्रग अथॉरिटी को. ना ये चुनाव का मुद्दा है. ना कोई सवाल पूछा जा रहा है. ना ही किसी की जिम्मेदारी तय हो रही है.

इस पूरी स्टोरी पर जब मैंने ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया राजीव रघुवंशी से बात करने की कोशिश की तो मुझे कसैले अनुभव से गुजरना पड़ा. CDCSO के PRO मिलिंद पाटिल मुझे डेढ़ सप्ताह तक घुमाते रहे. जबकि मेरे सामने बहुत टाईट डेडलाइन थी. इसके बाद उन्होंने मुझे ‘जन-सुनवाई’ के दौरान राजीव रघुवंशी से मिलवाने का वायदा किया.

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आखिर मुझसे मुलाकाती का फार्म भरवाया गया. मैं लगातार पांच दिनों से CDCSO का घंटों इंतज़ार करता रहा. आखिर में जब ‘जन-सुनवाई’ के दौरान मुलकात हुई तो यह सिर्फ 30 सैकिंड चल पाई. रघुवंशी साहब ने मुझे सीधा जवाब दिया कि वो मेरे किसी सवाल का जवाब नहीं देंगे. मुझे जो जानकारी चाहिए वो हेल्थ मिनिस्ट्री की प्रवक्ता मनीषा भल्ला देंगी. मैंने मनीषा भल्ला को कॉल किया. मेल किया. आरटीआई लगाईं. लेकिन नतीजा सिफर.

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सरकारी संस्थानों से सूचना निकलवाने के बारे में सोचना तक गुनाह मालूम होता है. आप चाहे कितना भी सिर पटक लें एक छोटी सी इंफॉर्मेशन आपको हासिल नहीं होगी. इसलिए जो भी पत्रकार थोड़ा-बहुत भी इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म करने की कोशिश कर रहे हैं. उनको हौसला दीजिए.समाज के तौर पर यह आपकी जिम्मेदारी है कि कायदे का जर्नलिज्म होता रहे.

Journalist/Reporter/writer विनय सुल्तान के एक्स हैंडल (@vinay_sultan) से.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए Newsmuni.in किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

Last Updated on May 20, 2024 12:00 pm

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