नीले समुद्र के बीच, हरे-भरे पेड़-पौधों से सजा ख़ूबसूरत द्वीप श्रीलंका क्यों बर्बाद हुआ? कोरोना महामारी की वजह से पर्यटन उद्योग का बर्बाद होना या चीन से बहुत ज्यादा कर्ज लेना या सरकार की नीतियां.. श्रीलंका की बर्बादी के लिए असल जिम्मेदार कौन है?
इसे समझेंगे… लेकिन शुरुआत मौजूदा हालात से होगी… श्रीलंका में सरकार से नाराज लोग हिंसक प्रदर्शन पर उतर आए हैं. लोगों में आपातकाल और कर्फ्यू का कोई डर नहीं है. जबकि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे, विपक्ष से देश को संकट से उबारने के लिए गुहार लगा रहे हैं.
विदेशी मुद्रा भंडार में 70% गिरावट
श्रीलंका में बीते दो सालों में विदेशी मुद्रा भंडार में 70% से ज्यादा की गिरावट आई है. महंगाई का आलम ये है कि पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने-पीने की सामान्य चीजों के दाम आसमान पर हैं. ऐसे में भारत ने पड़ोसी धर्म दिखाते हुए श्रीलंका को 1 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन यानी ऋण सहायता देने पर सहमति जताई है.
श्रीलंका को इससे अनिवार्य वस्तुओं की कमी को पूरा करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा भारत ने शिप से 40 हजार टन डीजल और 40 हजार टन चावल पहुंचाया है.
सवाल उठता है कि इस बदहाली के लिए जिम्मेदार कौन है? कोरोना, चीन का कर्ज राजपक्षे परिवार? इसपर चर्चा से पहले
जानकार मानते हैं कि देश के हालात के लिए मौजूदा सरकार और उनकी नीतियां ही मुख्य वजह है. श्रीलंका की दिक्कत यह है कि भारत उसकी एक सीमा से अधिक मदद नहीं कर सकता. चीन पहले का कर्ज चुकाए बिना मदद करेगा या नहीं, संदेह है. ऐसे में माना जा रहा है कि श्रीलंका को आईएमएफ़ के पास 17वीं बार कर्ज़ लेना पड़ सकता है. वह भी नई शर्तों के साथ.
श्रीलंका में संकट का इतिहास
सवाल उठता है कि श्रीलंका सरकार इतने दिनों तक क्या कर रही थी. श्रीलंका में संकट का इतिहास पहले भी रहा है. यहां पर 1983 से 2009 तक अलगाववादी संगठन एलटीटीई और सरकार के बीच गृहयुद्ध चला. 26 साल लंबे इस संघर्ष ने श्रीलंका के अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी. लेकिन श्रीलंका बाद में उभरा. यही वजह रही कि 2009 से 2012 के बीच श्रीलंका की जीडीपी 8-9% की गति से बढ़ी.
श्रीलंका मुख्य तौर पर चाय, रबड़ और कपड़ों का निर्यात करता है. इसके अलावा पर्यटन और विदेशों में बसे नागरिकों के पैसों से खान-पान समेत अपने ज़रूरत की सभी चीज़ें आयात करता है. लेकिन 2012 के बाद से श्रीलंका का निर्यात धीमा होने लगा, और आयात बढ़ने लगा. देखते-देखते देश का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो गया और भुगतान का संकट खड़ा हो गया.
इसके अलावा बुनियादी ढांचे के विकास के लिए चीन जैसे देशों से कर्ज़ लेना और उनकी भारी किस्तें चुकाना भी इस बर्बादी की वजह मानी जा रही है. श्रीलंका ने हम्बनटोटा पोर्ट प्रोजेक्ट चलाने के लिए चीन से कर्ज लिया और अपनी औकात से ज्यादा खर्च करना शुरू कर दिया.
इसके अलावा पर्यटन उद्योग का गिरना भी बड़ी वजह है. जिसकी शुरुआत कोरोना काल से पहले हो चुकी थी. अप्रैल 2019 में कोलंबो में सिलसिलेवार बम धमाके में 350 से ज़्यादा लोग मारे गए. इस घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या गिरने लगी.
2019 के नवंबर में श्रीलंका में नई सरकार बनी. गोटाबाया राजपक्षे ने चुनावी वादे पूरे करने के लिए टैक्स में कटौती कर, किसानों को राहत दी. नतीजा ये हुआ कि सरकार का खजाना और खाली हो गया.
2020 में कोरोना महामारी ने दस्तक दी. महामारी के दौर में पर्यटन उद्योग ठप्प हो गया, निर्यात रुक गया और विदेशों में बसे नागरिकों से मिलने वाली कमाई भी बंद हो गई.
कोरोना आर्थिक बदहाली के लिए जिम्मेदार!
हालांकि जानकार मानते हैं कि कोरोना को इस आर्थिक बदहाली के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता. पूरा मामला वित्तीय प्रबंधन का है. श्रीलंका सरकार इस ड्यूटी को निभाने में पूरी तरह फेल रही. क्योंकि इसका असर मालदीव जैसे देश पर भी पड़ा, जो पूरी तरह पर्यटन और निर्यात पर निर्भर है.
ऐसे में वेनेजुएला का जिक्र करना बहुत जरूरी है. क्योंकि संभावना और संपदा के भरपूर होने के बाद भी वेनेजुएला बर्बाद हो गया. जानकार मानते हैं कि सेना का राजनीतिकरण, तेजी से बढ़ते अपराध, बढ़ती महंगाई, घरेलू सामान, दवाएं, खाद्य पदार्थों की व्यापक कमी, पैट्रोलियम उद्योग पर बहुत ही ज्यादा निर्भरता, गैर जिम्मेदाराना उत्खनन इसके प्रमुख कारण हैं.
Last Updated on April 5, 2022 12:05 pm