India-Pakistan Tension: 7 मई की सुबह भारत और पाकिस्तान के लिए भारी थी. रात को भारत ने पाकिस्तान के अंदर सैन्य कार्रवाई की थी और सुबह होते-होते यह ख़बर टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक आग की तरह फैल चुकी थी. पाकिस्तान ने भी पलटवार किया. चार दिन तक दोनों तरफ़ से बम और बयान चलते रहे.
लेकिन इस तनातनी में असली सवाल यह था कि कौन किसके साथ खड़ा था?
चीन-पाकिस्तान “ब्रोमांस”
चीन ने बिना कोई अगर-मगर लगाए कहा, “हम पाकिस्तान की संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं.” तुर्की भी पाकिस्तान के साथ लाइन में खड़ा दिखा. वही तुर्की जो NATO का सदस्य है, यानी अमेरिका का सुरक्षा साझेदार.
दूसरी तरफ़, भारत के लिए कोई बड़ा देश ऐसा खुला समर्थन नहीं दे पाया. इसराइल ने जरूर कहा कि भारत को आत्मरक्षा का अधिकार है. लेकिन चीन और इसराइल की औक़ात बराबर नहीं. चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. भारत की विदेश नीति और कूटनीति पर सवाल उठना लाज़मी था.
अमेरिका का निर्देश और ट्रंप की चुप्पी
जब अमेरिका ने युद्धविराम की घोषणा की, तो भारत को भी उसी से जानकारी मिली. यानी भारत सरकार ने खुद नहीं बताया कि हम थमे हैं. ट्रंप ने इस पूरी झड़प पर पोस्ट किया लेकिन ‘आतंकवाद’ शब्द तक नहीं लिखा. भारत-पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौल दिया गया.
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भारत हर मंच पर कहता है कि वह पाकिस्तान से बराबरी नहीं चाहता. लेकिन यहां सारा का सारा अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रोटोकॉल ‘एक बराबर’ चला. अमेरिका, ईरान, सऊदी—सबने दोनों देशों से बातचीत की. कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत ‘डी-हाइफनेट’ करने की जो कोशिश करता है, वो नाकाम होती जा रही है?
क्या मोदी की विदेश नीति नाकाम रही?
पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल के शो में ‘द हिंदू’ की डिप्लोमैटिक एडिटर सुहासिनी हैदर ने कहा, “दुनिया के ज्यादातर नेताओं की चिंता तनाव कम करना थी, आतंकवाद नहीं. जबकि भारत यही चाहता था कि आतंकवाद पर दुनिया बोले. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.”
पाकिस्तान ने फिर कोशिश की कि कश्मीर मुद्दा इंटरनेशनल लेवल पर पहुंचे. और इस बार उसकी ये कोशिश काफी हद तक सफल दिखी.
गुटनिरपेक्षता से सबके साथ चलने तक
नेहरू की विदेश नीति कहती थी, ‘हम किसी गुट में नहीं.’ मोदी की नीति है, ‘हम सबके साथ.’ इसे मल्टी-अलाइनमेंट कहते हैं, जिसका कॉपीराइट सबसे पहले 2012 में शशि थरूर ने लिया था.
अब भारत QUAD में भी है और SCO में भी. QUAD में अमेरिका-जापान हैं, जो चीन को घेरना चाहते हैं. SCO में चीन-रूस हैं, जो QUAD से चिढ़े हुए हैं. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने तो साफ कहा कि भारत QUAD में एक मोहरा बन गया है.
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SCO और QUAD, दोनों में लेकिन अकेले
जब पाकिस्तान के पक्ष में चीन खुलकर खड़ा हो गया, तो SCO का भारत वाला सदस्य अकेला दिखा. QUAD में भी अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया—किसी ने भारत के पक्ष में एक लाइन नहीं बोली.
रूसी विश्लेषक अलेक्जेंडर दुगिन ने कहा, “QUAD ने भारत की मदद नहीं की. अमेरिका ने सिर्फ संघर्ष रोकने को कहा. क्या सहयोगी ऐसा होता है?” इस पर ‘द हिंदू’ के स्टैनली जॉनी ने जवाब दिया, “भारत किसी का पिछलग्गू नहीं. भारत की नीति स्वायत्तता की है.”
गोल-गोल घूमती विदेश नीति
भारत-चीन प्रतिस्पर्धी हैं, भारत-रूस रणनीतिक साझेदार. रूस-चीन दोस्त हैं और चीन-पाकिस्तान भाई-भाई. पाकिस्तान-तुर्की साथ हैं, तुर्की नेटो का मेंबर है. नेटो का नेतृत्व अमेरिका करता है, और अमेरिका भारत के साथ भी है. ऐसे में अगर दुनिया गोल-गोल घूमती दिख रही है, तो हैरानी किस बात की?
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क्या QUAD की साख डगमगाई?
थिंक टैंक AEI (अमेरिकन एन्टरप्राइज इंस्टिट्यूट के फेलो) के सदानंद धूमे ने लिखा, “इस टकराव में QUAD के सदस्य देशों ने भारत का खुला समर्थन नहीं किया. अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया ने भारतीयों के बीच एक भरोसेमंद साझेदार बनने का मौका खो दिया.”
ये वही क्वॉड है जिसमें जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, तो बाकी तीन देश रूस के खिलाफ थे. भारत अकेला था जिसने रूस का साथ छोड़ा नहीं.
नया वर्ल्ड ऑर्डर, नई चुनौतियां
अब रूस, चीन, अमेरिका, EU सब वर्ल्ड ऑर्डर अपनी तरफ़ मोड़ना चाहते हैं. भारत जैसी उभरती शक्ति को इस नए व्यवस्था में अपनी जगह बनानी है.
जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. मोहम्मद मुदस्सिर क़मर कहते हैं, “भारत कोई पिछलग्गू नहीं. हम मल्टी-अलाइनमेंट की नीति पर हैं, यानी जहाँ हित हों, वहाँ साथ हैं. जहाँ चोट हो, वहाँ बोलने की हिम्मत रखते हैं.”
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तो नाकामी नहीं है, बस कूटनीति का नया दौर है।
भारत को क्लाइंट स्टेट नहीं बनना, लेकिन जब आप बड़ी ताक़त बनने की राह पर होते हैं, तो दोस्त कभी-कभी मौन हो जाते हैं. ये भारत की कूटनीति की असफलता नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति की असलियत है.
Last Updated on May 16, 2025 5:41 pm