Iran-Israel Conflict: इजरायल-ईरान के बीच आगे बढ़ी लड़ाई तो फिर क्या होगा?

इजरायल-ईरान विवाद- (Sameer Abbasi@Sameera38707951)
इजरायल-ईरान विवाद- (Sameer Abbasi@Sameera38707951)

Iran-Israel Conflict: इज़रायली हमलों के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक़ ईरान की अभूतपूर्व जवाबी कार्रवाई के बाद अमेरिकी रक्षा सचिव ने कहा है कि अमेरिका ईरान से लड़ाई नहीं चाहता, पर वह अपनी और इज़रायल की रक्षा करेगा. बहरहाल, रविवार की घटना के संबंध में कुछ बातें ध्यान में रखी जानी चाहिए.

आज जो हुआ है, वह किसी भी स्तर पर अभूतपूर्व है. एक साथ प्रतिरोध की सभी ताक़तों द्वारा हमले ने इज़रायल की कथित रक्षा शक्ति की कमज़ोरी को सामने रख दिया है. यह घटना ईरान की वायु शक्ति को भी दिखाती है और उसकी प्रतिबद्धता को भी.

अमेरिका और इज़रायल ने दशकों से ईरान को प्रताड़ित किया है. हमले हुए, बड़े अधिकारी मारे गये, आर्थिक पाबंदियां हैं. अस्सी के दशक में ईरान ने आठ साल तक अमेरिका-इज़रायल समर्थित सद्दाम हुसैन के हमलों का सामना किया था.

ये भी पढ़ें- Water Sharing Conflict: क्या इज़रायल, फ़िलिस्तीनियों के हिस्से का पानी भी चुरा रहा है?

यदि लड़ाई आगे बढ़ी, तो क्या होगा? इराक़ पर हमले से पहले अमेरिका को छह महीने तक तैयारी करनी पड़ी थी. तब अरब देशों ने उसे पूरा सहयोग दिया था. तभी वह बड़ी सेना इराक़ की सीमा पर जमा कर पाया था. ईरान के साथ वह ऐसा नहीं कर सकता.

ईरान के पूरब में पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान हैं. क्या ये देश अमेरिकी सेना के लिए ज़मीन देंगे? दक्षिण में फ़ारस की खाड़ी में ईरान सबसे बड़ी ताक़त ही नहीं, एकमात्र ताक़त है. पश्चिम में स्थित इराक़ और तुर्की क्या अमेरिकियों को जगह देंगे कि वे ईरान पर हमला करें. अज़रबैजान और आर्मेनिया का रास्ता लंबा भी है और उलझा हुआ भी.

क्या अरब देश अपने देशों में स्थित अमेरिकी ठिकानों को ईरान पर हमले के लिए इस्तेमाल होने देंगे? शायद नहीं. अभी ही उन्होंने इसके लिए मना किया है. अगर उन्होंने अमेरिकी दबाव में उन ठिकानों को अनुमति दी, तो वे भी ईरानी हमलों का निशाना होंगे. इसके अलावा अरब देशों के शासन को अपनी जनता के कड़े विरोध का सामना करना होगा.

ये भी पढ़ें- जब देश आज़ाद हुआ था, तो पहले प्रधानमंत्री नेताजी सुभाषचन्द्र बोस कहां थे?

नौसैनिक ताक़त में भी ईरान अमेरिका को कड़ा मुक़ाबला दे सकता है. तो मामला वायु शक्ति का हो जाता है. ईरान के पास ड्रोन और मिसाइलों का बड़ा भंडार है. उनकी क्षमता को दुनिया देख चुकी है. अमेरिकी जहाज़ों को लंबी दूरी तय कर ईरान पर हमला करना होगा.

किसी भी स्थिति में यह तय है कि बड़ी संख्या में ताबूत अमेरिका लौटेंगे. और, इस बात को अमेरिकी बखूबी जानते हैं और वे यह भी जानते हैं कि जब पहले ऐसा हुआ था, तो उसका नतीजा क्या हुआ था.

ऐसी किसी भी लड़ाई में इज़रायल की कोई ख़ास भूमिका नहीं होगी. उसे लेबनान, यमन, सीरिया, इराक़, फ़िलिस्तीन के लड़ाके संभालेंगे. जो जेनरल सुलेमानी के नाम पर लड़ेंगे.

ये भी पढ़ें- विपक्ष लोकसभा चुनाव को लेकर सीरियस नहीं, क्यों उठने लगे हैं सवाल?

उस लड़ाई में ईरान अमेरिका के भीतर कुछ घटनाएं करा सकता है और साइबर मोर्चा भी खुलेगा. अमेरिका और पश्चिमी सरकारों को अपनी जनता के बड़े हिस्से के विरोध का भी सामना करना होगा, जो न केवल अंतहीन युद्दों से परेशान है, बल्कि पश्चिमी एशिया की लड़ाई उनके लिए महंगाई का चक्रवात भी लेकर आएगी.

पत्रकार और समीक्षक Prakash K Ray के X अकाउंट (@pkray11) से… 

डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए Newsmuni.in किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है.

Last Updated on April 15, 2024 6:22 am

Related Posts